संसद सत्र शुरू होने से पहले बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक दलों से अपील की कि वे किसानों की समृद्धि के रास्ते में नहीं आएं क्योंकि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गतिरोध से ग्रामीण विकास गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। नीति आयोग संचालन परिषद की दूसरी बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि गरीबी मिटाने के लिए केंद्र और राज्यों को मिल कर आगे बढ़ना होगा। इस बैठक का आयोजन भूमि अधिग्रहण विधेयक पर चर्चा के लिए किया गया था। कांग्रेस शासित नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बैठक का बहिष्कार किया। बैठक में केवल 16 राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे।
मोदी ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून पर राजनीतिक गतिरोध से ग्रामीण विकास गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। इसमें विद्यालय, अस्पताल, सड़क और सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं। जबकि केंद्र और राज्यों के बीच बढ़े मुआवजे के भुगतान के संबंध में कोई मतभेद नहीं है। ऐसे किसी समाधान में जहां ग्रामीण क्षेत्रों का विकास और किसानों की समृद्धि की बात हो, उसमें राजनीति को आड़े नहीं आने देना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह विधेयक संसद की स्थायी समिति के पास है और आगामी संसद सत्र से पहले यह उचित समझा गया कि एक बार फिर से राज्यों के सुझाव सुने जाएं। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 यानी भूमि अधिग्रहण विधेयक की जांच परख संसद की 30 सदस्यीय संयुक्त समिति कर रही है। समिति इस महीने में अपनी रपट सौंपने वाली है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई को शुरू होगा।
नौ कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा जिन प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बैठक में नहीं हिस्सा लिया, उनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनडु की मुख्यमंत्री जयललिता, ओड़ीशा के नवीन पटनायक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शामिल हैं। बैठक में राजग शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद से कई राज्यों ने भूमि अधिग्रहण कानून के क्रियान्वयन के संबंध में चिंताई जताई थी। कई राज्यों का मानना है कि 2013 के अधिनियम के प्रावधानों के कारण विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं और कुछ मुख्यमंत्रियों ने अधिनियम में बदलाव का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि ‘टीम इंडिया’ के हिस्से के तौर पर सभी विकास पहलों में राज्यों का केंद्र बिंदु होना चाहिए। पिछले एक साल अच्छी शुरुआत रही, योजना प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में राज्यों को साथ लिया गया। राज्यों के मुख्यमंत्री नीति आयोग के उप-समूहों का नेतृत्व करने के लिए आगे आए।
बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली, ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र सिंह और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया भी मौजूद थे। बैठक के बाद जेटली ने पत्रकारों को बताया कि नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में शामिल ज्यादातर राज्यों ने कहा कि वे भू-अधिग्रहण विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं कर सकते।
बकौल जेटली एक अहम सुझाव यह आया कि केंद्र को आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन राज्य इसके लिए अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कर सकते।
अगर केंद्र इस विधेयक को आम सहमति के साथ पारित कराने में विफल रहता है तो इसे राज्यों पर छोड़ देना चाहिए। जो राज्य तेजी से विकास चाहते हैं वे अपने-अपने राज्यस्तरीय विधेयक का सुझाव दे सकते हैं । केंद्र सरकार राज्य के कानून को मंजूरी देगी। बड़े वर्ग की ओर से इसी प्रकार के सुझाव आए। हालांकि जेटली ने ऐसे राज्यों के नाम और उनकी संख्या नहीं बताई जो भूमि अधिग्रहण के संबंध में अपना कानून बनाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि इसमें कितने भाजपा और कितने गैर-भाजपा शासित राज्य हैं।
जेटली के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चूंकि 2013 का कानून आम सहमति से बना था, ऐसे में संशोधन के लिए अभी सही समय नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को संसद के मानसून सत्र में संशोधित विधेयक पारित होने की उम्मीद है, जेटली ने कहा- मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि देश को कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव की जरुरत है। हर विकास गतिविधि के लिए भूमि की जरूरत है।