वर्ष 2015 में भारत ने नेपाल के नए स्वीकृत संविधान पर नाराजगी जताने के मकसद से नेपाल पर एक तरह का अनौपचारिक आर्थिक प्रतिबंध लगाया था। इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हुआ।

कुछ साल बाद वर्ष 2020 में कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख ट्राय-जंक्शन क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय विवाद पैदा हो गया। दोनों ही देश इस क्षेत्र पर अपना हक जताने लगी। यह विवाद कूटनीतिक चर्चाओं के बाद आगे नहीं बढ़ा, लेकिन इसने संबंधों की नाजुकता और दोनों देशों के बीच निरंतर जुड़ाव और सहयोग की आवश्यकता की ओर ध्यान खींचा।

भारत और नेपाल के बीच सीमा तनाव को हल करने को लेकर कई चुनौतियां सामने हैं। नेपाल के घरेलू मामलों में भारत का कथित हस्तक्षेप के आरोप सामने आते रहते हैं। चीन के साथ नेपाल के बढ़ते संबंधों ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा के कारण अवैध प्रवास और तस्करी के मामले भी बढ़ रहे हैं।

नेपाल और भारत के बीच की सीमा 1,700 किलोमीटर से अधिक लंबी है। दोनों देशों की सीमा मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल साम्राज्य के बीच हुई 1816 की सुगौली संधि पर आधारित है। इस संधि ने दोनों देशों के बीच की सीमा को परिभाषित किया है और इसके बाद की संधियों और समझौतों ने सीमा को और अधिक वर्णित किया है।

सुगौली संधि के अनुच्छेद पांच में पश्चिमी सीमा के रूप में महाकाली नदी (या संधि में वर्णित काली नदी) का उल्लेख है। यह संधि महाकाली नदी की उत्पत्ति के बारे में तो कुछ नहीं बताती है, लेकिन हाइड्रोग्राफिक अध्ययन से पता चलता है कि लिम्पियाधुरा इसकी उत्पत्ति का केंद्र है, जिससे यह भारत, नेपाल और चीन के बीच ट्राय-जंक्शन बन जाता है।

कालापानी-लिम्पियाधुरा-लिपुलेख ट्राय जंक्शन को लेकर नेपाल ने भारत पर सीमा संबंधी नक्शे को लेकर दबाव बनाने का आरोप लगाया। भारत का तर्क है कि यह क्षेत्र उसके इलाके का हिस्सा है और 1960 के दशक से ही भारत ने वहां सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। पूर्व में नेपाल के नवलपरासी जिले के दक्षिणी इलाके में स्थित सुस्ता क्षेत्र को लेकर भी विवाद है। इस इलाके पर भारत और नेपाल दोनों दावा करते हैं।

पानी का बंटवारा नेपाल और भारत के बीच विवादों का एक दूसरा कारण रहा है। दोनों देश कई नदियों को साझा करते हैं जिनमें कोशी, गंडकी और महाकाली शामिल हैं और इन जल संसाधनों को साझा करने को लेकर कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। नेपाल भारत पर शुष्क मौसम के दौरान पानी रोके रखने का आरोप लगाता रहा है जबकि भारत, नेपाल की पनबिजली परियोजनाओं के चलते निचली आबादी पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताता रहा है।

कई बार नेपाल ने भारत पर नेपाल के क्षेत्रों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। खास तौर पर सीमावर्ती क्षेत्रों में जहां सीमा की परिभाषा अस्पष्ट है। नतीजतन, दोनों देशों की सीमा बलों के बीच कभी-कभी झड़पें होती रहती हैं। नेपाल के विश्लेषकों का यह भी कहना है कि लक्ष्मणपुर, रसियावल-खुरलोटन, महालीसागर, कोहलावास और कुनौली जैसे विभिन्न स्थानों पर भारत निर्मित बांधों और तटबंधों के कारण हर साल यह क्षेत्र मानसून के मौसम में भारी बाढ़ आती है। हालांकि, बाढ़ से भारत में भी खूब तबाही होती है।

धीमी बातचीत

भारत और नेपाल ने अपने सीमा विवादों के स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए पिछले कई वर्षों में कई दौर की बातचीत की है लेकिन प्रगति धीमी और छिटपुट रही है। वर्ष 1981 में दोनों देशों ने एक ज्वाइंट टेक्निकल लेवल बाउंड्री कमेटी का गठन किया, जिसे सर्वेक्षण करने और सीमा के इलाके को तय करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों का नक्शा बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। विदेश मंत्रियों के स्तर पर भी कई द्विपक्षीय वार्ताएं हुई हैं।