बीते पंद्रह माह से मनरेगा वर्कर्स को पेमेंट नहीं मिल पा रही है। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से दरखास्त की कि वो केंद्र को आदेश जारी करे कि स्कीम के तहत राज्यों को पैसा तुरंत जारी किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलें सुनने के बाद केंद्र से कहा कि वो बताए कि स्कीम के तहत पैसा जारी क्यों नहीं हो रहा है। अदालत का कहना था कि केंद्र पैसा रोके रहेगा तो ऐसे में करप्शन को बढ़ावा मिलेगा।

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला की बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मनरेगा एक अच्छी स्कीम है। इसे राजनीति से दूर रखा जाए। अदालत के सामने ये मामला स्वराज इंडिया लेकर गया था। संस्था ने 2015 में जनहित याचिका दायर की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में रिट का निपटारा कर दिया था। स्वराज इंडिया ने इंटरलोक्युटरी एप्लीकेशन दायर करके सुप्रीम कोर्ट से दखल का अनुरोध किया था।

मनरेगा की मद में 10 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम बकाया

एडवोकेट प्रशांत भूषण ने मनरेगा वर्कर्स की तरफ से दलील देते हुए कहा कि केंद्र मनरेगा की मद में राज्य सरकारों को पिछले पंद्रह माह से पैसा जारी नहीं कर रहा है। 10 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम बकाया है। इसकी वजह से राज्य सरकारें मनरेगा के तहत आवेदन करने वाले लोगों को काम नहीं दे रही हैं। उन्हें वापस लौटा दे रही हैं। उनकी दलील थी कि गरीब तबके के लोगों को रोजगार देने के लिए ये एक बेहतरीन स्कीम है।

भूषण का कहना था कि केंद्र मनरेगा के तहत पैसा न देने के लिए अलग अलग तरह की दलीलें दे रहा है। पश्चिम बंगाल सरकार को कहा गया है कि वो स्कीम के तहत पैसा जारी न करे, क्योंकि वहां करप्शन की शिकायतें मिली हैं। उनका कहना था कि अगर ममता बनर्जी के सूबे में भ्रष्टाचार की बात सामने आई है तो केंद्र उसकी अपने स्तर से जांच करवा सकता है। लेकिन पैसा रोकना कैसी तुक है।

डिमांड के 15 दिनों के भीतर पेमेंट नहीं मिलती है तो देना पड़ता है ब्याज

एडवोकेट का कहना था कि कई राज्यों को पैसा इस वजह से नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि वर्कर्स का बैंक खाता आधार से लिंक नहीं है। उनका कहना था कि जब पैसा सीधे खातों में जा रहा है तो आधार की बात बेमानी हो जाती है। आधे से ज्यादा वर्कर्स के खाते आधार से नहीं जुड़े हुए हैं। उनका कहना था कि मनरेगा एक्ट कहता है कि ग्रामीण इलाकों में हर परिवार के एक सदस्य को साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार दिया जाए। पेमेंट की डिमांड करने के 15 दिनों के भीतर वर्कर्स को पैसा दिया जाए। अगर पेमेंट में देरी होती है तो वर्कर्स को ब्याज देने का भी प्रावधान है।

एएसजी बोले- राज्य सीधे केंद्र से मांग सकते हैं पैसा, एनजीओ क्यों टांग अड़ा रहा

एडिशनल सॉलीसिटर जनरल केएम नटराज ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील दी कि राज्यों को अगर पैसा चाहिए तो वो सीधे केंद्र से बात कर सकते हैं। पैसे के लिए किसी एनजीओ का याचिका दायर करना बेतुकी बात है। दरअसल उनसे कोर्ट ने पूछा था कि क्या आपने जवाब दाखिल किया है कि क्यों राज्यों को केंद्र सरकार की तरफ से पैसा नहीं दिया जा रहा है। नटराज का कहना था कि अभी तक उन्होंने कोई जवाब कोर्ट में नहीं दिया है।