जम्मू और कश्मीर मसले पर अपने पद से इस्तीफा देने वाले आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथन ने कहा है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्र हित में लिया गया फैसला सही हो उसे स्वीकारा जाए। बता दें कि उन्होंने कश्मीर के हालात पर दुखी होते हुए विरोध में यह कदम उठाया था। केरल निवास गोपीनाथन 2012 बैच के आईएएस अफसर हैं। दमन और दियू के साथ दादरा और नगर हवेली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में वह ऊर्जा और गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों सरीखे अहम विभागों के सेक्रेट्री हैं। फिलहाल उनका इस्तीफा स्वीकारा नहीं गया है। साथ ही उन्हें ड्यूटी पर फौरन लौटने के आदेश भी दिए गए हैं। इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने विस्तार से समझाया कि आखिर इन्होंने इस्तीफा क्यों किया और भविष्य में उनकी क्या करने की योजना है।
इस्तीफे का कारण पूछने पर उन्होंने बताया, “मेरा फैसला आवेग में नहीं लिया गया था। वह जज्बाती फैसला था, क्योंकि मुझे उस चीज के बारे में बुरा लगा। और मैं उस पर बात करना चाहता था। मैं जिस सेवा में हूं, उसमें नियम-कानून मुझे इस चीज को जाहिर करने की अनुमति नहीं देते हैं। मुझे लगा कि इस मुद्दे पर (कश्मीर) खुल कर अपनी बात रखना जरूरी है, इसलिए मैंने पहले इस्तीफा दिया और फिर आजादी दोबारा हासिल करने की ठानी।”
बकौल गोपीनाथन, “मैं साफ कर दूं कि इसका (इस्तीफे का) सरकार के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के फैसले से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार को प्रशासनिक फैसले लेने का अधिकार है और न्यायपालिका उस फसैले की वैधता को संवैधानिक-लोकतांत्रिक तरीके से मापेगी। पर जब आप किसी को कड़वी दवा या फिर इंजेक्शन देते हैं, तब क्या उस बच्चे या युवक को रोने का अधिकार भी नहीं है?”
यह पूछे जाने पर कि देश में और भी मुद्दे हैं, आप सिर्फ कश्मीर मसले पर ही क्यों बोले? उनका जवाब आया- कोई भी व्यक्ति विभिन्न कारणों से सभी मुद्दों पर अंदर से एक जैसा महसूस नहीं कर सकता। अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर मैं हमेशा से मुखर रहा हूं। यह सिर्फ जम्मू-कश्मीर की बात नहीं है। यहां मैं इस दौर में यह चीज नहीं स्वीकारूंगा, जब भारत जैसा मजबूत लोकतांत्रिक देश ऐसा कुछ करने की कोशिश करे। और वह भी तब जब, ऐसी चीज राष्ट्र हित में हो। लेकिन, इस तरह अमल में लाई गई चीजें या फिर राष्ट्र हित को और विस्तार देना जरूरी नहीं है कि स्वीकार ही किया जाए।
आगे क्या करेंगे? गोपीनाथन ने बताया, “कल, मैंने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के एक हलफनामे (सुप्रीम कोर्ट में मीडिया की आजादी को लेकर) को पढ़ा। सरकार हमेशा से फलां-फलां करना चाहती है। और यह ठीक भी है, पर लोकतंत्र में बाकी संस्थाएं क्या कर रही हैं, वे सरकार के फैसलों पर क्या और कैसी प्रतिक्रियाएं दे रही हैं? और यही वजह है कि हम उन संस्थाओं को लोकतंत्र में अलग करते हैं। हम सभी सरकार का हिस्सा नहीं है। मैं सरकार का हिस्सा था, इसलिए यह सवाल उठता था कि आप इस पर क्यों मुखर हो रहे हैं? लेकिन आप सरकार का हिस्सा नहीं है, तब यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आप सच तलाशें। फिर चाहे वह कितना भी कड़वा ही क्यों न हो, ताकि वह जनता तक पहुंच सके। हम परिपक्व लोकतंत्र हैं, जहां हमें मालूम है कि मतभेद और पीड़ा की स्थिति में कैसे पेश आना है।”
बता दें कि मोदी सरकार जम्म-कश्मीर के हालात सुधारने के मकसद से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने वाला जम्मू-कश्मीर पुनःगठन बिल पास करा चुकी है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर राज्य के बजाय दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू और कश्मीर व लद्दाख) में बांटा गया है। विपक्षी दल से लेकर पाकिस्तान तक ने मोदी सरकार के इस फैसले पर काफी हो-हल्ला किया था। इसे असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक निर्णय बताते हुए दावा किया था कि कश्मीर के लोगों की आवाज को सरकार ने दबाया है।

