ज्योति सिडाना
शिक्षा का उद्देश्य तथ्यों को रटाना नहीं, बल्कि दिमाग को प्रशिक्षित करना होता है। अल्बर्ट आइंस्टीन का मानना था कि जो व्यक्ति कभी गलती नहीं करता इसका अर्थ है कि उसने कभी भी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की। यानी जब हम कुछ नया करते हैं तो गलतियां होना स्वाभाविक है। मगर नई पीढ़ी के बच्चे बिना गलतियां किए और बिना विफल हुए सफल होने की चाहत रखते हैं, जो उनमें संघर्ष का जज्बा और हार को स्वीकार करने की प्रवृत्ति पनपने ही नहीं देता। उन्हें लगता है कि किसी भी काम या परीक्षा में एक ही प्रयास में सफलता मिलनी चाहिए अन्यथा जीवन व्यर्थ है।
कंप्यूटर क्रांति के बाद से बच्चों में विचार की क्षमता कम हुई
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक क्यूंग ही किम ने अमेरिकी बच्चों पर एक अध्ययन में पाया कि कंप्यूटर क्रांति के बाद से बच्चों में विशिष्ट और नवाचारी विचार की क्षमता पहले की तुलना में कम हुई है। उनमें हंसने-हंसाने, कल्पना करने, विमर्श और विचारों का विश्लेषण करने की क्षमता में भी कमी देखी जा रही है। इसके लिए वे स्कूल की परीक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम, टीवी देखने, मोबाइल के उपयोग और सही, गलत के बीच अंतर करने के प्रति कम जागरूकता को जिम्मेदार मानती हैं।
आज के बच्चे गैरजरूरी गतिविधियों में ज्यादा व्यस्त हैं
आज के दौर में बच्चे अपना अधिकतर समय निष्क्रिय गतिविधियों, जैसे टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, आनलाइन गेम आदि में बिताते हैं। इसके चलते बचपन में ही उनमें सृजनशीलता, नवाचार और जोखिम लेने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है और स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं उनमें कम उम्र में ही विकसित हो रही हैं। हालांकि यह केवल अमेरिकी बच्चों का सच नहीं है। यह दुनिया भर के बच्चों में देखा जा रहा है। भारतीय संदर्भ में उपर्युक्त कारणों के साथ-साथ शिक्षण पद्धति, शिक्षा का राजनीतिकरण, परिवार व्यवस्था, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, बाजारोन्मुख समाज, मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा आदि भी इसके लिए उत्तरदायी हैं। हम सूचना युग में जी रहे हैं और सूचना क्रांति के बाद कहा जाता है कि ज्ञान ही शक्ति है। निस्संदेह ज्ञान महत्त्वपूर्ण है, लेकिन कंप्यूटर या प्रौद्योगिकी संचालित ज्ञान किताबों और कक्षा शिक्षण से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकता।
कल्पना और विचारों के विस्तार के लिए ज्ञान ज्यादा जरूरी
आधुनिक तकनीक केवल सूचना या ज्ञान प्रदान करती है, लेकिन विश्लेषणात्मक दिमाग के बिना हम इसे ज्ञान या बुद्धिमत्ता में नहीं बदल सकते। प्रभावी शिक्षण पद्धति के साथ कक्षा शिक्षण, पढ़ने की आदतों और विमर्श प्रक्रिया में सक्रिय सहभागिता के बिना बच्चे आलोचनात्मक शिक्षण और विचारों को विश्लेषित करना नहीं सीख सकते। यह भी एक तथ्य है कि सृजनशीलता, कल्पना और विचारों के विस्तार के लिए विश्लेषणात्मक शक्ति और ज्ञान अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
पर यह भी सच है कि वर्तमान समय में कक्षाओं में ऐसा नहीं हो रहा है, खासकर आनलाइन शिक्षा और डिजिटल कक्षाओं के समय में। इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, स्वयं छात्र को, शिक्षक या प्रौद्योगिकी को। शिक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोग बुरी बात नहीं, लेकिन विद्यार्थियों का पूरी तरह से प्रौद्योगिकी पर निर्भर होना बुरा है। हर सवाल का उत्तर इंटरनेट पर खोजना बुरा है। इससे बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है।
गलाकाट प्रतिस्पर्धा और बाजार संचालित समाज की तेज गति के कारण बच्चे कुछ ही पलों में सब कुछ पा लेना चाहते हैं। वे अपना पूरा जीवन ‘वर्ल्ड वाइड वेब’ या इंटरनेट के साथ बिता रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि नई पीढ़ी के पास अधिक जानकारी है, लेकिन यह भी सच है कि कल्पना, रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक प्रक्रिया के बिना उन्हें लंबे समय तक सफलता नहीं मिल सकती है, जब तक कि वे वैचारिक चर्चा में भाग नहीं लेते, अपनी विश्लेषणात्मक शक्ति और समाज के प्रति दृष्टिकोण को नहीं विकसित करते।
शिक्षा और शिक्षण पद्धति में विविधता जरूरी है, तभी बच्चों में कौशल और सृजनशीलता का विकास होता है, जिसका उपयोग इतिहास, साहित्य, संस्कृति और भाषा को समझने में भी उपयोगी होता है। शिक्षण पद्धति को बदला जाना चाहिए, संवादात्मक चर्चा होनी चाहिए। सैद्धांतिक के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा प्रणाली पर भी समान रूप से ध्यान देना और खुली कक्षाएं स्थापित की जानी चाहिए, ताकि बच्चे सक्रिय शिक्षार्थी बन सकें। इस तरह की शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों में संतुष्टि, नवीनता, रचनात्मकता, विश्लेषणात्मक मस्तिष्क, तर्कसंगतता, लोकतांत्रिक चरित्र आदि पक्षों को विकसित करने में सहायक होगी। हमें ऐसे बच्चों की जरूरत है, जो बाजार की नहीं बल्कि समाज की मांगों को पूरा कर सकें।
शैक्षणिक उत्कृष्टता की खोज में स्कूल अक्सर अनजाने में रचनात्मकता को दबा देते हैं। नवाचार और परिवर्तन रचनात्मकता से ही उपजते हैं, जिससे लोगों को समस्याओं को हल करने और गंभीर रूप से सोचने की क्षमता मिलती है। जब कोई समाज या समाज का कोई वर्ग अपनी रचनात्मकता खो देता है, तो वह आश्रयहीन और संकीर्ण सोच वाला बन जाता है। रचनात्मकता एक ऐसा कौशल है, जिसे लोग सीख सकते हैं। रचनात्मकता स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए, जो कि पहले होता था। लगातार बदलती दुनिया के साथ पारंपरिक शैक्षिक दृष्टिकोण अब बच्चों की जरूरतों को पूरा नहीं करते हैं।
बच्चों में कम होती सृजनशीलता और बढ़ती तर्कहीनता उन्हें खुल कर सोचने की प्रवृत्ति से वंचित और उन्हें प्रौद्योगिकी के अधीन करती जा रही है। अब छोटी से छोटी संख्या का गुणा और भाग भी बिना कैलकुलेटर की मदद से करना उन्हें असंभव लगता है। अपनी बुद्धि से ज्यादा वे कृत्रिम बुद्धि पर विश्वास करते हैं। गणित, इतिहास, वाणिज्य और विज्ञान जैसे मुख्य विषयों को इस तरह से नहीं पढ़ाया जाता, जो नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता हो। बल्कि उन्हें एक सीमित पाठ्यक्रम में बांट कर इस तरह पढ़ाया जाता है, जिससे रचनात्मक और तार्किक दिमाग के विकसित होने की संभावना बहुत कम होती है। आज की शिक्षा में तथ्यों/ आंकड़ों को सिखाया और उन्हें याद रखने की क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
हालांकि मूल्यांकनों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परियोजनाओं और गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। परियोजना आधारित शिक्षा एक शिक्षण तकनीक है, जो समस्याओं को हल करने और सवालों के जवाब देने के लिए व्यावहारिक गतिविधियों का उपयोग करती है। कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार परियोजना आधारित शिक्षा पारंपरिक शिक्षण की तुलना में बहुत बेहतर परिणाम देती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि छात्र सीखने, अधिक सामग्री समझने और अधिक जिज्ञासु होने के लिए प्रेरित होते हैं। पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव करने से विद्यार्थियों को रोजगार के क्षेत्र में प्रवेश करने में मदद मिलेगी।
आज की अर्थव्यवस्था सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) केंद्रित है, जहां नियोक्ताओं को नवाचारी, सृजनशील और कौशल युक्त कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। सृजनशीलता, नवाचार और करके सीखने की प्रक्रिया बच्चों को नए-नए कौशल सीखने और व्यक्तित्व विकास में मदद करती है, जिससे वे किसी भी क्षेत्र में अपना रोजगार चुन और सफलता प्राप्त कर सकते हैं। स्कूलों और कालेजों को एक ऐसा वातावरण प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए जो नए पाठ्यक्रम और मूल्यांकन पद्धति के माध्यम से सृजनशीलता और नवाचार को प्रोत्साहित तथा विकसित करे और कौशल आधारित शिक्षा को भी सामान रूप से महत्त्व दे।
ऐसी शिक्षा केवल रोजगार में सफलता के लिए नहीं, बल्कि बच्चों और युवाओं में मानवीय गुण, संघर्ष और चुनौतियों का सामना करने की क्षमता विकसित करने के लिए भी आवश्यक है। नई पीढ़ी को पैसा कमाने की मशीन बनाना शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिए, जैसा कि आजकल देखा जा रहा है, बल्कि एक ऐसा नागरिक बनाना होना चाहिए, जो देश, समाज और परिवार के प्रति प्रतिबद्धता से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सके।