सुंदरबन से कश्मीर पहुंची एक युवती की 12 साल बाद अपनी मां से मुलाकात हुई। यह पुनर्मिलन की ऐसी कहानी है जिसमें एक दशक से अधिक समय लगा। सुंदरबन डेल्टा के एक गांव से हिमालयी कश्मीर के एक गांव तक 2,500 किमी से ज्यादा की दूरी तय कर एक बेटी अपनी मां से मिली। यह पुनर्मिलन महिला के देवर और HAM रेडियो के लोगों के प्रयास के बिना संभव नहीं होता।

युवती अब 26 साल की है, उसके चाचा ने चुपके से एक कश्मीरी व्यक्ति से उसकी शादी कर दी थी जब वह सिर्फ 14 साल की थी। युवती की मां का कहना है कि पश्चिम के दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरबन में अपने घर से 12 साल पहले लापता हो जाने के बाद वह नहीं जानती थी कि उसकी बेटी को उसके अपने चाचा ने उठा लिया है। जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में एक व्यक्ति से युवती की शादी करने के बाद चाचा लापता हो गए। जबकि चाचा ने उसके माता-पिता को लड़की के ससुराल के एड्रेस के बारे में नहीं बताया, पर उसके पति को सुंदरबन का एक पता दिया।

युवती के माता-पिता को खोजने में जुटा देवर

युवती के देवर ने बताया कि जब मेरे भाई ने उससे शादी की, तो हमने उसके चाचा से उसकी उम्र के बारे में पूछा। उसने हमें लिखित रूप में बताया कि वह 19 वर्ष की थी। शादी हजारों किलोमीटर दूर कश्मीर में होने के बाद वह हमारे घर पर हमेशा उदास रहती थी। यह मुझे खासकर तब महसूस हुआ जब मेरी बहनें मेरी मां को बुलाती थीं। वे फोन पर घंटों बात करते थे, और मैं उसकी आंखों में उदासी देख सकता था। देवर ने कहा कि यह मुझे बहुत बुरा लगा और मैं उसके माता-पिता को खोजने लगा।

2017 में शुरू की तलाश

देवर ने बताया, “उसके माता-पिता की तलाश 2017 में शुरू हुई, उसके भाई से शादी करने के कुछ साल बाद। मैं एक ही नाम जानता था – माधवपुर। उसके चाचा ने हमें बताया कि उसका परिवार पश्चिम बंगाल के माधवपुर में रहता था। मैंने इंटरनेट पर खोज शुरू की और उस जगह का पता लगाने की कोशिश की। अकेले पश्चिम बंगाल में माधवपुर नाम से कई जगहें थीं इसलिए मैंने यहां स्थानीय पुलिस से संपर्क किया और उनसे दो स्थानीय लोगों से पूछताछ करने को कहा, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में उसका पता खोजने के लिए उसके चाचा के साथ हमारी मीटिंग फिक्स की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।”

देवर ने बताया कि फिर मैंने फेसबुक के जरिए पश्चिम बंगाल में दोस्त बनाना शुरू किया लेकिन मेरी किसी भी ऑनलाइन बातचीत ने मुझे उसके परिवार तक नहीं पहुंचाया। 2019 में बातचीत के दौरान ही युवती ने हमें अपने स्कूल का नाम बताया था। पर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने और करीब छह महीने तक घाटी में इंटरनेट बंद रहने के कारण खोज बाधित हुई।

रेडियो से ली मदद

इंटरनेट बहाल होने के बाद, वह सुंदरबन में स्कूल का पता लगाने में सफल रहे। युवती के देवर ने बताया कि मुझे इलाके के पुलिस स्टेशन का संपर्क नंबर मिला और वहां फोन किया। मैंने जानकारी साझा की और उनसे उसके माता-पिता को खोजने का अनुरोध किया। लेकिन अधिकारी ने मुझे बताया कि यह एक बड़ा क्षेत्र है और उसके परिवार का पता लगाना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि एक दिन समाज कल्याण विभाग की एक महिला अधिकारी ने मुझे एनसीडब्ल्यू से संपर्क करने के लिए कहा। जब मैंने इस साल मई में आयोग से संपर्क किया तो उन्होंने बहुत मदद की। उन्होंने HAM रेडियो के माध्यम से परिवार का पता लगाने में हमारी मदद की।

एनसीडब्ल्यू ने दक्षिण 24 परगना के बरुईपुर पुलिस स्टेशन से संपर्क किया, जहां अधिकारियों ने पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के स्थानीय HAM रेडियो से संपर्क किया, जो एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन है और ज्यादातर आपदा प्रबंधन में काम करता है।

भाषा-खानपान सब कुछ भूल गयी युवती

पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के सचिव अंबरीश नाग बिस्वास ने बताया, “मुझे बारुईपुर महिला पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी का फोन आया। जब हमने उनसे सीधे बात करने की कोशिश की, तो हमें कश्मीर में एक दुभाषिए की व्यवस्था करनी पड़ी जो HAM रेडियो का एक हिस्सा है क्योंकि वह अब उर्दू बोलती है। मैंने उनसे सीधे फोन पर बात की और उन्होंने बारुईपुर सब-डिवीजन के एक विशेष ब्लॉक में स्थित एक आइसक्रीम दुकानदार और एक स्कूल के नाम का खुलासा किया।”

बरुईपुर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि वह बंगाली भाषा से लेकर खाने की आदतों तक सब कुछ भूल गई थी लेकिन उसे अपनी मां याद थी। बिस्वास कहते हैं, “हमने उसके परिवार का पता लगाया और उन्हें स्थानीय पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा ताकि वे वीडियो कॉल के जरिए उससे बात कर सकें। आज उसका परिवार उससे मिलने के लिए कश्मीर में है।”