बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 जुलाई, 2006 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार ट्रेन ब्लास्ट मामले में संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किए गए 12 लोगों को सोमवार को बरी कर दिया। साल 2015 में एक स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में 12 लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से 5 को मौत की सज़ा और बाकी 7 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी।
हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत नियुक्त एक विशेष अदालत के सितंबर 2015 के फैसले को पलट दिया। 2006 के 7/11 ट्रेन विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी करते हुए, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) की दलीलों में खामियां निकालते हुए कहा कि वह प्रत्येक मामले में आरोपियों के खिलाफ अपराध स्थापित करने में पूरी तरह विफल रही।
2006 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामला क्या है?
11 जुलाई, 2006 के शाम 6.23 बजे से 6.29 बजे के बीच पश्चिमी उपनगर रेलवे लाइन पर सात लोकल ट्रेनों के प्रथम श्रेणी के डिब्बों में सात विस्फोट हुए जिसमें 187 लोगों की मौत हो गयी और 824 घायल हुए। 11 जुलाई, 2006 को अलग-अलग पुलिस थानों में सात एफ़आईआर दर्ज की गयी। बाद में मामलों की महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) द्वारा एक साथ जांच की गई।
जुलाई-अगस्त 2006 : एटीएस ने मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया। 30 नवंबर, 2006 को इस मामले में 13 पाकिस्तानी नागरिकों सहित 30 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया, कई आरोपी फरार। 2007 में विशेष अदालत में मुकदमे की शुरुआत हुई। 19 अगस्त, 2014 को मुकदमे की सुनवाई समाप्त हुई। विशेष अदालत ने 13 गिरफ्तार आरोपियों पर फैसला सुरक्षित रखा।
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11 सितंबर, 2015 को विशेष अदालत ने 13 में से 12 आरोपियों को दोषी ठहराया और एक आरोपी साक्ष्यों के अभाव में बरी हुआ। 30 सितंबर, 2015 को विशेष अदालत ने पांच दोषियों को फांसी और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अक्टूबर 2015 को महाराष्ट्र सरकार ने पांच आरोपियों को फांसी की सजा की पुष्टि के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की। सभी 12 दोषियों ने सजा और दोषसिद्धि के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की। 21 जुलाई, 2025 को धमाकों के 19 साल बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सभी 12 आरोपियों को बरी किया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपना मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और यह मानना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन आधार पर ATS के मामले को किया खारिज
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष जिन पहलुओं को स्थापित करने में विफल रहा, उनमें अभियुक्तों की पहचान करने वाले गवाहों की विश्वसनीयता और इस्तेमाल किए गए विस्फोटकों की प्रकृति शामिल है। न्यायालय ने यह भी माना कि अभियुक्तों के इकबालिया बयान सत्य नहीं पाए गए और बचाव पक्ष के इस दावे को स्वीकार कर लिया कि अभियुक्तों को यातना देकर स्वीकारोक्ति करवाई गई थी। अदालत ने अभियुक्तों की टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) को भी खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि इसे आयोजित करने वाले विशेष कार्यकारी अधिकारी (SEO) के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आठ गवाहों से पूछताछ की, जिनमें अभियुक्तों को चर्चगेट स्टेशन तक ले जाने वाले टैक्सी ड्राइवर, अभियुक्तों को ट्रेनों में बम लगाते देखने वाले गवाह और साजिश के गवाह शामिल थे। उच्च न्यायालय ने इनमें से प्रत्येक गवाह के साक्ष्य की गहन जांच की।
टैक्सी चालकों के बारे में, पीठ ने कहा कि वे घटना के बाद 100 दिनों से भी ज़्यादा समय तक चुप रहे और उन्होंने पुलिस को 3 नवंबर, 2006 को ही बयान दिया कि दो अभियुक्त उनकी टैक्सियों में यात्रा कर चुके थे। पीठ ने कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद अभियुक्तों की पहचान के लिए गवाहों को उनके चेहरे और हुलिए की याद दिलाने का कोई विशेष कारण नहीं था।
आरोपियों को बम बनाते देखने का दावा करने वाले गवाह ने भी बदला बयान
पीठ ने आगे कहा कि एक गवाह ने कहा था कि जब वह एक अभियुक्त के घर में घुसा तो उसने अभियुक्त और कुछ अन्य लोगों को बम बनाते देखा था लेकिन जिरह के दौरान उसने अपना बयान बदल दिया और कहा कि वह खुद घर में नहीं घुसा था बल्कि उसके साथ आए एक दोस्त ने उसे बमों के बारे में बताया था।
हाईकोर्ट ने कहा, “बचाव पक्ष चूंकि जिरह के दौरान उसके मौखिक साक्ष्य को तोड़-मरोड़ने में सफल रहा इसलिए इस कारण और दर्ज अन्य कारणों से, हमने उसके साक्ष्य को विश्वसनीय नहीं माना।” साजिश का गवाह होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति के बयान पर, पीठ ने कहा कि उसने कहा था कि अभियुक्त गुप्त बैठकों में कुछ मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे लेकिन उसे चर्चा किए गए विषयों की जानकारी नहीं थी।
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सबूतों की बरामदगी पर क्या बोला हाईकोर्ट?
आरडीएक्स, डेटोनेटर, कुकर, सर्किट बोर्ड, हुक, मैप सहित विस्फोटकों की बरामदगी से संबंधित सबूतों पर उच्च न्यायालय ने कहा कि इन बरामदगी का साक्ष्यात्मक मूल्य इस आधार पर कोई महत्व नहीं रखता कि अभियोजन पक्ष उचित हिरासत और उचित सीलिंग स्थापित करने और साबित करने में विफल रहा जो कि तब तक बरकरार रहनी चाहिए जब तक कि सामान फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (FSL) में न ले जाया जाए।”
न्यायाधीशों ने कहा कि दो अभियुक्तों से बरामद सर्किट बोर्ड अभियोजन पक्ष के लिए कोई मददगार साबित नहीं हुए क्योंकि अभियोजन पक्ष रिकॉर्ड पर कोई सबूत पेश करने और वर्तमान मामले में इस्तेमाल किए गए बमों के प्रकार को स्थापित करने में विफल रहा।
उच्च न्यायालय ने विभिन्न आधारों पर इकबालिया बयानों को अस्वीकार्य और पूर्ण नहीं माना। इकबालिया बयान दर्ज करने से पहले या बाद में अधिकारियों द्वारा किए गए पत्राचार में भिन्नता, और इकबालिया बयानों के लिए मकोका नियमों के तहत अनिवार्य प्रमाण पत्र का अभाव शामिल है। न्यायालय ने केईएम अस्पताल और भाभा अस्पताल के डॉक्टरों के मेडिकल प्रूफ का अवलोकन किया और पाया कि इससे अभियुक्तों से जबरन इकबालिया बयान लेने के लिए उन्हें यातना दिए जाने की संभावना के पर्याप्त संकेत मिलते हैं।