सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने हेट स्पीच मामले में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के बयान का जिक्र कर कहा कि हमने दिल्ली में एक मंत्री को गोली मारो कहते सुना। यह मारने के लिए उकसाना नहीं तो क्या है? उनका कहना है कि कार्यपालिका सारे मामले पर शांत है। सुप्रीम कोर्ट भी हेट स्पीच के ऐसे मामलों में ही दखल देता है जिनमें हिंसा हो।

जस्टिस लोकुर ने कहा कि एक मंत्री जो लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाता है, क्या वह एक सही व्यक्ति हैं? यदि ये उचित व्यक्ति है तो उचित होने का एक पूरी तरह से अलग ही अर्थ है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे पास हेट स्पीच की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि हमें इसकी जरूरत है। जस्टिस लोकुर ने कहा कि कुछ समय पहले, 1969 में इंडियन पैनल कोड में संशोधन किया गया था।

जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुल्ली और बुल्ली डील्स मामले में मुस्लिम महिलाओं की नीलामी का मामला आया था। इसमें कोई हिंसा नहीं है, लेकिन क्या यह हेट स्पीच नहीं है? हरिद्वार की धर्म संसद का हवाला दे उन्होंने कहा कि अब ऐसे मामलों से निपटने को लिए संसद को कानून बनाना ही होगा। उनका कहना था कि हरिद्वार मामले में सरकार तब तक चुप रही जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने नहीं पूछा कि ये क्या हो रहा है।

उनका कहना था कि ऐसे मामलों में हमें पीड़ित के साथ मजबूती से खड़े रहना होगा। कार्यपालिका को अपनी जिम्मेदारी समझने के साथ अदालतों को भी अपने तेवर बेहद तीखे करने होंगे। तभी जाकर इस तरह की चीजों पर रोक लग सकेगी। उन्होंने कहा कि जब आप हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो इसका परिणाम हिंसा हो भी सकता है, और नहीं भी। इसमें यह महत्वपूर्ण है, और यही हेट क्राइम का आधार बनता है।

जब की थी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ PC

जस्टिस मदन बी लोकुर ने 1977 में वकालत की शुरुआत की थी। जस्टिस लोकुर जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वालों चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल थे। वह 31 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड होने के बाद जस्टिस लोकुर फिजी की सबसे बड़ी अदालत में जज नियुक्त हुए थे।