Bihar News: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर जमकर विवाद हो रहा है। चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए आरजेडी सांसद मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है। उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया न केवल जल्दबाजी में और गलत समय पर की गई है, बल्कि इससे करोड़ों मतदाता मताधिकार से वंचित हो जाएंगे, जिससे उनसे मतदान का उनका संवैधानिक अधिकार छिन जाएगा।
यह सब उस वक्त हुआ है जब चुनाव आयोग ने महीनों पहले मौजूदा एंट्रीज का वेरिफिकेशन करके और नए वोटर्स को जोड़कर वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए कैंपेन शुरू किया। इस प्रोसेस में घर-घर जाकर वेरिफिकेशन एड्रेस के लिए प्रूफ पेश करना और एक फॉर्म भरना शामिल है। इसका इस आधार पर विरोध हो रहा है कि इसमें लाखों वोटर अपने वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर बिहार के गांवों में परेशान हैं लोग
एसआईआर प्रक्रिया काफी जटिल
आरजेडी के सांसद ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बिहार में बड़ी संख्या में प्रवासी लोग जो वोट देने के लिए घर पर आते हैं। उन्हें इस एसआईआर प्रक्रिया के जरिये बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है। साथ इन्होंने यह भी कहा कि प्रवासी मजदूरों के पास लोकल एड्रेस के प्रमाण नहीं होते हैं। वे दूर दराज की जगह से जटिल फॉर्म पर आधारित पूरी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाते और काम की वजह से समय सीमा से चूक जाते हैं।
बिहार में यह प्रक्रिया क्यों अपनाई जा रही – आरजेडी सांसद
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस बात पर सवाल उठाया कि ऐसे राज्य में यह प्रक्रिया क्यों अपनाई जा रही है, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और गरीबी से जूझ रहे अशिक्षित लोग हैं, जबकि विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं। चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए जिन 11 डॉक्यूमेंट को मांगा है, वे ऐसे दस्तावेज नहीं हैं जो गरीब और अशिक्षित लोगों के पास हो सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड या राशन कार्ड भी स्वीकार नहीं करता है। बिहार में विपक्ष के जबरदस्त दबाव के बाद बैकफुट पर आया चुनाव आयोग