नीति हस्तक्षेप की आवश्यकता अजय मेहता : जब हम प्रवासियों के स्वास्थ्य को देखते हैं तो हम किस तरह के नीतिगत हस्तक्षेप की तलाश में हैं? सबसे पहले और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि हम इसे एक प्रवर्तन मुद्दे या जनांकिकी खतरे के रूप में न देखें। यह एक मानवीय समस्या है जिससे दयाभाव से निपटने की आवश्यकता है।
मुंबई अपने निगम अस्पतालों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है, जहां मानव संसाधन और उपकरणों का पर्याप्त भंडार है, लेकिन कितने प्रवासियों को पता है कि यहां नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है? अगर उन्हें पता भी हो, तो कितने प्रवासी नगर निगम के अस्पताल में जाकर उस चिकित्सा सेवा का लाभ उठा पाते हैं?
लैंगिक मुद्दा: डॉ. वंदना प्रसाद

अकेले रहने वाले प्रवासियों में ज्यादातर पुरुष हैं, लेकिन ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने परिवार के अन्य सदस्य के रूप में निर्माण श्रमिक, शिक्षक और नर्स के रूप में कार्य करती हैं। इसलिए आर्थिक संकट में एक सशक्त नारीकरण होता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी उत्पन्न हुई हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि भारत में महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया बहुत अधिक है। साथ ही प्रवासी जब घर वापस गए तो अनेक जगहों पर उनका स्वागत किया गया और पंचायतों ने उन्हें वापस लाने का प्रयास किया। कई जगहों पर इसका उल्टा भी हुआ। इसलिए विशेष रूप से वापस आने वाले प्रवासियों के संबंध में क्वारेंटाइन, आइसोलेशन, समुदाय-आधारित सुविधाओं की व्यवस्था करना महत्त्वपूर्ण है।
प्रवासियों को अलग-थलग करने पर डॉ. पवित्र मोहन

हम जो देख रहे थे (पिछले मार्च में) वह कोविड से ज्यादा प्रभावित नहीं था, बल्कि सभी स्वास्थ्य सेवाओं के बंद होने, परिवहन की अनुपस्थिति, भोजन की भारी कमी से प्रभावित था, जिसके कारण तपेदिक जैसी बीमारियों में वृद्धि हुई। सरकारी सेवाएं या तो कोविड पर केंद्रित थीं या बिल्कुल भी नहीं थीं, और इस वजह से घर पर बच्चों के जन्मदर में काफी वृद्धि हुई जिसके कारण माताओं की मृत्यु आदि का खतरा बढ़ गया। कुछ क्षेत्रों में, जहां कोविड का प्रकोप था वहां एक सिंड्रोम उत्पन्न हो गया, लेकिन इसके साथ तपेदिक में भी तेज वृद्धि हुई। उच्च प्रवास वाले क्षेत्रों में, देखभाल की अत्यन्त सीमित सुविधा के कारण मलेरिया महामारी भी बढ़ने लगी।
गांवों में हमने बच्चों में कुपोषण का स्तर डेढ़ गुना बढ़ते हुए देखा। अगले कई महीनों तक, जब शहरों में भी कोविड, दूसरी लहर से पहले गिरावट आई, तो पहली लहर के अनुभव की एक विशेष अविस्मरणीय बात प्रवासियों के लौटने पर उनके साथ किया गया व्यवहार था। सामान्य तौर पर, वे शहरों से जुड़ाव नहीं महसूस करते हैं। लेकिन इस दौरान वे खुद को और भी अलग-थलग महसूस करने लगे। दूसरी लहर से पहले इसका बहुत बड़ा प्रभाव था, जबकि टीकाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा था। इस अलगाव के कारण उनमें इस व्यवस्था से बहुत अधिक अविश्वास उत्पन्न हुआ और उन्होंने टीकों को स्वीकार न करना उचित समझा। प्रवासियों के बीच विश्वास की बहाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
सामुदायिक भागीदारी पर उमा महादेवन :

हम समुदाय-आधारित स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में बात कर रहे हैं। मेरी टीम ने महामारी से निपटने के लिए एक मंच बनाया है, सहयोग करने वाले कार्यालयों के साथ मदद के अनुरोधों को जोड़ना, सभी सरकारी सुविधाओं की मैपिंग, सेवा वितरण इकाइयों, निकटतम आंगनवाड़ी, निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, डाकघर, बैंक शाखा, पुलिस स्टेशन, इंद्रा कैंटीन, आस-पास के नागरिक समाज समूहों से जुड़ना संभव है जो मदद करने में सक्षम हो सकते हैं। यह करणीय और (अलग-अलग) भाषाओं में होना चाहिए। हमारे पास कॉल सेंटर और प्रवासी संसाधन केंद्र हो सकते हैं और सभी प्रवासियों को निकटतम सेवाओं के विवरण की जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर के श्रीनाथ रेड्डी :
हमारे लिए यह कहना वास्तव में उपयोगी नहीं है कि हमें केवल यह जांचना चाहिए कि कोविड काल के दौरान उनके (प्रवासियों) के साथ क्या हुआ था। यह लंबे समय से चली आ रही उपेक्षा का एक तीव्र विस्तार था। हमारी आबादी के कई वर्ग ऐसे हैं, जो वास्तव में पहुंच, उचित देखभाल और सामर्थ्य के मामले में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं। इसलिए हम सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की अपील करते हैं, न केवल मानव उत्पादकता की रक्षा के लिए जो प्रवासियों को मानव संसाधन के रूप में देखने वाले लोगों की व्यस्तता प्रतीत होती है, बल्कि इसे एक आवश्यक मानव अधिकार के रूप में भी देखते हैं।
रहन-सहन की उत्तम दशाओं की आवश्यकता पर डॉ. पवित्र मोहन : रहन-सहन की स्थिति प्रवासियों के स्वास्थ्य के मुख्य केंद्रीय निर्धारकों में से एक है। यदि 50 लोग बिना पानी के, बिना शौचालय के, बिना वेंटिलेशन वाले कमरे में रह रहे हैं तो आप स्वास्थ्य की बात नहीं कर सकते। कोविड के समय में, हम वेंटिलेशन के मूल्य को समझ गए हैं। लेकिन, इससे पहले, उनमें से बहुत से लोग तपेदिक से पीड़ित थे। हो सकता है, बाद में, हम सोच सकें कि सुरक्षित और स्वस्थ आवास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत तरीके क्या होने चाहिए। अधिकांश विकसित देशों ने प्रवासियों के लिए और शहरों में नागरिकों के लिए सुरक्षित आवास में निवेश किया है और सार्वजनिक स्वास्थ्य का विकास करना इसका मुख्य लक्ष्य रहा है। दूसरा मुद्दा काम करने की दशाएं हैं। हम दक्षिण राजस्थान में सिलिकोसिस के अनेक मामले देखते हैं, जहां 30 और 40 वर्ष की आयु के लोग मर रहे हैं क्योंकि वे पत्थर की नक्काशी या खनन में शामिल हैं।
तीसरा मुद्दा स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच है। केवल पोर्टेबिलिटी ही समस्या नहीं है, क्योंकि देश के नागरिक के रूप में स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार है। आदर्श रूप से, आपको कुछ भी ले जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हमारी नीति प्रवासियों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को सार्वभौमिक बनाने की दिशा में होनी चाहिए, भले ही प्रलेखन (कागजी कार्रवाई) हो या न हो।