जनता परिवार को एकजुट रखने की एक नाकाम कोशिश के बाद जदयू, राष्ट्रीय लोकदल, झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) और समाजवादी जनता पार्टी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में विलय की संभावना टटोल रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जदयू अध्यक्ष शरद यादव, रालोद प्रमुख अजित सिंह, उनके पुत्र जयंत चौधरी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की 15 मार्च को नई दिल्ली में जदयू के महासचिव के सी त्यागी के आवास पर एक बैठक हुई। यह बैठक विलय के तौर तरीकों पर चर्चा के लिए थी।

एक ओर जहां नीतीश कुमार ने जेवीएम (पी) के नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से सीधे बातचीत की वहीं दूसरी ओर अजित सिंह और के सी त्यागी ने समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) के प्रमुख कमल मोरारका के साथ कई दौर की बातचीत की। मरांडी बहुत पहले भाजपा से अलग हो गए थे और अपनी अलग पार्टी बना ली थी। एक सूत्र ने बताया ‘‘चारों दलों का शीघ्र ही विलय हो सकता है। बातचीत अंतिम चरण में है। तारीख तय नहीं की गई है लेकिन इसी माह नया दल अस्तित्व में आ सकता है।’’

बिहार में लालू प्रसाद के राजद के साथ गठजोड़ कर शासन कर रहे जदयू का पड़ोसी झारखंड के कई हिस्सों में प्रभाव है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद एक महत्वपूर्ण दल है वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा गठित समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) से मुलायम सिंह यादव के बाहर आने तथा समाजवादी पार्टी का गठन करने के बाद सजपा (राष्ट्रीय) का उत्तर प्रदेश में थोड़ा बहुत प्रभाव है।

वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के 22 सांसद थे जब मुलायम सिंह यादव और चंद्रशेखर ने वी पी सिंह से अलग हो कर समाजवादी जनता पार्टी बनाई थी। तब से जनता दल और बाद में जनता दल (यूनाइटेड) का वहां प्रभाव घटता गया। वर्ष 1996 में शरद यादव की अगुवाई वाली पार्टी के केवल छह विधायक थे और 2002 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या घट कर केवल दो रह गई। बिहार में जीत से उत्साहित पार्टी को महसूस हुआ कि वह रालोद तथा अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में अपनी मृतप्राय इकाई को नया जीवन दे सकती है। जदयू ने पीस पार्टी को भी अपने साथ जोड़ा जिसकी पूर्वी उत्तर प्रदेश में, खास कर ग्रौपेर के आसपास के इलाकों में कुछ उपस्थिति है। विलय के मुद्दे पर पीस पार्टी की जदयू के साथ बातचीत भी हुई।

उत्तर प्रदेश में जदयू के पास कैडर आधार नहीं है और उसे उम्मीद है कि रालोद तथा पीस पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ वह कुछ लाभ ले सकती है। नीतीश कुमार का प्रभाव भी इन दलों को उनका वोट बैंक मजबूत करने में मदद कर सकता है। अतीत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद जाट,मुस्लिमों के साथ उपस्थिति दर्शाती थी। लेकिन वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उसका क्षेत्र में आधार कमजोर हुआ है।
रालोद को उम्मीद है कि नीतीश कुमार अपनी मुस्लिम समर्थक छवि के साथ उसके लिए सहायक हो सकते हैं।

फरवरी में उत्तर प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जदयू नेताओं ने भी रालोद प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था। उत्तर प्रदेश में दो बड़े दल बसपा और सपा किसी दल से गठबंधन की संभावना से पहले ही इंकार कर चुके हैं। जदयू, रालोद गठबंधन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधी मोर्चे में कांग्रेस को साथ लेना चाहता है।

 

 

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