केन्द्र सरकार ने कर्मचारी और नियोक्ता द्वारा पीएफ (प्रोविडेंट फंड) में दिए जाने वाले योगदान में कटौती करने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन विभिन्न ट्रेड यूनियंस ने सरकार के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। सरकार ने पीएफ को बेसिक सैलरी के 12% से घटाकर 10% करने का प्रस्ताव रखा है। सरकार का इसके पीछे तर्क है कि इससे कर्मचारी अपने घर ज्यादा सैलरी ले जा सकेंगे। हालांकि टेड यूनियंस सरकार के इस तर्क से खुश नहीं हैं और उनका आरोप है कि सरकार के इस कदम से निजी क्षेत्र की कंपनियों को फायदा मिलेगा।

बता दें कि अभी कॉरपोरेट हाउस सीटीसी (Cost to Company) के तहत सैलरी का 24% हिस्सा पीएफ में जमा करती हैं। इसमें 12% कर्मचारी का और 12% नियोक्ता का हिस्सा होता है। अब सरकार इसी प्रतिशत में कटौती कर इसे 10 प्रतिशत और कुल 20 प्रतिशत करने का विचार कर रही है। केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने अपने इस कदम का बचाव किया है और इस पर चर्चा के लिए मंगलवार को एक बैठक का भी आयोजन किया।

हालांकि बड़ी संख्या में विभिन्न ट्रेड यूनियंस द्वारा इस बैठक का बहिष्कार किया गया। टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 ट्रेड यूनियंस ने इस बैठक का बहिष्कार किया। आरएसएस की मजदूर विंग भारतीय मजदूर संघ इस बैठक में शामिल हुआ, लेकिन उसने भी पीएफ में कटौती के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

वहीं विरोध के बावजूद सरकार Miscellaneous Provisions (Amendment) Bill (जिसमें पीएफ कटौती का प्रस्ताव रखा गया है) को आगे बढ़ाने पर विचार कर रही है। माना जा रहा है कि यह बिल जब विचार के लिए संसदीय पैनल के पास भेजा जाएगा, तो वहां इस बिल को पास कराने में सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।

सीपीआई समर्थित AITUC के कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘सरकार का यह फैसला सही नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों की नई ज्वाइनिंग होगी, उनकी बेसिक सैलरी में सीटीसी 20% होगा और जो बाकी का बचा हुआ 4% है, वो निजी कंपनियों की जेब में जाएगा।’