बीजेपी की जब भी बात की जाती है, दो युगों में उसे समझना जरूरी है। एक युग आडवाणी-वाजपेयी का माना जाता है तो दूसरा युग मोदी-शाह का कहा जा सकता है। इन दो युगों वाली बीजेपी में जमीन आसमान का फर्क है। एक मजबूर थी, गठबंधन पॉलिटिक्स पर निर्भर थी तो दूसरी वाली मजबूत है, फैसले लेने में ज्यादा सक्षम है और उसे किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं है। ये अंतर ही बताता है कि वर्तमान की एनडीए जिसमें 38 दल साथ तो हैं, लेकिन वो बीजेपी के लिए साथी से ज्यादा मेहमान मात्र हैं।
ये दिखाने की NDA क्यों?
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को छोड़ जो दूसरे 37 दल थे, उनका कुल वोट शेयर ही सिर्फ सात फीसदी के करीब था। उनके खाते में कुल सीटें भी सिर्फ 29 रहीं। 37 में से 25 दलों के पास ना तो कोई सांसद है और ना ही राष्ट्रीय राजनीति में कोई प्रतिनिधित्व है। यहीं कारण है कि एनडीए कहने को 38 दलों का एक संगठन है, लेकिन उसमें राज सिर्फ बीजेपी का चल रहा है। ऐसी परिस्थिति इसलिए बनी है क्योंकि कई सालों बाद देश की जनता ने किसी एक पार्टी को प्रचंड जनादेश देने का काम किया। इस जनादेश की वजह से ही बीजेपी मजबूत होती चली गई, उसकी ताकत बढ़ती गई, लेकिन कई सहयोगी दल छिटक गए या कह सकते हैं कि बीजेपी की बढ़ती ताकत में कहीं खो गए।
कैसे शुरू हुआ था NDA?
इस एनडीए का गठन साल 1998 में हुआ था। उस साल देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे थे। कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि सरकार में फिर वापसी होगी। दूसरी तरफ विपक्ष खुद को एकजुट करने की कोशिश में लगा था जैसे अभी कांग्रेस और दूसरे दल कर रहे हैं। लेकिन सभी को एकजुट करना मुश्किल था, ऐसे में इस मिशन को खुद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने लीड किया। दोनों का प्रयास रंग लाया और कुल 16 दल साथ आ गए। तब उस बड़े कुनबे को NDA का नाम दिया गया।
गठन के बाद से 33 दलों ने छोड़ा साथ
तब क्योंकि वो एनडीए की शुरुआत थी, ऐसे में कई दलों ने साथ आने का फैसला किया। उस समय एनडीए में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु और पुडुचेरी से एआईएडीएमके, बिहार और यूपी से समता पार्टी, महाराष्ट्र से शिवसेना, ओडिशा से बीजू जनता दल शामिल रही। इसके अलावा अकाली दल, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी साथ दिया। उस चुनाव में कुल 261 सीटें एनडीए ने अपने नाम की थी। लेकिन एनडीए का ये स्वरूप साल दर साल बदलता गया। ममता बनर्जी से लेकर शरद पवार तक, नवीन पटनायक से लेकर चंद्रबाबू नायडू तक, कई ने अपने अलग रास्ते चुने। जिन पार्टियों ने समय के साथ खुद को एनडीए से अलग किया, वो आंकड़ा 33 तक पहुंच चुका है। कुछ नए पार्टनर जरूर साथ आए हैं, लेकिन छोड़ने वालों की लिस्ट काफी लंबी है।
इसी वजह से अब जब बीजेपी दावा कर रही है कि उसके साथ 38 दल जुड़ चुके हैं, ये सिर्फ एक धारणा बनाने की कोशिश है। वो कोशिश जहां पर विपक्ष के ‘इंडिया’ को छोटा दिखाया जाए।
