Muzaffarnagar Mosque Controversy: उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद (Shahi Jama Masjid) को लेकर पिछले महीने हुए बवाल के चलते अभी तक सियासी पारा चढ़ा हुआ है। वहीं अब मुजफ्फरनगर की एक मस्जिद को लेकर विवाद हो गया है। यहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान (Liaquat Ali Khan) के भाई सज्जाद अली खान की जमीन मिली है।

मुजफ्फरनगर की मस्जिद ही नहीं बल्कि चार दुकानें भी इस विवाद में शामिल हैं, उसे गृह मंत्रालय ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया है। इस मामले में आधिकारिक दस्तावेज बताते हैं कि यह जमीन पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के भाई सज्जाद खान की है। इन जमीनों को वक्फ की संपत्ति बताया गया था।

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क्या कहते हैं सरकारी दस्तावेज?

मुजफ्फरनगर की मस्जिद की संपत्ति को लेकर विवाद के बीच स्थानीय प्रशासन और उसके बाद ‘शत्रु संपत्ति’ संरक्षक कार्यालय की एक टीम ने जांच की। इसके बाद यह बताया गया कि मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के सामने स्थित 0.082 हेक्टेयर लैंड सज्जाद अली के नाम पर थी। बता दें कि सज्जाद अली खान लियाकत अली खान के भाई और रुस्तम अली के बेटे थे।

मस्जिद और चार दुकानों के स्वामित्व की वैधता को लेकर बहस छिड़ गई है। इस मामले में एक गुट का दावा है कि यह भूमि वक्फ की है दूसरा पक्ष इसे अवैध अतिक्रमण का नतीजा बता रहा है। जानकारी के मुताबिक 1918 में इस जमीन पर पहली बार लियाकल अली खान के पिता रुस्तम अली खान ने कब्जा किया था, लियाकत अली का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था।

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UP के बड़े राजनेता थे लियाकत अली खान

1932 में लियाकत अली संयुक्त प्रांत यानी आज के उत्तर प्रदेश के विधान परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे और 1940 में केंद्रीय विधानसभा में प्रमोट हुए थे। लियाकत अली के परिवार का क्षेत्र में काफी प्रभाव था और मुजफ्फर नगर में उनकी काफी संपत्ति भी थी, इनमें से ही एक संपत्ति को लेकर विवाद भी था लेकिन 1947 के बाद सबकुछ बदल गया क्योंकि लियाकत अली पाकिस्तान चले गए।

लियाकत के पाकिस्तान जाने के बाद उनकी भारतीय संपत्तियां ‘शत्रु संपत्ति’ में बदल गईं। भारत सरकार के कानून के तहत यह पदनाम उन व्यक्तियों की संपत्ति पर लागू होता है, जो विभाजन के बाद देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। उनके जाने के बाद उनके परिवार की संपत्ति भी विवादों में आ गई थी।

जमीन पर मस्जिद बनने के चलते बढ़ा विवाद

जमीन विवाद इसलिए बढ़ गया जब मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित इस जमीन पर मस्जिद का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन नामक समूह के संयोजक संजय अरोड़ा ने 2023 में निर्माण की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए आरोप लगाया कि मस्जिद और दुकानें दुश्मन की संपत्ति पर अवैध रूप से बनाई गई हैं।

संजय अरोड़ा ने इस मामले में तर्क दिया कि मस्जिद के बारे में उन्होंने दावा किया कि वह “होटल की तरह बनाई गई थी, क्षेत्र में निर्माण को नियंत्रित करने वाले कानूनी नियमों का पालन नहीं करती थी, क्योंकि इसे मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण (MDA) से मंजूरी नहीं मिली थी। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड के पास इस संपत्ति के कोई दस्तावेज नहीं हैं। जब कोई व्यक्ति पाकिस्तान चला जाता है, तो उसकी जमीन या तो अवैध संपत्ति होती है या शत्रु संपत्ति मानी जाती है।

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जमीन को बताया गया ‘सुरक्षा के लिए खतरा’

सरकारी अधिकारी संजय अरोड़ा ने कहा कहा कि यह संपत्ति और इसके आस-पास स्थित मस्जिद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इसको लेकर उन्होंने जिला प्रशासन के पास शिकायत भी दर्ज कराई है। इसके बाद स्थानीय अधिकारियों द्वारा जांच की गई। इसमें जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय, राजस्व विभाग और नगर निगम के प्रतिनिधि थे। इसके बाद यह जांच तब आगे बढ़ी जब इसे दिल्ली में शत्रु संपत्ति कार्यालय को भेजा गया, और भूमि के सर्वे के लिए टीमें भेजी गई थीं।

राजनीति से प्रेरित बताया जमीन का विवाद

मस्जिद पर कब्जा करने वालों का तर्क है कि यह भूमि कानूनी रूप से वक्फ थी, जिसका मतलब ये है कि इसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान किया गया था। उन्हो विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष के व्यक्ति के अनुसार, संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास रिजस्टर्ड थी और उन्होंने इसे दस्तावेज भी पेश किए थे। जिसमें उनके दावों को प्रमाणित करने के लिए 1937 का पत्र भी शामिल था।

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इस विवाद को लेकर एक स्थानीय व्यवसायी मोहम्मद अतहर का कहना है कि यह संपत्ति रुस्तम अली खान की थी, जिन्होंने इसे वक्फ को दान कर दिया था। अतहर यहां दुकान चलाते हैं। उन्होंने इस दावे को खारिज कर दिया कि यह जमीन लियाकत अली खान की है और दावा किया कि राजनीतिक प्रेरणा और गलत सूचना पूरे विवाद को जन्म दे रही है।

दावेदारों का तर्क है कि मौजूद मस्जिद का निर्माण किसी कानून का उल्लंघन करके नहीं किया गया था और दुकानों से वसूला जाने वाला किराया वैध है। उनका कहना है कि भूमि को शत्रु संपत्ति के रूप में नामित करना ऐतिहासिक अभिलेखों की गलत व्याख्या पर आधारित एक गलत दावा है।

क्या है शत्रु संपत्ति कानून

शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968, की बात करें तो भारत में पाकिस्तानी नागरिकों की संपत्तियों के विनियोग को नियंत्रित करता है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद लागू किया गया यह अधिनियम ऐसी संपत्तियों का स्वामित्व भारत के शत्रु संपत्ति के संरक्षक, एक नामित सरकारी प्राधिकरण को हस्तांतरित करता है।

शत्रु संपत्ति एजेंसी ने बताया कि जिस ज़मीन पर विवाद चल रहा है, उसे वास्तव में शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था। यह संपत्ति रुस्तम अली खान के स्वामित्व में पाई गई, जो लियाकत अली खान के पिता थे, जो विभाजन के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। हालांकि दूसरा पक्ष इसे वक्फ की जमीन बता रहा है। संभल से जुड़ी अन्य सभी खबरों के लिए जनसत्ता के इस लिंक पर क्लिक करें।