केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ दिन पहले दक्षिण अंडमान में वी डी सावरकर की मूर्ति का अनावरण किया। कांग्रेस अक्सर सावरकर की आलोचना करती है जबकि बीजेपी उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए एक आदर्श मानती है। इस बीच नेहरू आर्काइव से हाल ही में जारी किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सलाह दी थी कि सावरकर को भारत रत्न (देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान) न दिया जाए।

हिंदू महासभा ने सावरकर को भारत रत्न देने का दिया था सुझाव

सावरकर को भारत रत्न देने का सुझाव हिंदू महासभा की पंजाब इकाई से आया था। जून 1963 में देहरादून से राधाकृष्णन के पत्र का जवाब देते हुए नेहरू ने लिखा, “आपके ऑफिस ने मुझे एक पत्र भेजा है जिसे मैं वापस भेज रहा हूं। इस पत्र में सुझाव दिया गया है कि सावरकर को भारत रत्न दिया जाए। सावरकर ने निश्चित रूप से अपने शुरुआती दिनों में स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन बाद में वह एक बहुत ही विवादास्पद व्यक्ति बन गए। मुझे नहीं लगता कि पंजाब हिंदू महासभा द्वारा दिए गए इस सुझाव को मानना उचित होगा।”

इससे पहले नेहरू ने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) खड़कवासला को भी सावरकर को आमंत्रित न करने के लिए लिखा था, जबकि अंडमान में सेलुलर जेल को तोड़ने के प्रस्ताव का समर्थन किया था, जहां सावरकर कई सालों तक कैद थे। 18 जनवरी 1961 को नेहरू ने तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन को लिखा, “मैं आपको एक पत्र भेज रहा हूं जो मुझे मिला है। आप पता लगा सकते हैं कि क्या यह सच है कि वी डी सावरकर को नेशनल डिफेंस एकेडमी, खड़कवासला आने के लिए आमंत्रित किया गया है। अगर उन्हें सच में आमंत्रित किया गया है और उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है, तो मुझे लगता है कि इस स्तर पर निमंत्रण वापस लेना समझदारी नहीं होगी। इससे एक विवाद खड़ा होगा। शायद बेहतर होता कि उन्हें आमंत्रित न किया जाता या किसी खास तरह से प्रोत्साहित न किया जाता। अगर सावरकर को आमंत्रित किया गया है और वह वहां जा रहे हैं, तो उनके दौरे के बारे में कोई खास हंगामा नहीं किया जाना चाहिए और न ही बहुत ज़्यादा प्रचार किया जाना चाहिए। उन्हें घुमाया जा सकता है। मेरा मानना है कि वह बहुत बूढ़े हैं, लगभग 90 साल के।”

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गांधी की हत्या के बाद भी नेहरू ने लिखा था पत्र

दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद (जिससे सावरकर और हिंदू महासभा पर कई आरोप लगे) नेहरू ने राधाकृष्णन से कहा था कि सावरकर ने अपने शुरुआती दिनों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन बाद में वे एक विवादित व्यक्ति बन गए। हालांकि नेहरू के कई पत्रों में सावरकर का ज़िक्र है।

ऐसे ही एक पत्र उन्होंने तत्कालीन बॉम्बे राज्य के शिवाजीनगर से हिंदू महासभा के विधायक और अपने दादा बाल गंगाधर तिलक द्वारा स्थापित मराठी दैनिक केसरी के संपादक जे एस तिलक को लिखा था। इसमें नेहरू ने तिलक से सेल्यूलर जेल को खत्म करने में दखल देने के लिए कहा था। तिलक ने 8 जनवरी 1961 को नेहरू को पत्र लिखकर सावरकर से इसके जुड़ाव का हवाला देते हुए जेल को एक स्मारक में बदलने की मांग की थी।

नेहरू ने 15 जनवरी, 1961 को जवाब दिया। उन्होंने कहा, “मैं आपके इस सुझाव से सहमत नहीं हूं कि इस जेल या किसी अन्य जेल को स्मारक के तौर पर बरकरार रखा जाना चाहिए। भारत की हर जेल में काफी समय तक जाने-माने भारतीय रहे हैं। तो क्या हमें इन सभी जेलों को पुराने समय के स्मारक के तौर पर बनाए रखना चाहिए? अभी हाल ही में दिल्ली जिला जेल, जो कई सालों तक वहां रहने वाले जाने-माने लोगों की वजह से मशहूर थी, उसे गिरा दिया गया।” हालांकि, बाद में सेल्यूलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया और इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने फरवरी 1979 में किया था।