राजद्रोह कानून पर चर्चाओं के बीच एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। सबसे ज्यादा राजद्रोह के मामले बिहार में दर्ज किए गए हैं। इसके बाद तमिलनाडु और फिर उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में 10 सालों का ये डेटा पेश किया गया है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2010 से 2020 तक, बिहार में 168 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद तमिलनाडु (139), उत्तर प्रदेश (115), झारखंड (62), कर्नाटक (50) और ओडिशा (30) हैं।
राज्यों में राजद्रोह के मामलों की संख्या (2010-2020)
बिहार- 168
तमिलनाडु- 139
उत्तर प्रदेश- 115
झारखंड- 62
कर्नाटक- 50
ओडिशा- 30
हरियाणा- 29
जम्मू-कश्मीर- 26
पश्चिम बंगाल- 22
पंजाब- 21
गुजरात- 17
हिमाचल प्रदेश- 15
दिल्ली- 14
लक्षद्वीप- 14
केरल- 14
2016 और 2019 के बीच, देशद्रोह के मामलों की संख्या में 160 प्रतिशत (93 मामले) की वृद्धि हुई, लेकिन 2019 में सजा की दर 3.3 फीसद थी। इसका मतलब है कि 93 में से सिर्फ दो आरोपियों को दोषी ठहराया गया।
राजद्रोह कानून को लेकर क्या चाहती है सरकार?
राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारी 124A को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट में 124A की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा था कि इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि 1962 में संविधान बेंच के फैसले के मुताबिक, इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। सुनवाई के दौरान सरकार ने 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले का जिक्र भी किया था।
कब और क्यों लगता है राजद्रोह
अगर कोई व्यक्ति सरकार विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, या इस तरह की सामग्री का समर्थन करता है या फिर राष्ट्रीय चिन्हों के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उस शख्स के खिलाफ आईपीसी की धारी 124A में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा, अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के साथ अनजाने में भी संबंधित पाया जाता है या सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।