देवभूमि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में विकास के नाम पर चप्पे चप्पे को छलनी करना कितना सही है अब इस बारे में सोचने, समझने व गंभीरता दिखाने का वक्त आ गया है। बीते साल हम हिमाचली कुदरती आपदा में इतना नुकसान झेल चुके हैं कि इन जख्मों को ठीक होने में सालों लग जाएंगे। एक साल में भी हम इन जख्मों पर मरहम नहीं लगा पाए, धरातल पर देखें तो सब राम भरोसे ही दिखता है। सैकड़ों जानें इस कहर में चली गईं, हजारों घर जमींदोज हो गए, सड़कें टूट गई, पुल बह गए, जमीनें बह गई, बाग बागीचे तबाह हुए, कई परियोजनाएं धराशायी हो गईं, मगर साल बीत जाने के बाद भी हिमाचल वहीं खड़ा है। प्रदेश सरकार ने बीते साल 12 हजार करोड़ का नुकसान आकलन किया है। केंद्र से मदद मांगी है। केंद्र व प्रदेश में अलग अलग दलों की सरकारें होने से आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। विकास के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है।

अब बरसात का दौर जारी है। यूं कहें तो बरसात अब अपने अंतिम दौर में है। बिना बरसे ही यह बरसात का दौर निकलता हुआ दिख रहा है। मगर उसके बावजूद भी बीते 31 जुलाई की रात को एक ही झटके में लगभग 65 लोगों की जिंदा समाधि लग गई। खड्डों में बह कर या पत्थर लगने से मौत के भी कई समाचार हैं। अभी तक आधे से अधिक लोग लापता हैं। यानी मलबे के अंदर हैं या मलबे के साथ बहकर उहल, ब्यास, सतलुज जैसी नदियों में समा चुके हैं।

मंडी में बादल फटने से हुआ भारी नुकसान

मंडी के द्रंग विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पधर तहसील की चौहार घाटी के गांव तेरंग राजबन, शिमला जिले के रामपुर उपमंडल के समेज तथा कुल्लू जिले की निरंमड तहसील के बागीपुल जो श्रीखंड महादेव के रास्ते में अंतिम पड़ाव से पहले पड़ता है, में 31 जुलाई की रात को जो कुछ हुआ, उससे पूरा प्रदेश हिल गया। सोए सोए ही 60 से अधिक लोग दब कर मौत का शिकार हो गए। प्रशासन पूरे जोर शोर से एनडीआरएफ, एसडीआरएफ व अन्य एजंसियों की मदद से लापता लोगों को ढूंढा जा रहा है। मंडी के तेरंग गांव में दस में नौ लोगों के शव मलबे से निकाले जा चुके हैं। रामपुर के समेज में भी लापता 36 लोगों में से 15 के शव अब तक मिल चुके हैं जबकि बागीपुल में भी लापता 10 में कुछ लोगों के शव मिल चुके हैं।

हैरानी तो यह है कि पूरे प्रदेश की बात करें तो अभी तक मानसून की आधी बारिश भी नहीं हो पाई है। बांध खाली पड़े हैं। भाखड़ा बांध का जलस्तर अभी कई फुट नीचे हैं जो शायद इस बार भर नहीं पाएगा। यह कहर कुछ स्थानों पर बरपा है जबकि बारिश बहुत कम हो रही है। मौसम विभाग की भविष्यवाणियां जो अब नई तकनीक से सटीक आने लगी थी इस बार आमतौर पर फेल हुई हैं। आम जनता गूगल सर्च करके मौसम की जानकारी हासिल कर अपने कार्यक्रम या यात्राएं तय करने करने लगे थे मगर इस बार पीली, नारंगी, लाल समेत सभी चेतावनियां आमतौर पर सही साबित नहीं हुईं।

भारी बारिश की भविष्यवाणी के दिन खिली धूप सटीकता पर सवाल खड़े करती नजर आई। कह सकते हैं कि इस बार 10 अगस्त तक बारिश का दौर बेहद कम और धीमा रहा जो आने वाले दिनों में भारी जलसंकट के रूप ले सकता है। बांधों में पानी की कमी बिजली संकट पैदा कर सकती है। मैदानी क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र के लिए सिंचाई प्रक्रिया बाधित हो सकती है। बारिश तो इतनी हुई नहीं मगर इसके बावजूद भी नुकसान का आलम जारी है। बात चाहे एनएचएआइ द्वारा संचालित परियोजनाएं हों या प्रदेश सरकार व स्थानीय निकायों द्वारा पिछली बरसात से मिले जख्मों पर मरहम लगाने की, अधिकांश कार्य चालू होने से पहले ही धराशायी होने लगे हैं। बांध टूट रहे हैं, बांधों के गेट आफत के वक्त खुलने से मना करने लगे हैं, जाम हो जाते हैं।