एनसीईआरटी ने हाल ही में सिलेबस कटौती करने का ऐलान किया था। इसी कड़ी में नौवीं और दसवीं कक्षा के छात्रों के सिलेबस में काफी बदलाव हुआ। पॉलिटिकल साइंस के चैप्टरों में तो काफी कटौती देखने को मिली। अब कुछ लोग इसका स्गवात कर रहे हैं तो कुछ इसे राजनीति से प्रेरित भी मान रहे हैं। इसी कड़ी में योगेंद्र यादव और सुहास पालिशकर ने इन बदलावों पर नाराजगी जाहिर की है और अपना नाम वापस लेने की बात कही है।
क्यों नाराज योगेंद्र यादव?
असल में 2006-07 में पब्लिश हुईं कक्षा 9वीं से 12वीं तक की पॉलिटिकल साइंस की किताबों में दोनों योगेंद्र यादव और सुहास पालिशकर का जिक्र है। वे दोनों ही उन किताबों के लिए प्रमुख सलाहकार रहे हैं। लेकिन अब जब उन्हीं किताबों में इतने बदलाव किए जा रहे हैं, दोनों नाराज हैं और इस कटौती को गैर जरूरी मान रहे हैं। इसी कड़ी में दोनों की तरफ से काउंसिल को एक पत्र लिखा गया है जिसमें कई मुद्दों पर नाराजगी जाहिर की गई है।
सरकार को खुश करने के लिए बदलाव?
चिट्ठी में लिखा है कि हम इस कटौती के पीछे कोई मतलब नहीं समझते हैं। जरूरत से ज्यादा कंटेंट हटा दिया गया है। उस गैप को भरने की कोशिश तक नहीं हुई है। ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि हर टेक्स्ट के पीछे एक लॉजिक होता है, जब उसे बिना सोचे-समझे काट दिया जाता है, तब टेक्स्ट का असल अर्थ ही खत्म हो जाता है। सिर्फ सत्तारूढ़ सरकार को खुश करने के लिए ये सब किया जा रहा है।
NCERT का क्या तर्क?
अब जानकारी के लिए बता दें कि कुछ समय पहले ही एनसीईआरटी ने बड़े बदलाव किए थे। उन बदलावों के तहत गुजरात दंगों की जहां भी रेफरेंस थी, उन्हें हटा दिया गया, इसी तरह मुगलों का जिक्र काफी कम कर दिया गया और सामाजाकि आंदोलन वाले कई चैप्टर भी हटा दिए गए। एनसीईआरटी का तर्क रहा कि छात्रों की मेंटल हेल्थ को ध्यान में रखते हुए ये फैसला हुआ। इस बात पर भी जोर दिया गया कि ये बदलाव सिर्फ 2023-24 को लेकर है, ऐसे में आगे सिलेबस में और भी कई चीजें बदल सकती हैं।