Supreme Court Hearing: सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला (Nikah Halala)’ की प्रथा की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की एक नई संविधान पीठ (Constitutional Bench) का गठन करने पर सहमत हो गया है। शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (Chief Justice Dhananjay Yashwant Chandrachud), न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) और न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला (Justice JB Pardiwala) की पीठ ने इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय के अनुरोध के बाद यह आदेश दिया।
मामले में पिछली पीठ के दो जय सेवानिवृत्त हो चुके हैं
उपाध्याय की तरफ से पीठ से अनुरोध किया गया था कि मामले में संविधान पीठ को नए सिरे से गठित करने की जरूरत है क्योंकि पिछली संविधान पीठ के दो जज न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता सेवानिवृत्त हो चुके हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने यह बहुत महत्त्वपूर्ण मामला लंबित है। हम एक पीठ का गठन करेंगे और इस मामले पर गौर करेंगे।
इस मामले में पिछले साल दो नवंबर को सुनवाई की गई थी। पिछली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल 30 अगस्त को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को जनहित याचिकाओं में एक पक्ष बनाया था और उनसे भी जवाब मांगा था। तत्कालीन संविधान पीठ की अध्यक्षता न्यायमूर्ति बनर्जी कर रही थीं।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया इसमें शामिल थे। न्यायमूर्ति बनर्जी और न्यायमूर्ति गुप्ता पिछले साल क्रमश: 23 सितंबर और 16 अक्तूबर को सेवानिवृत्त हो गए। जिससे बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ की प्रथाओं के खिलाफ आठ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पुनर्गठन की जरूरत पड़ी।
उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को असंवैधानिक और गैर-कानूनी घोषित करने का निर्देश देने की अपील की है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में उनकी याचिका पर विचार किया था और इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
जो पहले से ही ऐसी ही याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।
याचिका में कहा गया है कि निकाह-हलाला की प्रथा में एक तलाकशुदा महिला को पहले किसी और से शादी करनी होती है। इसके बाद मुसलिम पर्सनल ला के तहत अपने पहले पति से फिर शादी करने के लिए तलाक लेना पड़ता है। दूसरी ओर बहुविवाह एक ही समय में एक से अधिक पत्नी या पति होने की प्रथा है।