देश के कई राज्यों के सूखे की चपेट में होने के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एचएल दत्तू ने सबके लिए भोजन सुनिश्चित करने के इरादे से प्रभावित लोगों को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत लाने की गुरुवार को वकालत की। उन्होंने कहा कि सबके लिए भोजन सुनिश्चित करने के लिए नीतियों एवं कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है लेकिन अब ध्यान उनके प्रभावी कार्यान्वयन खासकर उचित भंडारण एवं वितरण और बर्बादी रोकने पर होना चाहिए जो चिंता का विषय हैं।

दत्तू ने उन सरकारी रपटों का हवाला दिया जिनके अनुसार दस राज्यों के 254 जिले सूखे की चपेट में हैं और आबादी का एक चौथाई हिस्सा बुरी तरह प्रभावित है। उन्होंने कहा- हम सूखे से प्रभावित हो रहे समाज के एक बड़े वर्ग के लिए एक छोटी अवधि एवं लंबी अवधि की रणनीति के तौर पर कैसे टीपीडीएस के तहत खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सेवा दे सकते हैं। इस विषय को भी भोजन का अधिकार एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के संदर्भ में चर्चा का हिस्सा बनाने की जरूरत है।

दत्तू ने कहा कि विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कल्याण योजनाओं के समन्वय से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए कि किसी को भी भोजन के लिए भीख ना मांगनी पड़े। सबसिडी के सीधे हस्तांतरण जैसे कदमों के प्रभाव के विश्लेषण पर जोर देते हुए दत्तू ने समाज के सभी वर्गों से प्रहरी की भूमिका निभाने और कार्यक्रमों का सही से कार्यान्वयन सुनिश्चित कराने की दिशा में काम करने की अपील की ताकि किसी को भी भूखा ना सोना पड़े।

उन्होंने कहा कि लोगों को उठाईगीरी के प्रलोभन का शिकार बनने की बजाए खुद कल्याणकारी योजनाओं का प्रहरी बनने की जरूरत है। उन्हें सरकार को खुद से अलग करके नहीं देखना चाहिए। सरकार की खासकर खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर आलोचना के साथ देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी का अंत नहीं हो जाता।

उन्होंने ‘अंत्योदय अन्न योजना’, टीपीडीएस और कई दूसरी योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि नीति एवं कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। केवल उनके प्रभावी कार्यान्वयन पर सवाल उठाया जा सकता है। दत्तू के मुताबिक यह दुखद है कि हर साल 15 फीसद खाद्यान्न जिसकी कीमत 92 हजार करोड़ रुपए है, वह उत्पादन, कटाई, परिवहन और भंडारण के दौरान बर्बाद हो जाता है। केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग के एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है।