नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की तरफ से जारी रिपोर्ट में देश में रोजगार और कामगारों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। NSSO के तहत पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे में भारत में रोजगार की असामान्य सी तस्वीर देखने को मिल रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों में सबसे अधिक है। साल 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी थी। डाउन टू अर्थ वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार रिपोर्ट में तीन श्रेणियों कामगारों का आंकड़ा एकत्रित किया है। ये तीन श्रेणिया स्वरोजगार, नियमित वेतन/सेलरी और कैजुअल वर्कर्स की हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में एक ग्रामीण मजदूर सप्ताह में 48 घंटे की मजदूरी करता है। जबकि शहरों में काम का यह घंटा बढ़कर 56 हो जाता है। इससे स्पष्ट है कि ग्रामीण मजदूरों की तुलना शहरों में अधिक काम करना पड़ रहा है। शहरों में काम करने वाले लोग गांवों में मजदूरी करने वाले लोगों की तुलना में अधिक काम करने को मजबूर है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि स्वरोजगार श्रेणी में पुरुष एक सप्ताह में 50-51 घंटे काम करते हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को 37-40 घंटे काम करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों को 58-59 घंटे जबकि महिलाओं को 41-42 घंटे भी काम करना पड़ जाता है।
शहरों में काम करने वाले नौकरीपेशा लोग एक सप्ताह में 57-58 घंटे काम करते हैं। वहीं शहरों में नौकरीपेशा महिलाएं एक सप्ताह में 50 घंटे काम करती हैं। हालांकि, शहरों में महिलाओं और पुरुष दोनों को दो से तीन घंटे अतिरिक्त काम भी करना पड़ता है।
यहां तक कि कैजुअल वर्कर के भी नौकरी के अवसर कम हैं लेकिन उसके अपने काम में अधिक समय बिताना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कैजुअल वर्कर एक सप्ताह में 44-46 घंटे काम करते हैं, वहीं महिलाएं 37 से 39 घंटे काम करती हैं। शहरों में महिलाओं के काम के घंटे 39-42 प्रति सप्ताह हो जाते हैं।
40 घंटे है स्टैंडर्ड टाइमः ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OCED) के अधिकतर सदस्य देशों का मानना है कि एक सप्ताह में स्टैंडर्ड वर्किंग टाइम 40 घंटे हैं। पीएलएफएस की रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि भारत में सभी कामगारों को अधिक काम करने के बावजूद सुरक्षित रोजगार नहीं मिल पाता है। इतना ही नहीं गैर कृषि क्षेत्र में वेतनभोगी कर्मचारियों में से 49.6 फीसदी को सामाजिक सुरक्षा का लाभ भी नहीं मिलता है। सामाजिक सुरक्षा से वंचित महिलाओं के प्रतिशत पुरुषों से अधिक (51.8 प्रतिशत) है।