दल-बदल के लिए देश में सबसे पहले हरियाणा बदनाम हुआ था। भजन लाल ने अपनी पूरी सरकार को ही जनता पार्टी से कांगे्रस में बदल कर आयाराम-गयाराम की सियासी संस्कृति को उभारा था। लेकिन समसामयिक दौर में दल-बदल के मामले में गोवा ने सभी राज्यों को पछाड़ दिया है। छोटे से इस तटीय सूबे में भी विधानसभा चुनाव अगले साल फरवरी-मार्च में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर के साथ ही होंगे। पर सियासी हलचल के मामले में 40सीटों वाला यह सूबा किसी से उन्नीस नहीं है।

2017 के विधानसभा चुनाव में 17 सीटें जीतकर कांगे्रस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा को महज 13 सीटों पर ही सफलता मिल पाई थी। तो भी निर्दलियों और क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकार भाजपा ने ही बनाई थी। इस समय तो भाजपा के अपने विधायक ही 27 हैं। इनमें से दस उसने कांगे्रस से शामिल किए हैं। कुल मिलाकर 40 में से अब तक 21 विधायक दल-बदल कर चुके हैं।

दल-बदल की बीमारी के कारण ही लंबे समय तक गोवा में सरकारों की अस्थिरता का सिलसिला भी चला था। 1990 से 2002 तक बारह साल की अवधि में गोवा ने 13 मुख्यमंत्री देखे थे। कई बार मुख्यमंत्री रहे रवि नाईक का एक बार का कार्यकाल तो महज छह दिन ही रहा। इसी तरह चर्चिल अलेमाओ भी केवल 18 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए थे। भाजपा का भी 2017 का प्रदर्शन सबसे खराब था। यहां तक कि तबके मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पर्सेकर खुद विधानसभा चुनाव हार गए थे। 2012 में यहां भाजपा विजयी हुई थी और मनोहर पर्रिेकर मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बाद में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो पर्रिकर को उन्होंने अपना रक्षामंत्री बना लिया था। तब पर्रिकर की कुर्सी पर्सेकर को मिली थी।

पिछले चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनी तो क्षेत्रीय दलों ने भाजपा का समर्थन इसी शर्त पर किया कि मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर होंगे। तब पर्रिकर को रक्षामंत्री पद छोड़कर गोवा जाना पड़ा। उनकी मृत्यु के कारण प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इस बार गोवा चुनाव में दो नए सियासी खिलाड़ी भी कूद पड़े हैं। एक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दूसरे आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल। ममता बनर्जी की तृणमूल कांगे्रस ने पहले तो टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस को पार्टी में शामिल कराया था।

फिर लुईजिन्हो फ्लेरियो को पश्चिम बंगाल से राज्य सभा सदस्य बना दिया। पार्टी में पद भी दिया। उनसे अपेक्षा होगी कि वे कांगे्रस और दूसरे दलों से नेताओं को इस्तीफे दिलाकर तृणमूल कांगे्रस को मजबूत बनाएंगे। इसके बाद राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी के एकमाक्ष विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री चर्चिल अलेमाओ को भी ममता ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया।जहां तक दल-बदल का सवाल है, ऐसा नहीं है कि दल बदलू केवल भाजपा में शामिल हो रहे हैं। बेचैनी भाजपा के विधायकों में भी दिख रही है। तभी तो भाजपा की भी एक विधायक आम आदमी पार्टी में चली गई।

गोवा की मुक्ति के बाद यहां क्षेत्रीय दल महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का लंबे समय तक प्रभाव रहा। पर बाद में भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों ने क्षेत्रीय दलों के प्रभाव को लगातार सीमित किया। अब तो महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी हो या युनाइटेड गोवा डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों ही अपना प्रभाव गंवा चुकी हैं। गोवा फार्वर्ड पार्टी का भी यही हाल है। पिछले चुनाव में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और गोवा फार्वर्ड पार्टी दोनों को तीन-तीन सीटों पर सफलता मिली थी। लेकिन अब उनके पास एक-एक विधायक ही रह गए हैं। तृणमूल कांगे्रस ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से गठबंधन किया है तो भाजपा का गठबंधन गोवा फार्वर्ड पार्टी से होने के संकेत मिल रहे हैं। इस बार गोवा में बहुकोणीय मुकाबले होने की संभावना है। तृणमूल कांग्रेस का गठबंधन, भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांगे्रस के अलावा निर्दलियों की मौजूदगी भी हमेशा की तरह जरूर दिखेगी।