राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को मुस्लिम नेताओं से कट्टरवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का आह्वान किया। भागवत ने कहा कि इस्लाम आक्रमणकारियों के साथ भारत में आया। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। साथ ही उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के समझदार नेताओं को अतिवाद का विरोध करना चाहिए। उन्हें कट्टरपंथियों के खिलाफ मजबूती से बोलना होगा। इस कार्य के लिए दीर्घकालिक प्रयास और धैर्य की आवश्यकता होगी। यह हम सभी के लिए एक लंबी और कठिन परीक्षा होगी। जितनी जल्दी हम इस प्रयास को शुरू करेंगे, उतना ही कम नुकसान हमारे समाज को होगा।

पुणे में ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत कश्मीरी छात्र, सेवानिवृत्त रक्षा अधिकारी और आरएसएस के सदस्यों को संबोधित कर रहे थे। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत बतौर महाशक्ति किसी को डराएगा नहीं। उन्होंने ‘राष्ट्र प्रथम एवं राष्ट्र सर्वोच्च’ विषयक संगोष्ठी में कहा, ‘‘हिंदू शब्द हमारी मातृभूमि, पूर्वज और संस्कृति की समृद्ध धरोहर का पर्यायवाची है तथा इस संदर्भ में हमारे लिए हर भारतीय हिंदू है, चाहे उसका धार्मिक, भाषायी व नस्लीय अभिविन्यास कुछ भी हो।’’ उन्होंने कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों के पुरखे एक ही थे। भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति विविध विचारों को समायोजित करती है और अन्य धर्मों का सम्मान करती है।

इस कार्यक्रम का आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब देश में एक बहस चल रही है कि भारतीय मुसलमानों को अफगानिस्तान के तालिबान के अधिग्रहण का जवाब कैसे देना चाहिए। जावेद अख्तर की तरफ से पिछले हफ्ते आरएसएस और तालिबान को लेकर दिए गए बयान पर भी विवाद जारी है। बैठक में वक्ताओं में से एक, कश्मीर में केंद्रीय विश्वविद्यालय के चांसलर, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बैठक की योजना काफी पहले बनाई गई थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम के आलोक में यह अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित किया गया।

उन्होंने कहा कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भारतीय मुसलमानों को निशाना बनाने की पाकिस्तान की कोशिश को विफल करना चाहिए। संगोष्ठी में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी मौजूद थे, उन्होंने कहा कि विविधता से समृद्ध समाज का निर्माण होता है तथा ‘‘भारतीय संस्कृति सभी को समान समझती है।’’