राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सड़क पर रहने वाले बेघर बच्चों (Street Children) को लेकर राज्यों को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि राज्य इन बच्चों के लेकर कुछ योजना बनाए, इन्हें या तो माता-पिता के पास भेजा जाए या फिर बाल गृह में रखा जाए। आयोग के इस फैसले की आलोचना भी हो रही है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इसे एक अस्थाई उपाय बताए हुए कहा है कि यह सितंबर में दिल्ली में होने जा रही जी20 समिट को देखते हुए किया जा रहा है। ताकि भारत में रहने वाले बेघर बच्चों की खराब हालत को छिपाया जा सके।
NCPCR के आदेश में क्या है?
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने 13 अप्रैल को सभी राज्यों में बाल कल्याण के लिए जिम्मेदार विभागों को एक पत्र लिखा है, इस पत्र में 2021 और 2022 में जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला दिया गया है जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए योजना पेश करने को कहा गया था।
पत्र में आगे लिखा गया है, “इस संबंध में आपसे अपने संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में चिन्हित हॉटस्पॉट की सूची देने करने का अनुरोध किया जाता है। इसके अलावा आप 1 मई से 31 मई, 2023 तक अपनी योजना बनाकर पेश कर सकते हैं जिसमें आप ऐसे बच्चों को चिन्हित करेंगे जो सड़कों पर रहने को मजबूर हैं”
पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पत्र लिखे जाने से पहले राज्यों के साथ हुई बैठकों में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई है और यही अनुरोध भी किया गया है लेकिन राज्यों ने इस मामले में किसी तरह की प्रोग्रेस नहीं दिखाई है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के मुताबिक स्ट्रीट चिल्ड्रन वह हैं जो सड़कों पर अपने समय का एक बड़ा हिस्सा बिताते हैं, एक विस्तृत श्रेणी जिसमें भीख मांगते बच्चे, अनाथ बच्चे शामिल हैं साथ ही वे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं और सड़कों पर रहने को मजबूर हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जताया विरोध
सामाजिक कार्यकर्ता निर्मल गोराना ने कहा कि सड़क पर रहने वाले बच्चों की समस्या पर सरकार की प्रतिक्रिया हमेशा सतही रही है और इसे लेकर कोई ठोस योजना नहीं है। उन्होने कहा, “वे कभी-कभार बचाव अभियान चलाते हैं और बचाए गए बच्चों को उनके माता-पिता को लौटाने से पहले बाल गृहों में रखते हैं। अभी जो निर्देश आया है उसे जी20 में आने वाले प्रतिनिधियों से सच्चाई को छिपाने के लिए लाया गया है।
इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट के सदस्य अशोक अग्रवाल ने कहा कि कमजोर बच्चों की देखभाल के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह हैं। लेकिन सरकार के पास इसे लेकर किसी तरह की योजना नहीं है।