One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन के विधेयक को मोदी सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी दे दी है। सरकार संसद के चालू शीतकालीन सत्र में बिल ला सकती है। सबसे पहले यह बिल जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास जाएगा और फिर इस पर सभी सियासी दलों के सुझाव लिए जाएंगे। आखिर में यह बिल संसद में लाया जाएगा और इसको पास करवाया जाएगा। एक साथ चुनाव कराना भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में किए गए अहम वादों में से एक था।

यह कदम मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों को मंजूर करने के बाद उठाया है। कमेटी ने चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस कदम का कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसी कई इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने विरोध किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इससे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा होगा। नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान जैसे अहम एनडीए साथियों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है।

केंद्र को आम सहमति बनानी होगी- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

इस मुद्दे पर समिति की अध्यक्षता करने वाले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘केंद्र सरकार को आम सहमति बनानी होगी। यह मुद्दा किसी पार्टी के हित में नहीं बल्कि राष्ट्र के हित में है। यह एक राष्ट्र, एक चुनाव गेम-चेंजर होगा। यह मेरी राय नहीं बल्कि अर्थशास्त्रियों की राय है, जो मानते हैं कि इसके लागू होने के बाद देश की जीडीपी 1-1.5 फीसदी बढ़ जाएगी।’

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वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?

वन नेशन वन इलेक्शन का मकसद पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इसके समर्थक रहे हैं। इस समय लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन का इतिहास

एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा 1951-52 में हुए पहले आम चुनावों से शुरू हुई यानी कि पहले केंद्र और राज्यों के एक साथ में ही इलेक्शन हुआ करते थे। साल 1957, 1962, 1967 में भी केंद्र और राज्य सरकारों के इलेक्शन एक ही साथ में करवाए गए थे। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की बगवात के चलते सीपी गुप्ता की सरकार गिर गई और यहीं से एकसाथ चुनाव का गणित भी बिगड़ गया। इसके बाद साल 1968 और 1969 में भी कुछ राज्यों की सरकारें समय से पहले ही भंग हो गई। 1971 की जंग के बाद लोकसभा इलेक्शन भी समय से पहले करा दिए गए। इससे चुनावी गणित बिगड़ गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा में एकसाथ चुनाव ही हुए थे। विस्तृत जानकारी के लिए यहां क्लिक कर पढ़ें…