सरकार की तरफ से खेल और खिलाड़ियों के विकास के लिए लगातार दावें किए जाते रहते हैं। बजट में खेल के विकास के लिए फंड भी बढ़ाया जाता है। लेकिन आज भी कई खिलाड़ी संसाधन के अभाव और आर्थिक तंगी के कारण खेल छोड़ने के लिए मजबूर हैं। मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी कुलदीप चौहान अपनी जिंदगी चलाने के लिए धार में एक पी.जी. कॉलेज के बाहर चाय बेचने का काम कर रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल का झंडा बुलंद कर चुके कुलदीप चौहान का कहना है कि मुझे आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है। घर की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए काम कर रहा हूं। सारा जीवन मैं खेल में नहीं निकाल सकता हूं। कुलदीप चौहान की ही तरह देश के कई हिस्सों में अनेक खिलाड़ी सही अवसर और सहयोग नहीं मिलने के कारण अपने खेल को आगे बढ़ाने में सफल नहीं हो रहे हैं।

इसी तरह पटना में गोपाल प्रसाद नाम के राष्ट्रीय स्तर के तैराक चाय बेचने के लिए मजबूर हैं। वो पटना के नयाटोला में एक छोटी सी चाय दूकान चलाते हैं। गोपाल प्रसाद अपनी दूकान पर कई मेडल सजा रखे हैं। सड़क पर गुजरने वाले लोग कौतूहल से रुकते हैं और गोपाल प्रसाद की बेबसी को सुनते हैं। लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है।

कुछ दिन पहले ही हरियाणा और दिल्ली का गौरव बढ़ाने वाले सिंदर कालिया नाम के बॉलीबॉल के खिलाड़ी को सिर पर ईंट ढ़ोकर गुजर-बसर करते हुए देखा गया था।सिंदर कालिया राष्ट्रीय वालीबॉल चैंपियनशिप में 12 पदक जीत चुके थे।

राजस्थान के क्रिकेट खिलाड़ी बाबूलाल जाखड़ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से पिछले 10 साल से पीड़ित हैं। बीमारी के कारण उनकी जिंदगी लाचार हो गयी है। वो न ही चल सकते हैं और न ही उठ सकते हैं। उन्हें भी सरकार से मदद का इंतजार है।