नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) पैनल के चार एक्सपर्ट्स ने जर्मन वैश्विक दिग्गज कार कंपनी Volkswagen के खिलाफ भारत में स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के लिए कंपनी के खिलाफ 171.34 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की सिफारिश की है। एनजीटी पैनल का गठन पिछले साल नवंबर में 2015 के वैश्विक उत्सर्जन घोटाले के मद्देनजर किया गया था। जब कंपनी को जानबूझकर अपने डीजल इंजनों को धोखा देने वाले उपकरणों के साथ अमेरिकी नियामक मानकों को पूरा करने के लिए दोषी पाया गया, लेकिन वास्तव में वास्तविक दुनिया की स्थितियों में 40 गुना अधिक नाइट्रस ऑक्साइड (एनओएक्स) का उत्सर्जन होता है।
इंडियन एक्सप्रेस को एनजीटी की यह रिपोर्ट में मिली है, जिसे 24 दिसंबर, 2018 को फाइल किया जा चुका है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि Volkswagen की कारों ने साल 2016 में करीब 48.678 टन एनओएक्स निकाला। पैनल, जिसने स्वास्थ्य क्षति के लिए दिल्ली को चुना, ने Volkswagen ग्रुप की गाड़ियों से अतिरिक्त NOx के कारण स्वास्थ्य क्षति की अनुमानित लागत लगभग 171.34 करोड़ रुपये रुपए बताई है। पैनल ने दोहराया कि NO2 की उच्च सांद्रता लंबे समय तक अस्थमा जोखिम को बढ़ा सकता है। इसके अलावा यह भी संभव है कि यह श्वसन संक्रमण के लिए संवेदनशीलता बढ़ा दे। NOx गैसें स्मॉग और एसिड रेन बनाने के लिए प्रतिक्रिया करती हैं।
पैनल ने बीमारी की लागत और WHO डेटाबेस से विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALY) के तहत उपचार की लागत और संबंधित खर्चों के अनुमानों का उपयोग करके यह गणना की। रिपोर्ट में जुर्माना कंपनी की 3.27 लाख कारों के आधार पर निर्धारित किया गया। दरअसल एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल द्वारा पारित आदेशों पर यह रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जिसमें Volkswagen को एक महीना के भीतर 100 करोड़ रुपये जमा करने के लिए कहा गया।
एनजीटी के मुताबिक वापस बुलाए गईं Volkswagen गाड़ियों की संख्या 3.4 लाख थी, जिनमें से 2.53 लाख को वापस बुला लिया गया है। वहीं कंपनी के खिलाफ जुर्माना लगने पर Volkswagen इंडिया के प्रवक्ता ने कहा, ‘Volkswagen इंडिया ग्रुप ने अपनी जांच में पाया कि कंपनी ने BS-IV मानदंड का उल्लंघन नहीं किया। इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के समक्ष चैलेंज किया गया है। जब तक यह मुद्दा कोर्ट में विचारधीन है हम इस मुद्दे पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकेंगे।’