छत्तीसगढ़ में आयोजित हिंदू सम्मेलन में बोलते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि यह देश सबका है और यही भावना सामाजिक सामंजस्य की परिचायक है। उन्होंने कहा कि सद्भाव की दिशा में पहला कदम मन से भेदभाव की भावना को दूर करना और सभी को अपना मानकर व्यवहार करना है। लोगों को जाति, धन या भाषा के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए।

मोहन भागवत ने इसी कार्यक्रम में कहा कि परिवारों को सप्ताह में कम से कम एक दिन साथ बिताना चाहिए, प्रार्थना करनी चाहिए और घर का बना खाना साथ खाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब लोग खुद को अकेला महसूस करते हैं, तो वे अक्सर गलत आदतों में पड़ जाते हैं। परिवार में नियमित बातचीत और मेल-जोल से इसे रोका जा सकता है।

‘सामाजिक सेवा टकराव नहीं, एकता का प्रयास बताया’

कार्यक्रम में मोहन भागवत ने सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और अनुशासित नागरिक जीवन की अपील की। उन्होंने लोगों से कहा कि वे आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर समाज और देश के लिए मिलकर काम करें। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सामाजिक सौहार्द की पहली शर्त है मन से अलगाव और भेदभाव की भावना को दूर करना। उन्होंने कहा कि मंदिर, जलस्रोत और श्मशान सभी हिंदुओं के लिए खुले होने चाहिए और सामाजिक सेवा को टकराव नहीं, बल्कि एकता का प्रयास बताया।

‘कुटुंब प्रबोधन’ की अवधारणा पर जोर दिया

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘कुटुंब प्रबोधन’ की अवधारणा पर जोर देते हुए कहा कि हर व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि वह रोज़ समाज और देश के लिए कितना समय और संसाधन देता है। उन्होंने कहा कि अगर देश सुरक्षित नहीं है, तो परिवार भी सुरक्षित नहीं रह सकते। इसलिए अच्छे संस्कारों को घर और रोज़मर्रा की जिंदगी में अपनाना जरूरी है।

पर्यावरण को लेकर चिंता जताते हुए भागवत ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण नुकसान गंभीर समस्या हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे पानी बचाने, वर्षा जल संचयन अपनाने, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक कम करने और ज्यादा  पेड़ लगाने की शुरुआत अपने घरों से करें।

उन्होंने घर में मातृभाषा के प्रयोग, भारतीय पहनावे के सम्मान और स्वदेशी व आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि जहां बहुत जरूरी न हो, वहां देश में बने सामान ही खरीदे जाएं, हालांकि दवाइयों जैसी जरूरी चीजों में आयात किया जा सकता है। भागवत ने संविधान, कानून और नागरिक अनुशासन का सख्ती से पालन करने की अपील की।

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