पिछले महीने झांसी के एक सरकारी अस्पताल में लगी आग से 18 नवजात शिशुओं की मौत ने एक बार फिर अस्पतालों में आग की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। यह घटना अब सुर्खियों में है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की अव्यवस्था, खराब रखरखाव और सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर करती है। एक ओर जहां सरकार और अस्पताल प्रशासन इसके कारणों की जांच कर रहे हैं, वहीं एक रिपोर्ट ने यह साबित किया है कि पिछले पांच सालों में ऐसी घटनाओं की संख्या बेहद चिंताजनक है।
जांच में पता चला कि अस्पतालों में सुरक्षा को लेकर गंभीर चूक हो रही है
इंडियन एक्सप्रेस ने 2019 से 2024 तक के बीच भारत के विभिन्न अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं पर शोध किया और पाया कि 11 प्रमुख अस्पतालों में आग लगने के कारण 107 लोगों की जान गई। इनमें से अधिकतर घटनाएं कोविड-19 के दौरान हुईं, जब अस्पतालों पर अत्यधिक दबाव था। हालांकि, इन घटनाओं में से कुछ मामलों में अस्पताल के मालिकों या प्रमुखों को जमानत मिल चुकी है, और अधिकतर मामलों में अभी तक न्यायिक प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। ये घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि अस्पतालों में सुरक्षा को लेकर गंभीर चूक हो रही है।
अस्पतालों में निर्माण के मानदंडों का भी काफी उल्लंघन देखा गया
आग लगने की घटनाओं के प्रमुख कारणों में शॉर्ट सर्किट, खराब बिजली का रखरखाव और अग्नि सुरक्षा उपकरणों की कमी शामिल हैं। कई अस्पतालों में अग्निशामक यंत्र, नलियां और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी जरूरी चीजें अनुपलब्ध थीं। इसके अलावा, कुछ अस्पतालों ने सुरक्षा प्रमाणपत्रों का नवीनीकरण तक नहीं कराया था, जिससे उनका संचालन अवैध हो गया था। कई मामलों में यह भी पाया गया कि अस्पतालों में निर्माण के मानदंडों का उल्लंघन किया गया और अवैध रूप से नए निर्माण किए गए थे, जो आग के खतरे को बढ़ाते हैं।
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कोविड-19 महामारी के दौरान जब अस्पतालों का दबाव बहुत बढ़ गया था, तब आग की घटनाओं में वृद्धि हुई। इन घटनाओं में सबसे प्रमुख गुजरात के पटेल वेलफेयर अस्पताल, महाराष्ट्र के विजय वल्लभ अस्पताल और दिल्ली के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल शामिल हैं। इन घटनाओं में शॉर्ट सर्किट, खराब रखरखाव और अग्निशमन सुरक्षा प्रणालियों की कमी के कारण मौतें हुईं।
दिल्ली के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में इस साल मई में आग लगी, जिसमें छह नवजात शिशुओं की जान चली गई। जांच में पाया गया कि अस्पताल में स्वीकृत बेड से ज्यादा बेड लगाए गए थे और सुरक्षा उपकरणों की भी कमी थी। इस घटना के बाद दिल्ली सरकार ने सभी अस्पतालों के लिए अग्नि सुरक्षा प्रमाणपत्र अनिवार्य करने की घोषणा की है।
वहीं, महाराष्ट्र के विजय वल्लभ अस्पताल में आग लगने से 15 लोग मारे गए। यहां की जांच में पाया गया कि अस्पताल में स्प्रिंकलर सिस्टम काम नहीं कर रहा था और अग्निशमन प्रणालियों में गंभीर खामियां थीं। इसी तरह, गुजरात के श्रेय अस्पताल में भी एक शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगी, जिसमें आठ लोगों की मौत हुई। यहां की जांच में यह सामने आया कि अस्पताल ने अग्निशमन सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया था।
कुल मिलाकर, इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अस्पतालों में आग की सुरक्षा प्रणाली पर गंभीर ध्यान देने की जरूरत है। कई अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा उपायों की कमी, खराब रखरखाव, और अदालती मामलों में लंबी प्रक्रिया ये सभी समस्याएं अस्पतालों में आग की घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं। अब यह समय है कि सरकार और अस्पताल प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाएं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके और अस्पतालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।