राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विदेशी धरती पर राजनीति का खेल खेलने का आरोप लगाते हुए बुधवार को कहा कि यह गंभीर विषय है। इससे देश की छवि बिगड़ी है।

पटना में आयोजित पार्टी के छठे महाधिवेशन में पवार ने मोदी पर निशाना साधते हुए ये बातें कहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी विकास के नाम पर सभी संसाधनों का उपयोग भगवा एजंडा लागू करने के लिए कर रही है। पवार ने कहा कि देश का हर बड़ा परिवर्तन बिहार से होकर दिल्ली पहुंचता है।

लालकृष्ण आडवाणी का धर्म रथ बिहार में ही रोका गया था। पवार को विश्वास है कि बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी सरकार के खोखले आश्वासन व नारों का पर्दाफाश होगा और उसे करारी शिकस्त मिलेगी। पवार ने कहा कि समाज में सद्भाव मिटाकर जहर घोला जा रहा है। अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों पर हमले किए जा रहे हैं। घर वापसी व लव जिहाद जैसे नारे बुलंद किए जा रहे हैं। भाई-भाई के बीच विद्वेष फैलाया जा रहा है और सरकार इन प्रतिक्रियावादी तत्त्वों पर लगाम लगाने की कोशिश भी नहीं कर रही है।

उन्होंने कहा कि भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की कही गई बातें ध्यान देने योग्य हैं। नई दिल्ली में दिए अंतिम भाषण में उन्होंने साफ कहा था कि भारत तभी सफल हो सकता है जब वह सभी धर्मों का सम्मान करे। अमेरिका लौटकर राष्ट्रीय प्रार्थना सभा में आबोमा ने कहा था कि भारत में धार्मिक झगड़ों से उत्पन्न असहिष्णुता के ऐसे तथ्य सामने आए हैं जिससे शांतिदूत महात्मा गांधी भी सदमे में आ जाते।

पवार ने कहा कि प्रधानमंत्री अपनी हर बात में आर्थिक विकास की बात करते हैं लेकिन अपने किसी भी भाषण या ‘मन की बात’ में देश की आम जनता की बदहाली का जिक्र नहीं करते। कर्ज के मारे किसान आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन सरकार किसानों की सुध लेने के बजाय आंकड़ों के हेरफेर से यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि आत्महत्या करने वालों में गैर किसान कितने हैं। पवार ने कहा- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में 52 फीसद किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। जनधन योजना जैसी तमाम बातों के बावजूद छोटे किसानों को सस्ता कर्ज देने की कोई सरकारी योजना सफल नहीं हुई।

सरकार आए दिन डीजल, खाद पर सबसिडी घटाने के संकेत देती है जबकि फसल का समर्थन मूल्य बढ़ाने में आनाकानी करती है। उन्होंने कहा कि सीएसडीएस ने कुछ महीने पहले 18 राज्यों में किसानों का सर्वेक्षण किया था। उसमें पाया गया कि आर्थिक तकलीफों के कारण दस में से छह किसान खेती छोड़ना चाहते हैं बशर्ते उन्हें वैकल्पिक रोजगार मिले।

पवार ने कहा कि भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र में लिखा था कि कृषि विकास, किसानों की आय में बढ़ोतरी और ग्रामीण विकास को अहमियत दी जाएगी। लेकिन आज कृषि और किसान दोनों संकट में हैं। तमाम समस्याओं का हल मोदी ने किसानों को भूमिहीन बनाने के लिए नए कानून से दिया है। उन्हें किसानों के कर्ज से अधिक अपना कर्ज उतारने की फिक्र है। जिन लोगों ने उनके चुनाव अभियान में दिल खोलकर अपना धन लगाया था उनका दबाव होना लाजिमी है।

पवार ने कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे को जीडीपी के चार फीसद तक लाकर अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन यह उपलब्धि कर राजस्व में बढ़ोतरी से नहीं, योजना मद में कटौती से हासिल की गई है। मनरेगा समेत कई ऐसी योजनाओं के आबंटन घटा दिए गए जो कमजोर तबकों के सशक्तीकरण से ताल्लुक रखती हंै। लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। न तो महंगाई के अनुपात में उनकी आय बढ़ी है न रोजगार के अवसर। कॉरपोरेट जगत भी अब कहने लगा है कि सरकार की दिशाहीन आर्थिक नीतियां नारों और वादों के दलदल में फंसी हैं।