असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अत्याचार’ की किसी भी घटना को समाज के लिए ‘कलंक’ बताते हुए मंगलवार को कहा कि देश के 125 करोड़ लोगों में से किसी की भी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है और न ही किसी को हर समय अपनी देशभक्ति का सबूत देने की आवश्यकता है। मोदी का यह बयान विपक्ष के इन आरोपों की पृष्ठभूमि में आया है कि देश में जो कोई भी सरकार या उसकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाता है, उसको कुछ लोग राष्ट्रविरोधी करार देते हुए देश छोड़ने की सलाह देने लगते हैं।
संविधान दिवस पर संविधान के प्रति प्रतिबद्धता जताने और डा बीआर आंबेडकर की 125वीं जयंती पर राज्यसभा में तीन दिनों तक हुई चर्चा का जवाब देते हुए मोदी ने कहा, ‘भारत के 125 करोड़ नागरिकों में से किसी की भी देशभक्ति पर शक करने का कोई कारण नहीं है और न ही कोई संदेह कर सकता है। हर समय किसी को अपनी देशभक्ति का सबूत देने की जरूरत नहीं है।’
प्रधानमंत्री ने एकता का मंत्र देते हुए कहा कि भारत जैसे विविधता वाले देश में बिखरने के कई बहाने हो सकते हैं, लेकिन जुड़ने के अवसर कम होते हैं। हमारा दायित्व है कि हमें जुड़ने के अवसर खोजने चाहिए। मोदी ने सदन में अपने करीब 40 मिनट के जवाब में विपक्ष के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाए रखा और दलगत राजनीति के मुद्दों से परहेज किया। उनके इस रवैए के पीछे उच्च सदन में जीएसटी सहित लंबित कई महत्त्वपूर्ण विधेयकों को पास कराना हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमें कभी-कभी पक्ष और विपक्ष से ऊपर उठ कर निष्पक्ष होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यदि किसी के खिलाफ अत्याचार होता है, तो यह समाज और देश के लिए कलंक है। हमें इस पीड़ा को महसूस करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा फिर नहीं हो। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश एकता और सौहार्द के जरिए ही आगे बढ़ सकता है। उन्होंने ‘समानता और स्नेह’ पर जोर देते हुए कहा कि समानता और प्रेम में काफी शक्ति होती है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच भी काफी टकराव हो चुका है और देश की एकता को मजबूत करने के लिए उनके दिमाग में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का विचार पनप रहा है। इस विचार का जिक्र करते हुए कहा कि इसके तहत एक राज्य दूसरे राज्य का महोत्सव मना सकते हैं और एक दूसरे की भाषा सीख सकते हैं।
हर बात को राजनीति से जोड़ने की प्रवृत्ति को अस्वीकार करते हुए मोदी ने कहा कि देश ‘तू तू मैं मैं’ से नहीं साथ चलने से ही बढ़ता है। उन्होंने कहा कि इस सदन से पक्ष-विपक्ष नहीं निष्पक्ष संदेश जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे राज्यसभा को विशेष महत्त्व देते हैं। उन्होंने संस्कृत में एक श्लोक पढ़ते हुए कहा कि ऐसी कोई चर्चा नहीं हो सकती, जहां बुजुर्ग और अनुभवी लोग नहीं हों और राज्यसभा की अपनी विशिष्ट भूमिका है।
लोकसभा और राज्यसभा के बीच सहयोग पर जोर देते हुए मोदी ने संविधान सभा के सदस्य गोपालस्वामी अयंगर की टिप्पणी को उद्धृत किया और रेखांकित किया कि किसी भी विवाद की स्थिति में लोकसभा का मत मान्य होगा। मोदी ने अयंगर को उद्धृत करते हुए कहा कि राज्यसभा को कानून बनाने में बाधक नहीं होना चाहिए। इस सदन के लिए इससे बड़ा दिशानिर्देश और कोई नहीं हो सकता।
लोकसभा में विधेयकों के पास होने के बाद कई विधेयकों के राज्यसभा में अटके होने को लेकर उनकी यह टिप्पणी अहम है। उन्होंने कहा कि नेहरू ने भी दोनों सदनों के बीच आपसी सहयोग पर बल दिया था। ‘यह महत्त्वपूर्ण है कि हमें इस सदन को कैसे चलाना चाहिए। यह काफी अहम है। देश हमारी ओर देख रहा है।’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश की नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों की गलतियों को सुधारने के लिए तैयार रहना चाहिए और उन्हें सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का दायित्व उठाना होगा। मोदी ने कहा कि भारत का संविधान सिर्फ कानून से ही संबंधित नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक दस्तावेज भी है, जिससे हम जरूरत होने पर दिशानिर्देश और प्रेरणा ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि संविधान देश को आगे ले जाने के लिए शक्ति प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि संविधान के निर्माण में बाबा साहेब का विशेष योगदान है लेकिन हम डा राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद सहित संविधान सभा के सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनको नमन करते हैं।
मोदी ने कहा कि संविधान को लेकर हमारे बीच जश्न होना चाहिए। इसे लेकर उत्सव होना चाहिए। यह हमारे लिए एक विरासत है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां उन्हें जानें और समझें। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का हर नागरिक संविधान से बंधा हुआ है। हम परंपरा से बंधे हुए लोग हैं और संविधान हमारा मार्गदर्शक है। हम संविधान का निष्ठा से पालन करते हैं। संविधान ऐसी शक्ति है जो हमें ‘तू और मैं’ की भावना से निकाल सकती है और ‘हम’ की भावना पैदा करने में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक ग्रेनविल आस्टिन ने लिखा था कि 1787 के फिलाडेल्फिया के राजनीतिक दस्तावेज के बाद भारत का संविधान शायद सबसे बड़ा ऐसा दस्तावेज है।
मोदी ने कहा कि संविधान सभा ने आचार समिति के बारे में नहीं सोचा था। उसे नहीं लगा होगा कि हमें कभी इसकी जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि वह किसी की आलोचना नहीं कर रहे। उन्होंने कहा कि यह स्थिति भी ठीक नहीं है जब बार-बार सदस्यों को कहना पड़े कि गलती नहीं हो।
उन्होंने कहा कि डा एस राधाकृष्णन ने 14 अगस्त 1947 को कहा था कि अगली सुबह से हम किसी बात के लिए अंग्रेजों को दोष नहीं दे सकेंगे, हम जो कुछ करेंगे, उसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार होंगे। राधाकृष्णन ने यह भी कहा था कि प्रशासन उस समय तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि हम ऊंचे पदों पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, सत्ता की चाह और मुनाफाखोरी को खत्म नहीं करेंगे। उन्होंने हालांकि उम्मीद जताई कि अभी भी देर नहीं हुई है और हम फिर संकल्प करें और चल पड़ें। यह 125 करोड़ लोगों का देश है जिसमें खासी संख्या युवाओं की है। उन्होंने कहा कि हमारे पास महापुरुषों की विरासत भी है।
उन्होंने देश के संविधान की सराहना करते हुए कहा कि यह ‘मुश्किलात में आगे बढ़ने’ और ‘मार्गदर्शन’ करने के लिए है। उन्होंने कहा कि संविधान दिवस मनाया जाना इसलिए जरूरी है ताकि हमारे देश की आगे आने वाली पीढ़ियों को पता चल सके कि हमारे संविधान निर्माताओं ने हमारे लिए कैसे समाज की परिकल्पना की थी और उन्होंने क्या योगदान दिया।
मोदी के जवाब के बाद सदन में संविधान और उसके सिद्धांतों एवं आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता दोहराने वाले एक संकल्प को सर्वसम्मति से पास किया गया।