अनिल बंसल

दिल्ली में आंबेडकर के निर्वाण स्थल पर भव्य स्मारक बनाने के सवाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान अब मौन हैं। केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी तो चौहान इस मामले को लेकर कुछ ज्यादा ही मुखर थे। दरअसल आंबेडकर की जन्मस्थली इंदौर के पास महू में है, जो शिवराज चौहान के सूबे में है। दलितों में पैठ बढ़ाने के फेर में दो साल पहले चौहान ने महू जाकर केंद्र की यूपीए सरकार को ललकारा था। उन्होंने धमकी दी थी कि दिल्ली के अलीपुर रोड पर अगर आंबेडकर का राजघाट जैसा भव्य स्मारक नहीं बना तो वे दिल्ली जाकर धरना देंगे। उन्होंने यह स्मारक मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बनाने की पेशकश तक कर डाली थी।

आंबेडकर परिनिर्वाण भूमि सम्मान कार्यक्रम समिति के पदाधिकारियों को भाजपा के दलित मंत्रियों के रवैए पर हैरानी है। भाजपा जब विपक्ष में थी तो इसके नेताओं का आंबेडकर प्रेम देखते ही बनता था। लेकिन पिछले साल छह दिसंबर को जब आंबेडकर की पुण्यतिथि पर अलीपुर रोड पर सम्मान सभा हुई तो देशभर के हजारों आंबेडकरवादी जुटे। पर मोदी सरकार का कोई दलित मंत्री इसमें नहीं आया। इस समय राम विलास पासवान, थावरचंद गहलौत, रमाशंकर कठेरिया, निहालचंद मेघवाल और विजय सांपला मोदी सरकार में दलित मंत्री हैं। अलबत्ता सभी दलों के दूसरे दलित नेता जरूर जुटे।

आंबेडकर का निधन दिल्ली के अलीपुर रोड पर स्थित 26 नंबर कोठी में हुआ था। जीवन के अंतिम दिनों में यही उनका ठिकाना था। दलितों की हिमायती होने का दम भरने वाली कांग्रेस ने आंबेडकर की उपेक्षा ही की। उन्हें सम्मान देने का सिलसिला विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद किया। उन्होंने ही 1991 में आंबेडकर की जन्मशती मनाने के लिए एक समिति साल भर पहले ही बना दी थी। उसी वक्त उन्हें भारत रत्न भी दे दिया।

वीपी सिंह के बाद भाजपा ने भी आंबेडकरवादियों के एजंडे से सरोकार जताया। आरएसएस की व्यापक हिंदू एकता की रणनीति के तहत यह हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार ने अलीपुर रोड की कोठी को उद्योगपति जिंदल से 16 करोड़ रुपए में खरीद कर उसे आंबेडकर स्मारक घोषित किया। छह दिसंबर, 2003 को खुद वाजपेयी वहां गए और स्मारक का शिलान्यास किया। आंबेडकर समर्थक चाहते थे कि स्मारक भव्य हो और उसका दर्जा राजघाट जैसा हो। यानी विदेशी मेहमान आएं तो राजघाट की तरह वहां जाकर भी सम्मान जताएं। लेकिन इन मांगों को पूरा कर पाने से पहले ही 2004 में वाजपेयी सरकार चली गई।

स्मारक निर्माण का मुद्दा उसके बाद भी बना रहा। दलित नेता यूपीए सरकार पर भी दबाव बनाते रहे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आखिरकार 14 जून, 2012 को मान लिया कि अलीपुर रोड पर आंबेडकर का भव्य स्मारक बनेगा। पर उसका स्तर राजघाट जैसा हो, इस मांग को वे टाल गए। मौजूदा कोठी का क्षेत्रफल एक एकड़ से भी कम है। स्मारक निर्माण के आंदोलन से पिछले दो दशक से सक्रिय रूप से जुड़े इंद्रेश गजभिये का कहना है कि भव्य स्मारक के लिए आसपास के बंगलों का भी अधिग्रहण किया जाए।

पिछले साल छह दिसंबर को स्मारक स्थल पर पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल, भाजपा सांसद सत्यनारायण जटिया, उदित राज, किरीट सोलंकी, अर्जुन मेघवाल, फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा रामदास अठावले, पीएल पुनिया, संजय पासवान, अशोक तंवर जैसे दलित नेता भी जुटे और प्रधानमंत्री के नाम मांग पत्र पर हस्ताक्षर किए। सभी को यह देख कर हैरानी हुई कि सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलौत क्यों नहीं आए?
फिलहाल आंबेडकरवादी देशभर में राजघाट जैसे स्मारक की अपनी मांग के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। इंद्रेश गजभिये के मुताबिक यह अभियान आंबेडकर के जन्मदिन यानी 14 अप्रैल तक चलेगा। उस दिन दिल्ली आकर दलित नेता प्रधानमंत्री से मुलाकात करने की कोशिश करेंगे। उन्हें मोदी से काफी उम्मीदे हैं।

भाजपा के महासचिव रामलाल ने भी दो साल पहले अलीपुर रोड पर हुए समारोह में पुण्य स्थली पर भव्य स्मारक की मांग का समर्थन किया था। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने तो 21 अप्रैल, 2011 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख यहां तक पेशकश कर डाली थी कि अगर केंद्र सरकार स्मारक नहीं बना सकती तो मध्य प्रदेश सरकार अपने खर्च पर यह काम करने को तैयार है।

इस बीच केंद्रीय मंत्री विजय सांपला ने पंजाब पहुंच कर एलान कर दिया कि आंबेडकर की पुण्यस्थली पर मोदी सरकार भव्य स्मारक बनाएगी। खुद प्रधानमंत्री आंबेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल को उसका शिलान्यास करेंगे। इस एलान से आंबेडकर पुण्य भूमि सम्मान कार्यक्रम समिति बेचैन है। उसे लगता है कि मोदी सरकार स्मारक के नाम पर रस्म अदायगी करेगी। पर जिस स्मारक का कोई महत्त्व न हो, वह दलितों को स्वीकार नहीं। स्मारक का राजघाट जैसा दर्जा होगा तभी उसका रख-रखाव भी हो पाएगा और सार्थकता भी हो सकेगी। स्मारक बनाने का फैसला तो मनमोहन सरकार ने पहले ही कर दिया था। मोदी सरकार को तो आसपास के बंगलों के अधिग्रहण और स्मारक के भव्य स्वरूप के बारे में फैसला करना चाहिए।