नई संसद के उद्धाटन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका को दो जजों की बेंच ने सुनने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले वकील को फटकरा लगाते हुए कहा कि हम जानते हैं कि याचिका दायर करने का मकसद क्या है। मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि हमें समझ नहीं आता कि आप इस तरह की याचिकाएं क्यों लेकर आते हैं,। अनुच्छेद 32 के तहत इस पर विचार करने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।

जस्टिस जेके महेश्वरी ने इस दौरान याचिका दाखिल करने वाले वकील से पूछा कि यह उद्घाटन से कैसे संबंधित है? जिसपर वकील की तरफ से कहा गया कि यह अनुच्छेद 79 और 87 का पूरी तरह से उल्लंघन करता है। राष्ट्रपति संसद के प्रमुख होते हैं, उन्हें संसद का उद्धाटन करना चाहिए। एग्जीक्यूटिव हेड ही एकमात्र मुखिया है जिसे उद्घाटन चाहिए।

याचिका दायर करने वाले वकील की दलीलों से असंतुष्ट सुप्रीम कोर्ट की बेंच जब मामले को खारिज करने जा रही थी, तब याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस लेने की इजाजत मांगी। इसपर भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका वापस लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वकील उसी याचिका को हाईकोर्ट में दाखिल करेगा।

तुषार मेहता की दलील पर याचिका दाखिल करने वाले वकील ने कहा कि उनकी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की कोई योजना नहीं है। वह इसे इसलिए वापस ले रहे हैं ताकि बर्खास्तगी “प्रमाण पत्र” न बन जाए। इसके बाद बेंच ने अपने आदेश में दर्ज किया कि याचिकाकर्ता ने कुछ देर तक बहस करने के बाद याचिका वापस लेने का फैसला किया क्योंकि कोर्ट मामले पर विचार की इच्छुक नहीं थी।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर लोकसभा सचिवालय को नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। याचिका में कहा गया था कि प्रतिवादी–लोकसभा सचिवालय और भारत संघ–उन्हें (राष्ट्रपति को) उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं कर राष्ट्रपति को अपमानित कर रहे हैं।