सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि तलाक के अधिकतर मामले प्रेम विवाह के बाद ही आ रहे हैं। कोर्ट ने इस मामले में मध्यस्थता करने की सलाह दी, लेकिन पति की तरफ से इसका विरोध किया गया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि वह बिना पति के सहमति के भी तलाक देने का फैसला कर सकता है।
सुलह की कोई गुंजाइश नहीं होने पर ही आगे बढ़ना चाहिए
इससे कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सुलह की कोई गुंजाइश नहीं होने पर शीर्ष अदालत से तलाक स्वीकार करना ‘अधिकार का मामला’ नहीं है, बल्कि यह विवेक के आधार पर बहुत सोच-समझकर दिया जाना चाहिए। इस दौरान दोनों पक्षों को पूरी तरह से न्याय मिलने का भरोसा भी मिलना चाहिए तथा उनसे जुड़े सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए।
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि साफ तौर पर शीर्ष अदालत को यह भरोसा दिलाया जाना चाहिए कि विवाह पूरी तरह टूट चुका है, भावनात्मक रूप से अब मेलमिलाप की कोई गुंजाइश नहीं है और तलाक ही अब एकमात्र उपाय, तभी ऐसा किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि विवाह पूरी तरह से टूट चुका है इसको लेकर कई पहलुओं पर विचार जरूरी है। जैसे विवाह के बाद कब से दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं, अंतिम बार दोनों पक्ष एकसाथ कब थे, और दोनों पक्षों और उनके परिवार वालों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ लगाए गये आरोप आदि पर अच्छी तरह विचार किया जाना चाहिए।