सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक मानते हुए इस पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। लोकसभा चुनाव कुछ महीने दूर है लेकिन केंद्र सरकार इसे चुनौती न देने पर विचार कर रही है। सरकार न तो पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार कर रही है और न ही नई फंडिंग प्रणाली स्थापित करने के लिए अध्यादेश जारी करने पर विचार कर रही है।
PIL कोई भी दायर कर सकता
हालांकि सरकार के एक सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि पीआईएल (जनहित याचिका) का उपयोग कोई भी कर सकता है। गुरुवार को बीजेपी की आधिकारिक लाइन थी कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए शुरू की गई थी। सूत्र ने बताया, “हम व्यवस्था में सुधार करना चाहते थे क्योंकि हम उद्योगों को स्थानीय सरकारों द्वारा इस आधार पर परेशान नहीं होने दे सकते थे कि वे किसे चंदा दे रहे हैं।”
सरकार में एक राय है कि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ द्वारा दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला कोई रास्ता नहीं सुझा सका। उन्होंने कहा, ”जिन पार्टियों और नेताओं के पास काला धन है वे अब इसे खर्च कर सकते हैं। कोर्ट के फैसले के बाद अब इलेक्टोरल बॉन्ड के आने के पहले की तरह से चंदा मिलेगा।”
अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने वाला बैंक अब इसे जारी करना बंद कर देगा। साथ ही कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से 12 अप्रैल, 2019 के अदालत के अंतरिम आदेश के बाद से खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण जमा करने को कहा है।
SBI शेयर करेगा नाम
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमें अभी तक आदेश को विस्तार से पढ़ने का अवसर नहीं मिला है, लेकिन यह हमारे लिए बिल्कुल स्पष्ट है कि एसबीआई को चुनावी बांड खरीदने वालों के नाम साझा करने होंगे। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है।”
गौरतलब है कि एसबीआई के पास चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले सभी लोगों के नाम, आधार और पैन कार्ड विवरण हैं, भले ही वे किसी भी राशि के हों। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी कि क्या आयोग प्राप्त विवरण के अनुसार एसबीआई द्वारा साझा किए गए डेटा का खुलासा करेगा।