लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। उसकी तरफ से अब तक तीन बड़ी बैठकें की जा चुकी हैं। इंडिया गठबंधन की बैठकों का सिलसिला बिहार के पटना से शुरू हुआ, फिर बेंगलुरू में इसकी दस्तक हुई और हाल ही में मायानगरी मुंबई में तीसरी बैठक को भी अंजाम दिया गया। हैरानी की बात ये है कि तीन बैठकों के बाद भी ये इंडिया गठबंधन तीन बड़े सवालों के जवाब अभी तक नहीं ढूंढ पाया है। पहला सवाल- चेहरा कौन, दूसरा सवाल- सीट शेयरिंग कब तक, तीसरा सवाल- गठबंधन का संयोजक कौन?

संयोजक तय करने में हो रही दिक्कतें

अब इंडिया गठबंधन की ये सबसे बड़ी चुनौती इस समय चल रही है। कैमरे के सामने सभी एकजुट होने का दावा जरूर कर रहे हैं, लेकिन अंदर खाने काफी कुछ चल रहा है। उन तमाम गतिविधियों की वजह से ही अब तक कई चीजों पर आम सहमति बनती नहीं दिख रही है। सबसे पहले इंडिया को ये तय करना था कि उसका संजोयक कौन बनने जा रहा है। कोई बहुत बड़ा सवाल नहीं था, इस पर ज्यादा विवाद भी नहीं होना था। लेकिन 26 पार्टियों वाला ये विशाल कुबना इस सवाल का जवाब भी नहीं खोज पाया।

इंडिया गठबंध के संयोजक के रूप में सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम चल रहा था। उनकी तरफ से क्योंकि इस विपक्षी एकता की रूपरेखे रखी गई, उन्होंने ही शुरुआत में कई नेताओं से मुलाकात कर सियासी पिच खड़ी करने की तैयारी की, ऐसे में उन्हें ये मौका मिल सकता था। लेकिन जब तक ये अटकलें और ज्यादा जोर पकड़ती, नीतीश ने मुंबई बैठक से पहले ही साफ कर दिया कि उन्हें इस पद की कोई लालसा नहीं है। वे तो किसी भी पद की उम्मीद में नहीं बैठे हैं। उन्हें तो बस विपक्ष को एकजुट करना है।

इसी कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम ने जोर पकड़ना शुरू किया। सूत्रों से यहां तक खबर मिलने लगी कि मुंबई बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे को ये अहम जिम्मेदारी दे दी जाएगी। लेकिन ऐन वक्त पर पता चला कि मुंबई बैठक में संयोजक का ऐलान नहीं किया जाएगा। अभी तक हो रही देरी को लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया गया है ,किसी तरह का कारण भी सामने नहीं आया है। इसी वजह से जानकार मान रहे हैं कि अंदरूनी झगड़ों से बचने के लिए अब तक इंडिया गठबंधन के संयोजक का ऐलान नहीं किया गया है। एक के नाम पर मुहर लगने का मतलब है दो अन्य का नाराज होना। इस स्थिति से लगातार बचने के चलते नाम के ऐलान से भी खुद को दूर रखा जा रहा है।

चेहरा बताने से लग रहा डर

अब ये वाली दुविधा तो इंडिया गठबंधन के साथ चेहरे को लेकर भी खड़ी हो रही है। चेहरे से मतलब है कि पीएम मोदी के खिलाफ किसे विपक्ष अपना पीएम उम्मीदवार दिखाने वाला है। अब ये सवाल भी अपने आप में बड़े सियासी तूफान को जन्म दे सकता है। इस समय विपक्षी कुनबे में एक नहीं कई पीएम उम्मीदवार हैं। बड़ी बात ये है कि जिन्हें इस पद की लालसा है भी, वे खुद अपने नाम को आगे नहीं कर रहे हैं, लेकिन इन सभी के मैसेंजर जमीन पर पूरी तरह सक्रिय चल रहे हैं। इसी वजह से ममता बनर्जी की पीएम दावेदारी अभिनेता शत्रुघन्न सिन्हें लगातार करते दिख रहे हैं. नीतीश कुमार के झंडे को ललन सिंह बुलंद करने का काम कर रहे हैं। राहुल गांधी की दावेदारी को तो कांग्रेस के साथ-साथ लालू प्रसाद यादव का साथ भी मिलता दिख रहा है।

उद्धव की शिवसेना तो अपने नेता को भी इस पद के लिए लायक बता चुकी है। यानी कि दूल्हा बनने को कई आगे खड़े हैं, किसी एक के नाम पर मुहर लगाते ही इस कुनबे के बिखरने का डर बड़ा है। ऐसे में कैमरे के सामने दावेदारी से पीछे हटा जा रहा है, वहीं कैमरे के पीछे मैसेंजर्स द्वारा पक्ष में माहौल बनाने की भी पूरी कोशिश चल रही है। लेकिन जितनी देर चेहरा बताने में की जाएगी, एनडीए उतनी बार ही ये नेरेटिव सेट करता रहेगा कि विपक्ष के पास मोदी से मुकाबला करने के लिए कोई चेहरा नहीं है।

सीट शेयरिंग पर सिर्फ चर्चा, कोई फैसला नहीं

वैसे इंडिया गठबंधन इस समय एक और असमंजस वाली स्थिति में फंसा हुआ है। अगर ध्यान से एक ट्रेंड को देखा जाए तो सीट शेयरिंग को लेकर फॉर्मूले की चर्चा हर बैठक में हो रही हैं, लेकिन किसे कितनी सीटें दी जाएं, इस पर कोई कुछ नहीं बोलना चाहता। ये भी बताने के लिए काफी है कि इंडिया गठबंधन इस बात से डर रहा है कि अगर सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया गया तो फिर कई दल नाराज हो सकते हैं। ये नाराजगी ही कई अहम फैसले लेने से इस विपक्षी कुनबें को रोक रही है।

ये समझना जरूरी है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ही सबसे पहले कहा था कि बीजेपी के खिलाफ हर सीट पर एक संयुक्त उम्मीदवार होना चाहिए। कई ने उस समय इस पर सहमति भी जता दी थी। लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब सवाल ‘कौन’ पर आ गया, यानी कि कौन सी पार्टी के उम्मीदवार को पूरे इंडिया गठबंधन का प्रत्याशी बताया जाए। अब इस कौन को ढूंढने में काफी देरी हो रही है, ऐसे में ये भी एक विवाद का विषय बना हुआ है। मुश्किलें इसलिए भी ज्यादा बढ़ रही हैं क्योंकि एक साथ आने के बाद भी कई नेताओं के दिल एक नहीं हो पाए हैं।

इसी वजह से मुंबई बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने बड़ा सियास बम फोड़ते हुए कह दिया था कि वो बिहार में भी चुनाव तो जरूर लड़ेगी। इससे पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो वो दोनों कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ ही अपना प्रचार शुरू कर चुकी है। इसी तरह दिल्ली में कांग्रेस भी आप के खिलाफ ही सात लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुकी है। कई दूसरे राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है। इसके ऊपर एक देश एक चुनाव की जो चर्चा शुरू हो चुकी है, उसने भी इंडिया गठबंधन की चुनौतियों को बढ़ाने का काम किया है। यानी कि जो विपक्षी कुनबा अभी तक इन तीन बातों से बस कतराता दिख रहा है, उसे जल्द ही इनका सामना भी करना होगा और समाधान भी निकालना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए पार्टियों को फिर साथ जुटना पड़ेगा।