Delhi Election 2025: दिल्ली चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता बढ़ चुकी है। शुक्रवार को पीएम मोदी ने एक तरफ झुग्गी-झोपड़ी वालों को फ्लैट की चाबी दी तो वहीं दूसरी तरफ उनकी तरफ से दिल्ली की ही जनता को एक बड़ा संदेश भी दिया गया। उस संदेश के तहत उन्होंने AAP को दिल्ली के लिए ही सबसे बड़ी ‘आपदा’ बता दिया। उनकी पहले ही संबोधन से साफ हो गया, चुनाव में असली लड़ाई तो दो विकास मॉडल की रहने वाली है- केजरीवाल का दिल्ली मॉडल बनाम मोदी का ‘गुजरात मॉडल’।

अब इन दो मॉडलों का जिक्र इसलिए क्योंकि एक के दम पर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं और दूसरे के दम पर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का इस देश में विस्तार किया है। दोनों ही मॉडलों की चर्चा काफी ज्यादा होती है, दोनों ही दावा करते हैं कि विकास उनका केंद्र है। लेकिन एक सवाल तो मन में आता ही है- मोदी का गुजरात मॉडल और केजरीवाल का दिल्ली मॉडल आखिर है क्या? जिक्र तो कई बार हुआ, लेकिन दोनों में अंतर क्या है?

केजरीवाल का दिल्ली मॉडल समझिए

अरविंद केजरीवाल के दिल्ली मॉडल का आधार चार स्तंभ हैं- सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा, लोगों के लिए मोहल्ला क्लीनिक, सस्ती बिजली और फ्री वाली योजनाएं। अरविंद केजरीवाल खुद कई मौकों पर इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि वे ऐसे इकोनॉमिक मॉडल में विश्वास रखते हैं जहां पर समाज के सबसे गरीब तबके के हाथ में पैसा दिया जाए, फिर उस पैसे को वो गरीब मार्केट में लगाए और फिर उससे डिमांड-सप्लाई की चेन चलती रहे।

इसी वजह से केजरीवाल महिलाओं के हाथ में महीने के पैसे दे रहे हैं। इसी वजह से वे बिजली बिल माफ कर रहे हैं, इसी वजह से उनकी तरफ से अब गलत पानी बिल भी माफ करने की बात कर दी गई है। इन फ्रीबीज के अलावा अरविंद केजरीवाल ने हेल्थकेयर पर काफी ध्यान दिया है। इसी का नतीजा है कि उन्होंने 2013 के बाद से ही राजधानी में मोहल्ला क्लीनिक का कॉन्सेप्ट शुरू कर दिया। इस कॉन्सेप्ट के तहत मुफ्त में ही लोगों को इलाज मिल जाता है।

अब मोहल्ला क्लीनिक को लेकर कहा जाता है कि हर बीमारी का इलाज यहां नहीं हो पाता, लेकिन सामान्य बीमारियों के लिए अब दूर-दूर जाना भी नहीं पड़ता। असल में केजरीवाल ने एक ऐसा नेरेटिव सेट कर दिया है कि जिन मुद्दों के बारे में दूसरी पार्टियां ज्यादा बात नहीं करती थीं, उन मुद्दों के दम पर ही उन्होंने चुनाव लड़ने का काम किया है। वो मुद्दे हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार। यहां भी क्योंकि अब लगातार आम आदमी पार्टी अपने वादों को ‘गारंटी’ का नाम देती है, उसने भी दिल्ली और पंजाब में तो जरूर विश्वनीयता की दीवार खड़ी कर दी है।

मोदी का मॉडल समझिए

अब बात अगर पीएम मोदी के गुजरात मॉडल की करें तो यहां पर महत्वकांक्षाएं ज्यादा दिखाई पड़ती हैं। उन बड़े सपनों को पूरा करने की कोशिश होती है जो भविष्य में देश को आधुनिक बना सकते हैं, आत्मनिर्भर बना सकते हैं और विकसित बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ा सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात की ज्यादातर छतों पर जब सोलर पैनल दिखाई पड़ते हैं।

अब उसी स्कीम को आगे बढ़ाने के लिए पूरे देश में सूर्योदय योजना शुरू कर दी गई है। इसे महत्वकांक्षी कदम ही माना जाएगा क्योंकि किसी मिडिल क्लास या फिर गरीब के लिए इसकी तुरंत वाली आवश्यकता नहीं है, लेकिन भविष्य में इसी के दम पर रिन्यूएबल एनर्जी की दिशा में और आगे बढ़ा जा सकता है। गुजरात मॉडल का ही हिस्सा इंफ्रास्ट्रक्चर पर दिख रहा सरकार का जरूरत से ज्यादा फोकस है। वैसे तो एनडीए सरकार की यह पहचान बन चुकी है कि उनके कार्यकाल में सड़कों-हाइवों का काफी विस्तार होता है।

अटल बिहारी वाजपेयी ने अगर गोल्डन क्वाडिलेट्रल शुरू किया था तो पीएम मोदी ने भारतमाला प्रोजेक्ट को विस्तार देने का काम किया। यानी कि मोदी मॉडल का अगर जिक्र होगा तो वहां अच्छी सड़कें, ढेर सारे हाइवे, अत्याधुनिक टनल्स का जिक्र ज्यादा रहेगा। गुजरात मॉडल की ही एक और विशेषता तकनीक है, एक आम आदमी की जिंदगी में सरकार का दखल कैसे कम किया जाए, इस पर ध्यान केंद्रित दिखता है।

पीएम मोदी के कार्यकाल को अगर देखा जाए तो डिजिटल इंडिया को काफी एक्सपैंड किया गया है। डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर शुरू जरूर यूपीए कार्यकाल में हुआ, लेकिन उसका असल फायदा कई लोगों को अब दिखता है। हर योजना का पैसा सीधा अकाउंट में आना एक बड़ी बात है। इसके ऊपर जिस तरह से कई काम अब पेपरलैस कर दिए गए हैं, इसमें भी सरकार की विचारधारा दिख जाती है। देश का बजट ही अगर देख लिया जाए तो अब टैबलेट के जरिए वित्त मंत्री अपना संबोधन देती हैं। बीमा ऑनलाइन होने लगा है, संसद का सारा काम इंटरनेट के जरिए चल रहा है, ऐसे में तकनीक का प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल मोदी मॉडल की पहचान बन गई है।

मोदी-केजरीवाल मॉडल की समानता

वैसे मोदी और केजरीवाल मॉडल में एक समानता भी है, योजना का लाभ अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक जरूर पहुंचे। अगर केजरीवाल गरीब महिलाओं को महीने का पैसे दे रहे हैं, पीएम मोदी भी अपनी योजना के जरिए लगातार राशन बांट रहे हैं। इसी तरह दोनों के ही मॉडल में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का नेरेटिव भी तगड़ा काम करता है। नेरेटिव इसलिए क्योंकि विवाद में पीएम मोदी की सरकार भी रही है और दिल्ली में केजरीवाल की भी।

अब दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल और पीएम नरेंद्र मोदी के मॉडल की असल परीक्षा होने जा रही है। कहना चाहिए विचारधारा के साथ-साथ किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा, उसका फैसला यह दोनों मॉडल ही करने जा रहे हैं। अभी तक तो दिल्ली को केजरीवाल मॉडल रास आ रहा था, लेकिन इस चुनाव में जनता का कैसा मूड रहता है, यह देखना काफी दिलचस्प होगा। वैसे दिलचस्प तो चुनाव इसलिए भी हो गया है क्योंकि बीजेपी ने भी अपनी पहली प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। उस बारे में और जानने के लिए यहां क्लिक करें