बीजेपी शासित राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर माथापच्ची जारी है। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने तो इसका बिल भी विधानसभा में पारित कर दिया है। इस बीच अब असम में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की कैबिनेट ने मुस्लिम मैरिज एक्ट को खत्म करने का फैसला किया है। इसे भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ पहले कदम के तौर पर देखा जा रहा है। अब सवाल यह है कि आखिर मुस्लिम मैरिज एक्ट के हटने के बाद असम में मुस्लिम समुदाय के लिए क्या बदलाव होंगे।
मुस्लिम मैरिज एक्ट को निरस्त करने को लेकर असम सरकार का कहना है कि इसमें शादी और तलाक का रजिस्ट्रेश अनिवार्य नहीं है औऱ रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस भी काफी अनौपचारिक है। इसके चलते नियमों के उल्लंघन की संभावनाएं बढ़ जाती है, इसीलिए इसे निरस्त किया गया है। सरकार का कहना है कि मुस्लिम मैरिज एक्ट के जरिए आसानी से बालविवाह हो रहा था, जिसके चलते इसे खत्म करने का फैसला ज्यादा अहम है।
बता दें कि मुस्लिम मैरिज एक्ट समुदाय के लोगों को मुस्लिम विवाह और तलाक के स्वैच्छिक पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है। इसने सरकार को मुस्लिम लोगों को विवाह और तलाक को पंजीकृत करने के लिए लाइसेंस प्रदान करने के लिए भी अधिकृत किया है।
क्या होंगे मुस्लिमों के लिए बदलाव
बदलाव की बात करें तो अब शादी होने के बाद कानून रद्द होने के चलते लोग शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाएंगे। इसको लेकर जानकारी दी गई है कि अब निकाह का तलाक का रजिस्ट्रेशन जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार 94 के जिम्मे होगा। सरकार चाहती है कि सभी विवाहों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत ही रिजस्टर किया जाए। साथ ही पुराने कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल करके कम उम्र के लड़कों और लड़कियों का भी रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है।
लागू होंगे स्पेशल मैरिज एक्ट के नियम
बता दें कि पहले इसे स्पेशल मैरिज के अंडर नहीं रखा जाता था लेकिन अब यह स्पेशल मैरिज के तहत रजिस्टर होगा। साथ ही मुस्लिम मैरिज एक्ट में उम्र को लेकर कोई प्रवाधान नहीं थे लेकिन अब नए निमय के तहत उम्र की एक समान सीमा भी लागू रहेगी। अब लड़के की उम्र 21 और लड़की की उम्र 18 होने पर भी विवाह का रजिस्ट्रेशन हो सकेगा। विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर होगा, तो उसमें सारे इस एक्ट के नियम लागू हों स्पेशल मैरिज एख्ट के तहत विवाह तलाक बच्चे को गोद लेने जैसे काम धार्मिक नियमों के तहत ही निर्धारित होंगे।
शादी और तलाक दोनों के नियम
बता दें कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करने के लिए लड़का या लड़की का एक ही धर्म होना अनिवार्य नहीं होता है। इसके अलावा इस कानून के जरिए भारत के हर नागरिक को किसी भी धर्म जाति के स्त्री या पुरुष से शादी करने के अधिकार मिलते हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट नियम के तहत किसी भी पक्ष का पहले से ही कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। अगर शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगी तो तलाक भी जिला कोर्ट से मिल सकता है और दोनों पक्ष शादी का अपना बॉन्ड तोड़ सकते हैं।
विरोध के पीछे क्या हैं तर्क
इस मुद्दे पर सपा सांसद एसटी हसन ने कहा है कि मुस्लिम केवल शरीयत और कुरान के नियमों का ही पालन करेंगे। सरकार का यह फैसला हिंदुओं का वोट पाने और ध्रुवीकरण को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, जिससे चुनाव में बीजेपी को हिंदुओं का वोट मिल सके। वहीं AIUDF के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि सरकार मुस्लिमों को भड़काना चाहती है लेकिन ऐसा होगा नहीं। अजमल ने कहा है कि वे इस मुद्दे पर अभी नहीं चुनाव के बाद विरोध करेंगे अभी ध्रुवीकरण हो सकता है। कांग्रेस नेता अब्दुल राशिद मंडल ने भी इसे मुस्लिमों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया बताते हुए कहा कि सरकार ब्रिटिश कानून और चाइल्ड मैरिज का हवाला दे रही है लेकिन ऐसा कतई सच नहीं है।
इस मुद्दे पर विरोध के भी सुर सामने आए हैं। AIUDF ने विधायक रफीकुल इस्लाम ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि चुनावी सीजन पर मुस्लिमों को परेशान करने के लिए यह फैसला लिया गया है। इसे यूसीसी की ओर कदम बताया जा रहा है लेकिन असम में यह नहीं आ सकता है।