लोकसभा स्पीकर तय करने के लिए देश के पिछली बार विपक्षी संसदीय इतिहास में पहली बार चुनाव होगा और इसकी वजह यह है कि विपक्ष, सत्ता पक्ष के सामने इस मांग पर कर रहा कि अगर सत्ता पक्ष की तरफ से स्पीकर दिया जाता है, तो डिप्टी स्पीकर विपक्षी गठबंधन से होना चाहिए। ऐसे में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में सहमति न बनने के चलते अब स्पीकर का चुनाव बुधवार को होगा। स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद को लेकर संग्राम के बीच UPA शासन काल के दौरान एनडीए की ओर से बनाए गए चरणजीत सिंह अटवाल चर्चा में है, जिन्होंने उस दौरान के अपने कार्यकाल को एक संघर्ष बताया था।

2004 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों के कार्यकाल में लोकसभा का उपसभापति बना था। 2004 से 2009 के बीच बीजेपी के सहयोगी दल, अकाली दल के नेता चरणजीत सिंह अटवाल डिप्टी स्पीकर बने थे। बीजेपी के करिया मुंडा 2009 से 2014 तक इस पद पर रहे।

विपक्ष के लिए था मुश्किल समय

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2014-2019 तक AIADMK के एम थंबीदुरई को डिप्टी स्पीकर बनाय गया था, जो कि कांग्रेस विरोधी पार्टी के नेता माने जाते थे। वहीं मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान कोई भी डिप्टी स्पीकर नहीं था। अकाली दल से बीजेपी में आ चुके चरणजीत सिंह अटवाल ने कहा कि उन्हें अपने 20 साल पुराने कार्यकाल की जो बात याद है, वह यह कि भले ही वह डिप्टी स्पीकर थे, लेकिन फिर भी उस वक्त विपक्ष को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

अकाली दल ने की थी पैरवी

अटवाल ने कहा कि 2004 में अकाली दल के पास लोकसभा में आठ सांसद थे, जबकि भाजपा के पास 138 थे। प्रकाश सिंह बादल ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से उपसभापति के रूप में मेरा नाम आगे बढ़ाने को कहा। बादल सीनियर ने बीजेपी नेताओं से कहा कि इससे अच्छा संदेश जाएगा क्योंकि कांग्रेस ने एक सिख यानी डॉ मनमोहन सिंह को पीएम बनाया है।

अटवाल ने बताया कि कांग्रेस ने भी मेरा समर्थन किया। मैं सर्वसम्मति से उपसभापति चुना गया। उनके कार्यकाल के दौरान सबसे बड़ा संकट अगस्त 2005 में आया था। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के खिलाफ खड़ीं टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने अध्यक्ष पर कागजों का एक बंडल फेंक दिया था और उस वक्त चेयर पर अटवाल थे। ममता ने अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा उठाया था।

अटवाल के लिए चुनौतीपूर्ण था समय

अटवाल कहते हैं कि तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ममता बनर्जी को कुछ सवाल उठाने का मौका नहीं दिया था, जब मैं चेयर पर था, तब उन्होंने वही सवाल उठाने की कोशिश की, लेकिन अगर मैंने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी होती, तो यह एक गलत मिसाल होती, क्योंकि अध्यक्ष ने ऐसा नहीं किया था। इसलिए मैंने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी और वे चेयर पर कागज फेंककर बाहर चली गईं। अगले दिन, प्रेस ने मेरे आचरण की प्रशंसा की थी।

2008 का नोट फॉर वोट कांड

जुलाई 2008 में अटवाल को एक बार फिर उस समय मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जब विपक्षी सांसदों ने अचानक नोटों के बंडल दिखाते हुए दावा किया कि ये नोट सरकार के समर्थकों द्वारा, मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ विश्वास मत से पहले सांसदों को रिश्वत देने के लिए बांटे जा रहे हैं।

अटवाल सदन की अध्यक्षता कर रहे थे तभी बीजेपी सांसद अशोक प्रधान अपने एक साथी के साथ संसद के कर्मचारियों की मेज पर पहुंचे और मेज पर चमड़े के दो बैग रखकर उनमें से 100 रुपये के नोटों की गड्डियां निकालीं। उन्होंने दावा किया कि ये नोट उस रिश्वत का हिस्सा थे जो बाद में विश्वास मत से पहले दी जा रही थी। अटवाल कहते हैं कि यह 3 करोड़ रुपए थे, जैसे ही यह राशि सदन में रखी गई, मैंने इसे जब्त कर लिया। यह बहुत मुश्किल स्थिति थी, लेकिन मैं जल्द ही सदन की कार्यवाही फिर से शुरू करने में कामयाब रहा।