BJP Christian Community Outreach: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्रिसमस के मौके पर दिल्ली में स्थित कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) के मुख्यालय में पहुंचे और ईसाई समुदाय के लोगों से मिले। मोदी ने अपने संबोधन में जर्मनी में हाल ही में क्रिसमस बाजार में हुए हमले और श्रीलंका में 2019 में ईस्टर के मौके पर हुए बम विस्फोटों का जिक्र किया।
मोदी ने इन हमलों की निंदा की और ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे को ईसाई समुदाय की शिक्षाओं से जोड़ने की कोशिश की। मोदी ने कहा, “बाइबल कहती है, एक-दूसरे का सहारा बनो। यीशु मसीह ने दया और निस्वार्थ सेवा का उदाहरण दिया है। हम क्रिसमस इसलिए मनाते हैं ताकि इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार सकें।”
मोदी के चर्च जाने और इस संबोधन को बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका मकसद ईसाई बहुल इलाकों में पार्टी के संगठन को मजबूत करना है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी को इसका कोई सियासी फायदा मिलेगा क्योंकि संघ परिवार और ईसाई मिशनरियों के बीच संबंध लंबे वक्त से तनावपूर्ण रहे हैं। इसके साथ ही धर्मांतरण का मुद्दा भी एक विवाद की वजह बना हुआ है। संघ परिवार से जुड़े कई संगठन ईसाई मिशनरियों पर धर्मांतरण का आरोप लगा चुके हैं। बीजेपी शासित कई राज्य सरकारें धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून भी बना चुकी हैं।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर बीजेपी के एक नेता ने कहा, “बीजेपी और एनडीए अब पूर्वोत्तर में बड़ी चुनावी ताकत हैं और ईसाई आबादी के असर वाली कई सीटें भी एनडीए ने जीती हैं। इसलिए चर्च तक पहुंचना अब बीजेपी की राजनीति का अहम हिस्सा है। बीजेपी गोवा में प्रमुख ताकत है, यहां भी ईसाई आबादी काफी है। अब पार्टी केरल में विस्तार को लेकर सोच रही है। केरल में भी बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं।”
पीएम मोदी पिछले साल ईस्टर के मौके पर दिल्ली में ही स्थित सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च में आए थे। पिछले साल बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा क्रिसमस के मौके पर इस चर्च में ईसाईयों के बीच पहुंचे थे। नड्डा ने कहा था, ”क्रिसमस के पवित्र मौके पर इस चर्च में आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है… ईसा मसीह का जीवन पूरी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।”
इस बार भी नड्डा क्रिसमस की शुभकामनाएं देने और इस त्योहार को मनाने के लिए पार्टी के कई नेताओं के साथ CBCI मुख्यालय और सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च गए। बीजेपी के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के पदाधिकारियों की बैठक के दौरान नेताओं से सभी समुदायों के बीच जाने को कहा था।”

संघ परिवार और ईसाई समुदाय के बीच संबंध
संघ परिवार और ईसाई मिशनरियों के बीच संबंध लंबे वक्त से तनावपूर्ण रहे हैं। बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस ने 1952 में छत्तीसगढ़ के जशपुर में ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ बनाया था। इसका मकसद ईसाई मिशनरियों द्वारा कथित तौर पर कराये जा रहे धर्मांतरण को रोकना था। संघ ने यहां कई सामाजिक कार्यक्रम भी शुरू किए जिससे आदिवासी ईसाई धर्म में कन्वर्ट ना हों।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी के सांसद रहे दिलीप सिंह जूदेव के सहयोग से चलाये गये कल्याण आश्रम ने भी “ईसाई आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाने” के मकसद से “घर वापसी” के कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया।
पूर्वोत्तर में नरम रहा है संघ का रूख
झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ईसाई धर्मांतरण के खिलाफ संघ का रूख सख्त रहा है, वहीं पूर्वोत्तर में संघ और बीजेपी का रुख इस मामले में नरम दिखाई देता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़ी संख्या में आदिवासी ईसाई बन गए हैं। पिछले कुछ सालों में बीजेपी पूर्वोत्तर में भी एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी है।

भागवत ने उठाया था धर्मांतरण का मुद्दा
मध्य प्रदेश के मंडला में संघ के 2011 के सामाजिक महाकुंभ में मोहन भागवत ने धर्मांतरण का मुद्दा उठाते हुए कहा था, “अगर सभी धर्म समान हैं, तो मैं अपने धर्म में क्यों न रहूं? लेकिन दुनिया साम्राज्यवादी है और वे विविधता को स्वीकार नहीं कर सकते… हमें (हिंदुओं को) सिर्फ बात नहीं करनी होगी, बल्कि काम भी करना होगा।” भागवत ने अपने भाषण के जरिये धर्मांतरण का विरोध ही किया था। भागवत ने कहा था कि हिंदू समाज को जाति और भाषा जैसी दीवारों को गिरा देना चाहिए।
संघ ने की थी सीरियाई ईसाइयों की तारीफ
इससे पहले, 2003 में संघ ने केरल के सीरियाई ईसाइयों की तारीफ की थी, जिन्होंने स्थानीय परंपराओं को अपनाया था। तब विजय दशमी के दिन तिरुवनंतपुरम के सेंट जॉर्ज ऑर्थोडॉक्स सीरियन कैथेड्रल में 53 बच्चों को जो शिक्षा दी गई थी, वह हिंदू रीति-रिवाजों से मिलती-जुलती थी। तब आरएसएस के बड़े चेहरे राम माधव ने इस क़दम का समर्थन किया था।

सुदर्शन ने की थी “स्वदेशी चर्च” की वकालत
इससे भी पहले तत्कालीन आरएसएस प्रमुख केएस सुदर्शन ने विजय दशमी के अपने संबोधन में कहा था कि भारतीय ईसाइयों को खुद को वेटिकन के कब्जे से मुक्त कराना चाहिए और “स्वदेशी चर्च” बनाने के लिए काम करना चाहिए। सुदर्शन के बयान की जबरदस्त आलोचना हुई थी क्योंकि इसे ईसाई समुदाय के रीति-रिवाजों में दखल माना गया था।
क्या कहा था गोलवलकर ने?
आरएसएस के पूर्व प्रमुख एम.एस. गोलवलकर अपनी किताब “बंच ऑफ थॉट्स” में लिखते हैं- “जब तक यहां के ईसाई स्वयं को ईसाई धर्म के विस्तार के अभियान के एजेंट मानते रहेंगे, तब तक वे इस देश में शत्रु ही बने रहेंगे और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाएगा।”
धर्मांतरण विरोधी कानून बना रही बीजेपी सरकारें
बीते सालों में, बीजेपी शासित राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को और सख्त बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। जैसे- उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस दिशा में कानून पारित किया है। इस कानून में जबरन धर्मांतरण के लिए आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इसी तरह, 2022 में भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार के द्वारा बनाए गए कानून में धर्मांतरण को अपराध माना गया है।
पिछले कुछ सालों में आरएसएस और केरल के कुछ ईसाई नेताओं ने “लव जिहाद” को एक गंभीर खतरा बताया है। इसके बावजूद, संघ परिवार और ईसाई समुदाय के बीच संबंध ठीक नहीं हुए हैं। धर्मांतरण का मुद्दा आरएसएस और उसके संगठनों के लिए लगातार विवाद का विषय बना हुआ है।
ऐसे में देखना होगा कि ईसाई समुदाय तक पहुंचने की इन कोशिशों का बीजेपी को कितना राजनीतिक फायदा मिलता है।