आइएनएस विक्रांत के नौसेना को मिलने के बाद अब भारत के तीसरे विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विशाल को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। यह अपनी श्रेणी का तीसरा युद्धपोत होगा, जिसकी जरूरत को लेकर अरसे से चर्चा चल रही है। आइएनएस विशाल को भी विक्रांत की तरह ही स्वदेश में तैयार किए जाने की योजना बनाई गई है। नौसेना के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में इसे निर्मित किए जाने की योजना है।

आइएनएस विशाल के 65 हजार टन वजनी होने की संभावना है। यह भारत का सबसे बड़ा विमानवाहक युद्धपोत होगा। आइएनएस विक्रमादित्य और आइएनएस विक्रांत का वजन 45 हजार टन है। आइएनएस विशाल पर 55 लड़ाकू विमानों को तैनात किए जाने की योजना है। जबकि, विक्रांत पर करीब 35 और विक्रांत पर 30 लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं।

अभी भारत के पास दो विमानवाहक युद्धपोत -आइएनएस विक्रमादित्य और आइएनएस विक्रांत हैं। दो सितंबर को नौसेना में शामिल आइएनएस विक्रांत देश में बना पहला और सबसे बड़ा पोत है। विक्रांत से पहले भारत के पास आइएनएस विक्रमादित्य के रूप में एकमात्र विमानवाहक युद्धपोत था। विक्रमादित्य को रूस से खरीदा गया था।

अब चर्चा आइएनएस विशाल परियोजना की। मई 2012 में नौसेना तत्कालीन प्रमुख एडमिरल निर्मल वर्मा ने कहा था कि देश में बनने वाले दूसरे विमानवाहक युद्धपोत के लिए अध्ययन किया जा रहा है। वर्ष 2012 में ही आइएनएस विशाल के डिजाइन का काम नौसेना की नेवल डिजाइन ब्यूरो ने शुरू किया। शुरू में नौसेना की योजना थी कि डिजाइन के लिए किसी देश की मदद नहीं ली जाए। बाद में इसके लिए रूसी मदद लेने का फैसला किया गया।

वर्ष 2013 में नौसेना ने आइएनएस विशाल पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एअरक्राफ्ट लांच सिस्टम लगाने की योजना को लेकर अमेरिका से संपर्क किया था। 2015 में ओबामा के राष्ट्रपति रहने के दौरान अमेरिका ने कहा कि वह भारत को यह प्रणाली और अन्य तकनीक बेचने के पक्ष में है। वर्ष 2015 में ही आइएनएस विशाल की डिजाइन के लिए नौसेना ने चार देशों-ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका और रूस की रक्षा कंपनियों से संपर्क साधा। नौसेना ने इन कंपनियों से युद्धपोत की तकनीकी और लागत से जुड़ी जानकारी मांगी थी।

अगस्त 2015 में भारत और अमेरिका ने आइएनएस विशाल की डिजाइनिंग और डेवलपमेंट के लिए एक संयुक्त कार्य समूह बनाया। अक्तूबर 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आइएनएस विशाल के लिए ईमाल्स से जुड़ी तकनीक भारत को देने को मंजूरी दे दी। दिसंबर 2018 में नौसेना तत्कालीन प्रमुख सुनील लांबा ने कहा कि आइएनएस विशाल की योजना पर काम आगे बढ़ गया है और जहाज का निर्माण अगले तीन साल में शुरू होने की संभावना है। अप्रैल 2021 में नौसेना ने फैसला किया वह अब आइएनएस विक्रमादित्य की जगह आइएनएस विशाल को लाएगी। नवंबर 2021 में नौसेना ने आइएनएस विशाल की डिजाइन में थोड़ा बदलाव लाने के लिए चर्चा शुरू की।

इसमें आइएनएस विशाल को लड़ाकू विमानों के उतरने के स्वचालित और व्यक्ति आधारित- दोनों तरह के डिजाइन तैयार करने और वर्तमान आकार-वजन (65 हजार टन) को थोड़ा घटाने पर विचार किया गया। आकार घटाने से कैरियर का वजन, लागत और इसे बनने में लगने वाला समय घटेगा।

अप्रैल 2022 में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ने आइएनएस विशाल में इलेक्ट्रिक सिस्टम के सिलसिले में जनरल इलेक्ट्रिक के मालिकाना हक वाली ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनी जीई पावर के साथ करार किया।

आइएनएस विशाल को लेकर रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि भारतीय प्रायद्वीप के दोनों किनारों पर लंबे समुद्र तटों और शत्रुतापूर्ण चुनौतियों की वजह से तीसरे विमानवाहक युद्धपोत की जरूरत है। इसी समिति ने इस साल मार्च में लोकसभा में पेश एक और रिपोर्ट में नौसेना की योजनाओं के बारे में बताते हुए इसका जिक्र किया था। नौसेना चाहती है कि देश के पास हर समय कम से कम तीन युद्धपोत रहें, ताकि अगर एक को रखरखाव की भी जरूरत पड़े, तो दो हमेशा सेवा में तैनात रहें।

चीनी चुनौती और तैयारी

आइएनएस विशाल को वर्ष 2030 तक नौसेना में शामिल किए जाने की योजना है। शुरू में इसके 2020 तक नौसेना में शामिल होने की उम्मीद थी, लेकिन कई कारणों से यह परियोजना शुरू नहीं हो सकी। हाल के वर्षों में भारत के आसपास के समुद्री इलाकों, खासतौर पर हिंद महासागर में चीन की पहुंच बढ़ी है। अब तक चीन के पास लिओनिंग और शेडोंग नाम से दो विमानवाही पोत थे और इस साल जून में उसने अपना तीसरा पोत नौसेना में शामिल किया है। यह चीन में निर्मित और अत्याधुनिक कैटोबेर तकनीक से लैस चीन का पहला युद्धपोत है। इसे देखते हुए भारत में आइएनएस विशाल जैसी परियोजना पर जोर दिया जा रहा है।