तमिलनाडु के लिए बुधवार(21 फरवरी) का दिन ऐतिहासिक रहा।  मौका था फिल्म स्टार कमल हासन की ओर से पार्टी गठन की घोषणा का। ऐलान के लिए मदुरै को चुना गया, जिसे सूबे की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। समर्थकों की भारी-भीड़ के बीच कमल हासन ने ‘मक्‍कल नीति मैय्यम’ यानी लोक न्याय पार्टी के नाम की घोषणा की। उन्होंने नारा दिया, ‘नालई नमाधे’, जिसका मतलब होता है-‘कल हमारा है। उनके साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रहे। कमल हासन केजरीवाल को अपना रोल मॉडल मानते हैं, उन्हें इस मौके पर बुलाने के पीछे बताया जा रहा कि कमल हासन भी तमिलनाडु में दो मुख्य द्रविड़ दलों के बीच फंसी जनता को वैकल्पिक राजनीति का मंच देना चाहते हैं। ठीक उसी तरह जैसे केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी के बीच आम आदमी पार्टी का विकल्प जनता को दिया। कमल हासन का यह कदम एमजीआर, जयललिता, विजयकांत की तरह है, जिन्होंने तमिल सिनेमा में छाप छोड़ने के बाद राजनीतिक पारी शुरू की।
पार्टी बनाने में कमल ने रजनीकांत को पीछे छोड़ दिया। पिछले साल दिसंबर मे रजनीकांत ने बीजेपी से जुड़ने की जगह नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की बात कही थी, लेकिन अभी तक औपचारिक एलान नहीं किया है। तमिलनाडु में जमी-जमाई डीएमके और एआईएडीएमके के बीच कमल हासन की पार्टी क्या गुल खिलाएगी, इस पर सभी की निगाह है। काबिलेगौर है कि पिछले 50 साल से तमिलनाडु की सत्ता का सिंहासन बारी-बारी से द्रमुक और अन्नाद्रमुक के पाले में ही आता रहा। अब कमल हासन के सियासत में उतरने से तमिलनाडु के सियासी समीकरण किस कदर बदलेंगे, कयास अभी से लगने लगे हैं।

कमल हासन ने पार्टी की विचारधारा अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं की है, मगर उन्होंने जो संकेत दिए हैं, वो सेक्युलर राजनीति की ओर उन्हें ले जाता है। राजनीति में औपचारिक रूप से उतरने से पहले कमल हासन की कई मुलाकातों ने भी इस बात पर बल दिया है। कमल हासन पूर्व में तमिलनाडु के कई सियासी दिग्गजों से मिल चुके हैं। इसमें डीएमके चीफ करुणानिधि और उनके बेटे स्टालिन से भी मुलाकात खास रही। उन्होंने जयललिता की पार्टी यानी एआईएडीएमके के नेताओं से दूरी बनाए रखी। बीच में चर्चा हुई कि वे रजनीकांत के साथ पार्टी का गठन कर सकते हैं। मगर कमल हासन ने साफ कर दिया कि वे भगवा राजनीति की परछाईं अपने ऊपर नहीं पड़ने देंगे। रजनीकांत को आमतौर पर बीजेपी का करीबी माना जाता है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो रजनीकांत को भाजपा में आने का खुला आमंत्रण दे चुके हैं। वहीं तमिलनाडु के बीजेपी नेता दावा कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले रजनीकांत की पार्टी एनडीए का अंग होगी। इस प्रकार देखें तो कमल हासन का रास्ता सत्ताधारी एआईएडीएमके और बीजेपी का लाइन के विपरीत जाता है। तमिलनाडु की राजनीति के जानकार मानते हैं कि कमल हासन अन्नाद्रुमक विरोधी वोटों को हथियाने की राजनीति करना चाहते हैं। कई मौकों पर उन्होंने सत्ताधारी अन्नाद्रमुक की आलोचना की है।
लाख टके का सवाल है कि तमिलनाडु की राजनीति में क्या एमजी रामचंद्नन और जयललिता की तरह कमल हासन और रजनीकांत भी सफल होंगे। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन यह जरूर है कि रामचंद्रन और जयललिता जब अपने करियर के शिखर पर थे, तब उन्होंने राजनीति में उतरने का फैसला लिया, जबकि कमल हासन और रजनीकांत ने देरी से, जब उनका करियर ढलान पर आ गया।
तमिलनाडु में फिल्मी सितारों की सफलता की बात करें तो एमजीआर और जयललिता के अलावा कोई छाप नहीं छोड़ सका।1936 में फिल्म ‘साथी लीलावती’ से  अभिनय की शुरुआत करने वाले एमजीआर 1953 में कांग्रेस से जुड़े और बाद में डीएमके से जुड़े और 70 के दशक में ताकतवर नेता बन गए। 1972 में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने पर करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया तो उन्होंने एआईएडीएमके की स्थापना की। एमजीआर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने वाले पहले फिल्म अभिनेता बने। 30 जुलाई 1977 को कुर्सी पर बैठने के बाद वर्ष 1987 को अपने निधन तक वे पद पर बने रहे। फिर एमजीआर ने 1982 में तमिल फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री जयललिता को सियासत में एंट्री दिलाई। 1987 में जब एमजीआर का निधन हो गया, इसके बाद उनकी वारिस जयललिता चुनीं गईं। हालांकि जयललिता को पार्टी के अंदरखाने काफी संघर्ष करना पड़ा। पूरे जीवनकाल में जयललिता छह बार मुख्यमंत्री रहीं। 5 दिसम्बर 2016 को जयललिता निधन हो गया। तमिलनाडु में अपने समर्थकों के बीच अम्मा नाम से मशहूर रहीं।
कैसे बनते हैं दल, कितनी है संख्याः भारत में बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था है। राजनीतिक दलों को तीन समूहों में बांटा गया है। देश में इस समय सात राष्ट्रीय दल, 48 क्षेत्रीय और 1706 गैर मान्यता प्राप्त दल आयोग में पंजीकृत हैं। मान्यता प्राप्त दलों के पास अपना चुनाव चिह्न होता है। राष्ट्रीय दल की मान्यता कुछ शर्तों को पूरी करने पर मिलती है। मसलन, जब कोई पार्टी कम से कम तीन राज्यों को मिलाकर लोकसभा की दो प्रतिशत सीटें जीतती है, चार लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा आ विधानसभा के चुनाव में चार राज्यों में छह प्रतिशत वोट, यदि कोई पार्टी चार या चार से अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता प्राप्त है।यदि कोई पार्टी राज्य विधानसभा की कुल सीटों में से कम-से-कम 3% सीट या कम-से-कम 3 सीटें प्राप्त करती है तो उसे राज्य में क्षेत्रीय दल की मान्यता मिलती है।