प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा कई मायनों में खास रहा है। इस एक दौरे से भारत के लिए कई बड़ी गुड न्यू आई हैं। रक्षा से लेकर स्पेस सेक्टर तक में बड़ी मदद मिली है। लेकिन समय के साथ अमेरिका और भारत की साझेदारी काफी बदल गई है, समीकरण भी बदले हैं। इसी वजह से वर्तमान स्थिति में जितनी जरूरत भारत को अमेरिका की है, उतनी ही जरूरत अमेरिका को भी भारत की है। ये भी कह सकते हैं कि इस समय पीएम मोदी ही राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए सबसे बड़ा सियासी हथियार साबित हो सकते हैं।
बाइडेन की गिरती लोकप्रियता
असल में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव करीब हैं, जो बाइडेन फिर राष्ट्रपति बनने के सपने देख रहे हैं। लेकिन उनकी इस बार की राह इतनी आसान नहीं रहने वाली है। इसके कई कारण हैं, जिसमें सबसे बड़ा तो बाइडेन की गिरती लोकप्रियता है। एक तरफ जहां कई सर्वे इशारा कर रहे हैं कि पीएम मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं तो वहीं दूसरी ओर दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र के नेता बाइडेन इस समय मुश्किल सियासी दौर से गुजर रहे हैं।
खुश नहीं हैं अमेरिकी, महंगाई से भी परेशान
रॉयटर्स के एक सर्वे से स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं। इस साल मई में जो सर्वे किया गया था, उससे पता चला कि बाइडेन की लोकप्रियता सिर्फ 40 फीसदी रही है, पिछले महीने तो वो 39 फीसदी तक पर लुढक गई थी। उस सर्वे के मुताबिक अमेरिका में लोग महंगाई से परेशान हैं, इमिग्रेशन की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। असल में मेक्सिको बॉर्डर पर लोगों की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं, उन्हें अमेरिका में एंट्री चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है और स्थिति जमीन पर काफी बिगड़ रही है।
कई सर्वे बजा रहे बाइडेन के लिए खतरे की घंटी
अब इस बिगड़ी हुई स्थिति को लेकर ही कई लोग बाइडेन प्रशासन को जिम्मेदार मानते हैं। सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि मात्र 26 फीसदी लोग ही अमेरिका में जो बाइडेन की इमिग्रेशन पॉलिसी को सपोर्ट करते हैं। अब रॉयटर्स का अगर बाइडेन की चिंता बढ़ाने वाला रहा है तो एपी और NORC Center for Public Affairs Research ने भी इस साल मार्च में एक सर्वे किया था। उस सर्वे में तो राष्ट्रपति बाइडेन की पॉपुलैरिटी सिर्फ 38 फीसदी मानी गई, पिछले साल जुलाई में तो ये खिसकर 36 प्रतिशत पर भी पहुंच गई थी। इस सर्वे में भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर बाइडेन की नीतियों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताया गया।
आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 31 प्रतिशत लोगों ने अर्थव्यवस्था को लेकर बाइडेन के कदमों को सही माना है। वैसे अमेरिका में क्योंकि लोग रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच में बंटे रहते हैं, ऐसे में जब सर्वे टीम ने दोनों ही पार्टियों के समर्थकों से सवाल पूछे, तो नतीजे एकदम अलग आए। जब अर्थव्यवस्था को लेकर डेमोक्रेट समर्थकों से सवाल पूछे गए तो 76 फीसदी ने बाइडेन के कदमों को सही माना, वहीं रिपब्लिकन में ये आंकड़ा काफी गिर गया।
बाइडेन का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनना भी मुश्किल
इसी तरह Washington Post और ABC News ने एक सर्वे किया जिससे पता चला कि डेमोक्रेट समर्थक भी बाइडेन के अलावा किसी दूसरे उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव में देखना चाहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 58 फीसदी ड्रेमोक्रेट समर्थक मानते हैं कि बाइडेन के अलावा किसी दूसरे उम्मीदवार को इस बार राष्ट्रपति चुनाव के लिए उतारना चाहिए। उसी सर्वे में ये भी बताया गया कि 56 प्रतिशत लोग बाइडेन की नीतियों को पसंद नहीं करते हैं, वहां भी 47 फीसदी तो पूरी तरह बाइडेन को लेकर निगेटिव माने जा रहे हैं। इसके अलावा एक आंकड़ा ये भी बताता है कि अमेरिका के कम से कम 40 राज्यों में इस समय जो बाइडेन की अप्रूवल रेटिंग काफी कम चल रही है। जिन राज्यों ने पिछले चुनाव के दौरान बाइडेन की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी, वहां भी इस बार उनकी लोकप्रियता काफी कम हो गई है।
अब ये सर्वे के आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि जो बाइडेन के खिलाफ अमेरिका में तगड़ा माहौल बन रहा है। सवाल उठता है कि इस माहौल को कैसे बदला जा सकता है? इसका एक जवाब तो है भारतीय समुदाय को अपने पाले में रखना। असल में अमेरिका में मेक्सिकों नागरिकों के बाद भारतीय समुदाय की सबसे ज्यादा आबादी है। बड़ी बात ये है कि साल 2000 से 2018 के बीच तो 150 फीसदी की बड़ी जंप देखने को मि गई थी। यानी कि अमेरिका में भारतीय समुदाय एक निर्णायक वोटबैंक बन चुका है।
भारतीय समुदाय की क्या ताकत?
ये भी बताया जाता है कि भारतीय समुदाय की अमेरिका में इनकम काफी ज्यादा है, इसी वजह से दोनों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट को अच्छा खासा चंदा भी इसी समाज द्वारा दिया जाता है। इस समुदाय को खुश रखने के लिए चुनावी मौसम में कई ऐसे विज्ञापन छापे जाते हैं जिसका सीधा कनेक्शन भारत से रहता है। इससे भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी चुनाव में भारतीय समुदाय की अहम भागीदारी रहती है।
यहां ये समझना जरूरी है कि अमेरिकी चुनाव में पेंसिल्वेनिया, फ्लोरिडा और ओहियो ऐसे इलाके हैं जहां पर भारतीय समुदाय की काफी आबादी है, ऐसे में चुनाव में हार-जीत के लिए ये अहम हो जाता है। इसी तरह एरिजोना और विस्कॉन्सिन जैसे राज्यों में भी भारतीय नागरिकों की सक्रिय भूमिका है। वैसे तो ये समुदाय डेमोक्रेट्स के साथ रहना पसंद करता है, लेकिन पिछले कुछ समय में इसका रुझान रिपब्लिकन की तरफ भी गया है।
मोदी की लोकप्रियता, बाइडेन का हथियार
वैसे एक सर्वे ये भी साफ हो चुका है कि अमेरिका में भारतीय समुदाय बढ़ चढ़कर वोटिंग करता है, इस वजह से भी किसी भी राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए इस समाज का वोटबैंक जरूरी हो जाता है। इस बात को जो बाइडेन अच्छी तरह समझते हैं, वे ये भी जानते हैं कि भारतीय समुदाय के बीच में पीएम मोदी की लोकप्रियता अलग ही स्तर की है। हर कोई उन्हें चाहता है, ऐसे में कहा जा सकता है कि उसी लोकप्रियता को वो अपना सियासी हथियार बनाना चाहते हैं।