कोरोनावायरस महामारी के दौर में जहां एक तरफ पूरी दुनिया में मंदी का खतरा पैदा हो गया है, वहीं इस दौरान विश्व के कुछ सबसे अमीर लोगों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई है। इनमें एक नाम रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी का भी है। बीते कुछ सालों में ही मुकेश अंबानी ने भारत के सबसे अमीर व्यक्ति के साथ दुनिया के टॉप-10 अमीरों में भी जगह बना ली। जहां मुकेश ने अपनी कंपनियों के प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी अपने बेटे आकाश और बेटी ईशा को सौंपी है, वहीं उनकी पत्नी नीता अंबानी भी कंपनी के स्पोर्ट्स बिजनेस में अहम भूमिका निभाती हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज के इस लंबे सफर में नीता का योगदान कितना अहम है, इसका उदाहरण इसी बात से मिलता है कि उनके ऑफिस का कल्चर भी सभी के लिए खुला है और कंपनी का अधिकतर क्रू उनसे आसानी से मिल सकता है।
नीता की मुकेश से शादी 1985 में हुई थी। बिड़ला ग्रुप के एक अधिकारी की बेटी नीता मुंबई में ही मध्यमवर्गीय परिवार में पली बढ़ीं। कॉमर्स से ग्रेजुएशन कर चुकीं नीता के मुताबिक, जब उनकी मुकेश से शादी हो रही थी, तो उन्होंने साफ कर दिया था कि वे घर में सिर्फ एक दिखावे की चीज बनकर नहीं रह सकतीं। इसी के चलते नीता ने शादी के बाद स्पेशल एजुकेशन से डिप्लोमा किया और कई साल तक टीचर के तौर पर काम किया। नीता के मुताबिक, “कई लोग सोचते थे कि मैं आखिर क्यों काम कर रही हूं, पर मुकेश ने हमेशा मेरा समर्थन किया।”
गौरतलब है कि कुछ ही समय पहले मुकेश और नीता अंबानी की बेटी ईशा अंबानी ने एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उनका और भाई आकाश का जन्म आईवीएफ तकनीक के जरिए हुआ था। नीता खुद कहती हैं कि जब 1991 में उनके बच्चों का प्रीमैच्योर जन्म हुआ था, तब मुश्किल समय में मुकेश ने पूरी तरह से काम से ब्रेक ले लिया था। तब नीता की डॉक्टर रहीं फिरुजा पारीख का कहना है कि उन्हें अपने बच्चों पर काफी ध्यान देने की जरूरत थी। इस मुश्किल समय में नीता ने अपनी प्राथमिकताएं तय कीं।
हालांकि, इन जिम्मेदारियों को निभाने के बावजूद नीता छह महीने बाद दोबारा काम पर लौट आईं। बताया जाता है कि मुकेश अंबानी ने नीता गुजरात के जामनगर में कंपनी के स्टाफ के लिए टाउनशिप के निर्माण के लिए नीता की मदद मांगी। इसी जगह पर रिलायंस रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण भी जारी था। नीता के मुताबिक, मुकेश के इस प्रस्ताव पर वे काफी नर्वस हो गई थीं, क्योंकि उनके पास काम का कोई अनुभव नहीं था। हालांकि, उन्होंने इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी ली और अगले तीन साल तक हर हफ्ते दो बार साइट का दौरा कर काम पूरा कराया। नीता याद करती हैं, “मेरा शेड्यूल सजा जैसा था। मैं वहां काम करने वाली इकलौती महिला थी और सब उन्हें सर कह कर संबोधित करते थे।”