नरेंद्र माेदी बतौर प्रधानमंत्नी आठवीं बार अमेरिका जाएंगे। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाएंगे। यह अपने आप में अहम दौरा है। इसको लेकर व्हाइट हाउस पहले ही कह चुका है कि इससे भारत और अमेरिका के पारिवारिक और दोस्ताना रिश्तों को और मजबूती मिलेगी। मोदी 22 जून को व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात करेंगे।

इस मुलाकात के दौरान सामरिक मुद्दों, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्धता और तकनीकी साझेदारी को लेकर बात होगी। मोदी -बाइडेन मुलाकात के एजंडे पर दोनों देश बयान जारी कर चुके हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन ज्यां-पिएरे कह चुकी हैं कि अहम रक्षा सौदे होने हैं और अंतरिक्ष के क्षेत्र में तकनीक हस्तांतरण को लेकर समझौता होगा। विदेश मंत्रालय कह चुका है कि यह ऐतिहासिक यात्रा भारत और अमेरिका के लिए वैश्विक तौर पर रणनीतिक और समग्र सहयोग को और मजबूत करने का एक मौका है।

रिश्तों में उतार-चढ़ाव

बाइडेन सरकार के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते कमोबेश बेहतर रहे हैं। चीन को मुकाबला देने के लिए बाइडेन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई देशों से रिश्ते मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। दोनों नेताओं ने आकुस और क्वाड जैसे संगठनों को सक्रिय किया है, जिनके जरिए आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ गठजोड़ मजबूत हो रहे हैं, लेकिन भारत इस क्षेत्र में उसके अहम साझीदारों में से एक है।

अमेरिका के अन्य सहयोगियों के उलट भारत से अमेरिका को रूस के खिलाफ किसी तरह का समर्थन नहीं मिला है। अमेरिका के कई तमाम सहयोगियों ने रूस के खिलाफ लगाए आर्थिक प्रतिबंधों का समर्थन किया है, जबकि भारत ने रूस से आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बढ़ा दिया है। रूस को लेकर मतभिन्नता के बावजूद भारत और अमेरिका के आपसी रिश्ते खराब नहीं हुए हैं।

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी बड़ी वजह चीन है, क्योंकि अमेरिका चीन के खिलाफ एक बड़ा सहयोगी चाहता है। वाशिंगटन स्थित ‘यूएस-इंडिया पालिसी इंस्टिट्यूट फार स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ की एक रपट के मुताबिक, भले ही रूस, यूक्रेन और दुनियाभर के तमाम मुद्दों पर हम अलग-अलग राय रखते हों, एक उभरते हुए खतरे पर हम दोनों सहमत हैं।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दाव-पेंच

पिछले साल बाइडेन ने भारत और हिंद-प्रशांत के 11 अन्य देशों के साथ व्यापार समझौता किया था। अमेरिका का कहना है कि इस हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे का मकसद आपूर्ति शृंखला, डिजिटल कारोबार, अक्षय ऊर्जा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर मिलकर काम करना है। हाल में भारत और अमेरिका ने मिलकर भविष्य की तकनीक को लेकर काम करना शुरू किया है।

इसकी रूपरेखा तैयार की गई। दोनों देशों के बीच संबंधों में बड़ा बदलाव हो रहा है। बड़ा संकेत तो रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भारत-अमेरिका संबंध हैं। पिछले सवा साल से रूस-यूक्रेन युद्ध की बात की जा रही है। जब युद्ध शुरू हुआ था तो पूछा जा रहा था कि भारत संतुलन कैसे बनाएगा। एक तरफ भारत का रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध है, तो दूसरी तरफ पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के साथ उभरते हुए संबंध हैं।

बीते दिनों जब अमेरिका के रक्षा मंत्री लायड आस्टिन भारत आए तो रक्षा सहयोग से जुड़े रोडमैप पर हस्ताक्षर किए गए। मोदी-बाइडेन वार्ता में इन संबंधों को आगे बढ़ाया जाएगा। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था की केंद्रबिंदू अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आ गई है।

चीन की चुनौती बनाम मुद्दे

भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है चीन। चीन के विस्तारवादी एजंडे को चुनौती देने के लिए क्वाड का गठन किया गया है। चीन के मुद्दे पर भारत के साथ समझ बढ़ाने के लिए अमेरिका कई सवालों को अनदेखा करता है। कई अमेरिकी एजंसियां मानवाधिकारों के मुद्दे पर भारत को घेरा जाता रहा है। सरकार पर ध्रुवीकरण की नीतियों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

आलोचकों को चुप कराने के लिए कानूनों व पुलिस का इस्तेमाल करने के आरोप भी लगते हैं। हालांकि भारत मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों को लगातार नकारता रहा है लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की रपटों में लगातार उसकी आलोचना होती है। इस बारे में वाइट हाउस की प्रेस सचिव ज्यां-पिएरे ने कहा कि राष्ट्रपति बाइडेन हमेशा मानवाधिकारों के मुद्दे पर अपने सहयोगियों से बात करते हैं लेकिन भारत और अमेरिका का रिश्ता रणनीतिक रूप से अहम है। उन्होंने कहा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की दृष्टि से यह बहुत अहम संबंध है।

राष्ट्रपति मानते हैं कि यह एक अहम रिश्ता है जिसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए और मजबूत किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर 2021 में भी वाइट हाउस में बाइडेन से मिल चुके हैं, जब वह क्वाड नेताओं की बैठक में शामिल हुए थे। भारत जी-20 समूह का मौजूदा अध्यक्ष भी है और संभव है कि इस साल के दूसरे हिस्से में बाइडेन जी-20 की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली जाएंगे।

अहम बातें

जो बाइडेन बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति पहली भारत यात्रा पर सितंबर में नई दिल्ली आएंगे। वे भारत की अध्यक्षता में जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इसको लेकर अमेरिका बेहद उत्साहित है। अमेरिका इस साल एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोगकी मेजबानी कर रहा है। इसके साथ ही क्वाह समूह में भारत, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ शामिल जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों के समूह जी7 की मेजबानी कर रहा है। भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के लिए जो आधार 2023 में तैयार होगा, उसी के बल पर 2024 में द्विपक्षीय संबंधों में एक नई ऊंचाई दिखेगी।

क्या कहते हैं जानकार

देशों के बीच के रिश्तों को एक नया मुकाम मिलेगा और जिस तरह के बयान अमेरिका के अलग-अलग मंत्री या फिर व्हाइट हाउस की ओर से आ रहे हैं, इससे साफ जाहिर है कि अमेरिकी हितों के लिए भारत की अहमियत अब बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। वित्तीय वर्ष 2022-23 ऐसा लगातार दूसरा साल रहा जब अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा।

  • पिनाक रंजन चक्रवर्ती,पूर्व राजनयिक

भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों में अब सिर्फ व्यापार और रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्र ही शामिल नहीं रह गए हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कई मुद्दे भी जुड़ते गए हैं। भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध को वैश्विक सामरिक साझेदार का दर्जा हासिल है। इसके तहत भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी है।

  • अजय मल्होत्रा,रूस में भारत के पूर्व राजदूत