अनामिका सिंह

नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह से हो चुकी है लेकिन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबें बाजारों में उपलब्ध नहीं हैं। वजह किताबों की छपाई ना होना बताया जा रहा है। जिसके चलते दिल्ली में छात्रों व अभिभावकों को निजी स्कूलों व निजी प्रकाशकों का शिकार बनना पड़ रहा है। अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए कई गुना दामों पर निजी स्कूल प्रशासन के फरमान के चलते अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदनी पड़ रही हैं। वहीं इस बीच एनसीईआरटी की नकली किताबें बेचने की खबर भी सामने आ रही है।

बता दें कि कोर्ट द्वारा सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों में राज्यस्तरीय स्टार्टअप अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) व एनसीईआरटी द्वारा पढ़ाए जाने का साफ निर्देश दिया गया है। बावजूद इसके दिल्ली में निजी स्कूल प्रशासन, निजी प्रकाशकों के साथ मिलकर एनसीईआरटी के मुकाबले कई गुना अधिक महंगी किताबें बेच रहे हैं। यही नहीं कई स्कूलों में, स्कूल से मिलने वाली कापी, डायरी, रजिस्टर, ड्राइंग शीट तक खरीदना अनिवार्य कर दिया गया है।

उदाहरण के लिए जहां नौंवी कक्षा की एनसीईआरटी की किताब 1150 रुपए में आती है, वहीं निजी प्रकाशकों की किताबें 8-10 हजार रुपए में बेची जा रही हैं। जबकि प्रावधान है कि सभी सरकारी व गैर सरकारी स्कूल अपनी जरूरत के हिसाब से किताबें छपवाने की जानकारी एनसीईआरटी को मुहैया करवाएंगे लेकिन कोई भी निजी स्कूल ये जानकारी मुहैया नहीं करवाता है। बल्कि निजी प्रकाशकों के साथ मिलकर महंगे दामों पर किताबें खरीदने का अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं। ये सीधे तौर पर कोर्ट के आदेश की अवमानना भी है।

मालूम हो कि एनसीईआरटी की किताबें विशेषज्ञों की देख-रेख में मानकों के अनुकूल तैयार की जाती है। इसी बीच हैरानी की बात यह भी सामने आई है कि जब एनसीईआरटी की किताबें अभी तक बाजारों में पूर्ण संख्या में उपलब्ध नहीं है तो हूबहू नकली किताबें छाप कौन रहा है। नकली किताबों की बात को एनसीईआरटी के वरिष्ठ अधिकारी भी मान रहे हैं।

इससे सरकारी राजस्व में भी कमी आएगी क्योंकि एनसीईआरटी केंद्रीय शिक्षा विभाग के अधीनस्थ है। साथ ही सवाल यह भी उठता है कि नकली किताब छापने वालों को एनसीईआरटी की किताबें छापने में प्रयोग होने वाला कागज कहां से मिल रहा है और ऐसे प्रकाशकों पर एनसीईआरटी कार्रवाई क्यों नहीं करती है। अगर ऐसे प्रकाशकों पर एनसीईआरटी समय रहते कार्रवाई करे तो नकली किताबों का बाजार तैयार नहीं होगा और ना ही छात्र व अभिभावक उनका शिकार बनेंगे।

निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए दबाव बना रहा विद्यालय

पश्चिमी दिल्ली में रहने वाले एक अभिभावक विवेक कुमार ने बताया कि उनकी बेटी निजी स्कूल में पढ़ती है। स्कूल प्रशासन द्वारा निजी प्रकाशकों की किताबें व कापी खरीदने का उन पर दबाव बनाया गया। मजबूरी में उन्हें उसे खरीदना पड़ा, अब स्कूल प्रशासन एनसीईआरटी की किताबें खरीदने को भी कह रहा है जो उन्हें कई चक्कर लगाने के बाद भी अभी तक स्टेशनरी दुकानों पर नहीं मिल पाई है।

किताबें बदलने से हो रही परेशानी

लक्ष्मी नगर में रहने वाली पिंकी ने बताया कि उनका बेटा छठीं कक्षा में पढ़ता है। एनसीईआरटी ने इस साल किताबों को संशोधित किया है, जिससे नई किताबें अभी तक स्टेशनरी दुकानों पर आई ही नहीं है। वहीं अपने वरिष्ठ छात्र से प्रयोग की गई किताबों को उसने आधे दामों पर खरीदा भी लेकिन उसके लिए स्कूल की शिक्षिका मना कर रही हैं। ऐसे में बच्चा रोज स्कूल में डांट खा रहा है।

निजी प्रकाशकों की मौज : अपराजिता गौतम

दिल्ली अभिभावक संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने कहा कि जब एनसीईआरटी को पता है कि अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होने वाला है तो उन्हें एक महीना पहले ही तैयारियां पूरी करनी चाहिए थीं। किताब छापने के लचर रवैए से निजी प्रकाशकों की मौज हो गई है। वहीं नकली किताबें हर साल बाजार में आ रही है पर इसे लेकर भी एनसीईआरटी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। जिसका फायदा निजी स्कूल व निजी प्रकाशक हर साल उठा रहे हैं।

जल्द खत्म होगी किल्लत : दिनेश सकलानी

एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा कि हर साल शैक्षणिक सत्र के शुरुआत में किताबों की कमी होती है। इसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। अभिभावक घबराएं नहीं और नकली किताबें न खरीदें। एनसीईआरटी की सभी किताबें वेबसाइट पर हैं और वहां से उन्हें मुफ्त डाउनलोड कर छात्र पढ़ सकते हैं। एनसीईआरटी की कुछ किताबों में संशोधन व अद्यतन का कार्य हुआ है, नई शिक्षा नीति के तहत भी काम हो रहा है इसीलिए फाउंडेशन कोर्स व ब्रिज कोर्स मासिक कार्यक्रम वेबसाइट पर अप्रैल माह के लिए डाला गया है। मई तक किताबें उपलब्ध हो जाएंगी।