पीएम मोदी बुधवार को 75 साल के हो गए हैं। वह यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने भारत की बुनियादी राजनीतिक समझदारी को नए सिरे से परिभाषित किया है। राजनीति तब सबसे ज्यादा शक्तिशाली होती है जब व्यापक जनसमूह को अपने आसपास की दुनिया को समझने का नया नजरिया देती है और मोदी की राजनीति ने बीजेपी और उसकी विचारधारा हिंदुत्व को भी ऐसा ही नजरिया दिया है।
मोदी अब लगातार सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ने की राह पर हैं। प्रधानमंत्री ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी लगातार नेहरूवादी सांस्कृतिक सहमति को नया रूप देती रहे ताकि बीजेपी के लिए जगह बनाई जा सके। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पिछली बीजेपी सरकार से एक बदलाव के रूप में, इसने पार्टी को उन मुफस्सिल युवाओं के विशाल वर्ग तक पहुंचने में मदद की है। इनके लिए कुलीन सत्ता के गलियारे बंद हो गए थे।
इस दिशा में पीएम मोदी ने खुद को उनमें से एक के तौर पर पेश किया है, जो नेहरू गांधी परिवार के मूल आधार माने जाने वाले अंग्रेजीदां अल्पसंख्कों के उलट हैं। यह वहीं पुराना अभिजात वर्ग है जो अब खुद को हाशिये पर धकेला हुआ महसूस कर रहा है और प्रधानमंत्री ने 2017 में इस टकराव को हार्वर्ड बनाम कड़ी मेहनत के तौर पर परिभाषित किया था। यही वजह है कि मोदी पर सूट-बूट की सरकार चलाने का कांग्रेस का आरोप सही साबित नहीं हुआ है।
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पीएम मोदी ने अपनी पार्टी से हटाया एक ये भी ठप्पा
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पार्टी बीजेपी से एक और ठप्पा हटाने में भी मदद की है। वह बनिया-ब्राह्मण या मोटे तौर पर एक ऊंची जाति की पार्टी के होने का है। मोदी की बात करें तो कई ओबीसी के नेता बीजेपी में बड़े पदों पर हैं। वहीं उनकी सरकार में एक दलित और फिर एक आदिवासी राष्ट्रपति पद पर पहुंचे हैं। इसका फायदा चुनावों में साफ हो चुका है। यहां बीजेपी ओबीसी और दलित वोटों का एक अहम हिस्सा जीत रही है।
जब विपक्षी दलों ने जाति जनगणना की मांग करके उन्हें रोकने की कोशिश की तो मोदी सरकार ने जाति जनगणना कराने की घोषणा कर दी। यह सब कुछ ऐसे वक्त में हुआ जब भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व को बरकरार रखा है और अपने ज्यादातर वैचारिक वादों पर कामयाबी हासिल की है। अयोध्या में राम मंदिर बन गया है, जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा दिया गया है। वहीं यूसीसी और वन नेशन वन इलेक्शन की दिशा में शुरुआत हो चुकी है। राजनीति में आए इस बदलाव को देखते हुए विपक्षी दल भी अब मुसलमानों के बारे में खुलकर बात करने से कतराने लगे हैं और सत्ता में आने के 11 साल बाद भी इन बदलावों के केंद्र में मोदी ही हैं।
धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए पीएम मोदी
17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर के एक मोध-घांची परिवार में जन्मे मोदी धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। उन्हें 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 के गुजरात दंगों ने कुछ समय के लिए उनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगा दिया था, प्रधानमंत्री वाजपेयी ने खुलेआम उनसे नाराजगी जताई थी और कई देशों ने उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया था। चौतरफा बदनामी के उस दौर से गुजरने के बाद, मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और विकास पुरुष के तौर पर नई पहचान बनाई।
बंगाल से दूर हुई टाटा नैनो को गुजरात में जगह मिल गई, जबकि वाइब्रेंट गुजरात समिट को निवेश के शोकेस के रूप में लोकप्रिय बनाया गया। विदेशों में बसे विशाल गुजराती समुदाय ने एक अलग नेता के इस संदेश को और भी पुख्ता कर दिया। तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद मोदी के लिए केंद्र की राह तैयार थी। यूपीए से लगातार दो हार झेलने के बाद बीजेपी सत्ता में आने के लिए तैयार थी। लालकृष्ण आडवाणी ने कोई विरोध नहीं किया।
जब 2014 में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया। 30 सालों में पहली बार किसी सरकार को ऐसा सफलता मिली थी। बीजेपी नेता और पूर्व सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव कहते हैं, “मोदी जी सभी भेद-भाव को तोड़ पाए और जाति, शहरी-ग्रामीण और अन्य विभाजनों से परे लोगों का विश्वास जीत पाए, इसका कारण उनका यह विश्वास था कि प्रदर्शन और विकास को पुरस्कृत किया जाएगा।”
भाजपाई व्यवस्था आ गई है- बीजेपी नेता
बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे ने कहा, “रजनी कोठारी ने एक बार कांग्रेसी व्यवस्था की बात की थी। अब वह व्यवस्था खत्म हो गई है और भाजपाई व्यवस्था आ गई है। बीजेपी ने यह उपलब्धि तीन कारकों से हासिल की है, प्रधानमंत्री मोदी का मजबूत नेतृत्व, विचारधारा और सभी विचारधारा-आधारित एजेंडों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, क्योंकि यही हमारी प्रेरणा का मुख्य स्रोत हैं और सुशासन व विकास पर जोर। उन्होंने संगठन के लिए शासन से कभी समझौता नहीं किया और संगठन के लिए भी यही बात लागू होती है।”
वैश्विक मंच पर पहले से ज्यादा सहज दिख रहे पीएम मोदी
मोदी समर्थकों का मानना है कि इस महारथ ने अपनी स्पीड नहीं खोई है। पाकिस्तान के खिलाफ अपनी सैन्य सफलताओं में ऑपरेशन सिंदूर को शामिल करने के बाद प्रधानमंत्री अब विश्व मंच पर पहले से कहीं ज्यादा सहज दिख रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित बदलावों के कारण यह मंच अस्थिर हो गया है, ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या मोदी एक बार फिर अपनी टाइमिंग सही कर पाते हैं।
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