केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से अपने मानव तस्करी विधेयक के मसौदे पर शुरू की गई विचार-विमर्श की प्रक्रिया बीते 30 जून को संपन्न हो गई, लेकिन कई गैर सरकारी संगठनों ने इस प्रस्तावित विधेयक को ‘अस्पष्ट और खामियों से भरा’ करार दिया है और इस पर ‘बेहतर, व्यापक और गहन विचार-विमर्श’ की मांग की है। इस क्षेत्र में काम करने वाली एनजीओ के सामूहिक प्रतिनिधि संगठन ‘नेशनल कोएलिशन टू प्रोटेक्ट आॅवर चिल्ड्रेन’ :एनसीपीओसी: इस मसौदे पर और चर्चा की जरूरत पर जोर दे रहा है। उसने मसौदा विधेयक को ‘अस्पष्ट और खामिया से भरा’ करार देते हुए निशाना साधा है।

एनसीपीओसी के सदस्य और राज्यसभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर की ओर से लिखे एक पत्र में कहा गया है, ‘‘विधेयक में कई विधायी और प्रक्रियागत खामियां हैं।’’ कई दूसरे सरकारी संगठनों ने भी मंत्रालय को पत्र लिखकर इसी तरह की भावना से अवगत कराया है। तकरीबन सभी गैर सरकारी संगठनों ने सवाल किया है कि मानव तस्करी से संबंधित विधेयक में ‘तस्करी’ शब्द को परिभाषित क्यों नहीं किया गया है। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘प्रयास’ के संस्थापक सचिव आमोद कंठ ने कहा, ‘‘व्यावसायिक सेक्स, जबरन मजदूरी, अंग व्यापार, गैरकानूनी गोद लेना, जबरल बाल मजदूरी जैसे मुद्दें को सीधे तस्करी की परिभाषा के तहत लाना चाहिए था, लेकिन इसकी बुनियादी ही परिभाषा ही नदारद है।’’