ओडिशा में बीजेपी की तरफ से मोहन माझी को मुख्यमंत्री बना दिया गया है। उनका शपथ ग्रहण समारोह भी संपन्न हो चुका है। ओडिशा के लिहाज यह पहली बार है जब वहां पर कमल खिला है और बीजेपी की सरकार बनी है। इस समय सभी के मन में सवाल आ रहा है कि आखिर एक आदिवासी चेहरे को ही भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने का फैसला क्यों किया।
आदिवासी फैक्टर जरूरी
मोहन माझी को मुख्यमंत्री बनाने का सबसे बड़ा कारण तो यही है कि वह आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि ओडिशा में 23 फीसदी के करीब आदिवासी समाज का वोट है। इस वोट के दम पर हार जीत राज्य में तय हो जाती है। भाजपा पिछले लंबे समय से ओडिशा में आदिवासी वोट बैंक पर अपना फोकस जम रही थी, इसे साधने के लिए कई वादे भी किए गए। पटनायक सरकार की कई योजनाओं पर भी आदिवासी विरोध का तमगा लगाया गया था। ऐसे में अब जब बीजेपी की सरकार बन चुकी है तो किसी भी कीमत पर आदिवासी वोटर को नाराज नहीं करना चाहती। समझने वाली बात यह भी है कि बीजेपी ओडिशा में झारखंड जैसी गलती नहीं करना चाहती थी जहां पर उसने एक गैर आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी थी।
संघ से करीबी मायने रखती
यह बात कमी ही लोगों को पता है कि मोहन माझी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काफी करीबी माने जाते हैं। ओडिशा में आदिवासी बाहुल जो भी इलाके रहे हैं वहां पर जितने भी संघ के कार्यक्रम हुए हैं, उनमें सीधी भूमिका मोहन माझी की रही है। इस समय वैसे भी ऐसा कहा जा रहा है कि आरएसएस और बीजेपी के बीच में रिश्ते कुछ तल्ख चल रहे हैं, ऐसे में संघ के करीबी को मुख्यमंत्री बनाकर बड़ा संदेश देने का काम किया गया है। जानकार इसे रिश्तों में सुधार की एक कवायद के तौर पर भी देख रहे हैं।
तीखी जुबान, मुखर आवाज का फायदा
संघ के करीबी होना, आदिवासी चेहरा होना तो मोहन माझी के समर्थन में जाता ही है, इसके अलावा भाजपा की तरफ से जब भी आवाज उठाने की बात होती है, ओडिशा में सबसे पहला नाम मोहन माझी का ही आता है। लंबे समय तक ओडिशा में नवीन पटनायक की सरकार रही है, ऐसे में बीजेपी की तरफ से सबसे आक्रमक बैटिंग मोहन माझी ही करते थे। 2023 में तो ओडिशा की विधानसभा में एक बार ऐसा देखने को मिला जब मांझी ने स्पीकर की तरफ दाल फेंक दी थी। उस हरकत की वजह से उन्हें विधानसभा से सस्पेंड भी होना पड़ गया था, लेकिन जनता को संदेश स्पष्ट जा चुका था- बीजेपी की सबसे मुखर आवास ओडिशा में वही रहने वाले हैं।
सरपंच से लेकर मंत्री तक का अनुभव
अब मुखर आवाज होना अगर माझी को ताकत देता है तो उनका अनुभव भी उनके मुख्यमंत्री बनने का एक बड़ा कारण है। बड़ी बात यह है की माझी ने सरपंच से लेकर मंत्री तक का सफर तय किया है। चार बार के विधायक रह चुके माझी ने नवीन पटनायक की सरकार में बीजेपी के कोटे से एक मंत्री के रूप में भी सेवा कर रखी है। ऐसे में अधिकारियों से किस प्रकार से बातचीत करनी होती है, किस तरह से शासन को संभालना होता है, यह सारी जानकारी माझी को पहले से है।
झारखंड चुनाव पर नजर
जानकारी के लिए बता दें कि आने वाले महीने में झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उस राज्य में भी आदिवासियों की संख्या निर्णायक मानी जाती है। वहां पर भी उस वोट बैंक के दम पर हर जीत तय हो जाती है। अब क्योंकि झारखंड ओडिशा के काफी करीब है, ऐसे में ओडिशा की राजनीति का सीधा असर भी झारखंड पर पड़ जाता है। जानकार मानते हैं इस वजह से भी ओडिशा में एक आदिवासी मुख्यमंत्री देकर झारखंड को भी बड़ा सियासी संदेश देने का काम हुआ है।