राज सिंह
दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु की राजधानी, चेन्नई शहर के रेलवे स्टेशन से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर वास्तुकला का अद्भुत नमूना एवं आस्था का प्राचीनतम केंद्र बैरागी मठ स्थित है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चार वैष्णव संप्रदायों में से एक रामानंदी संप्रदाय के महान संत बाबा लाल दास बैरागी ने करवाया था।
बाबा लाल दास, स्वामी रामानंद की पांचवीं पीढ़ी के संत थे। स्वामी रामानंद जी के बाद अनंतानंद, कृष्णदास पायोहारी, चेतन दास और उनके शिष्य बाबा लाल दास हुए। बाबा लाल दास का जन्म वर्तमान पाकिस्तान में कसूर से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक स्थान पर हुआ। गुरु नानक जी के मौसेरे भाई बाबा राम थमन भी रामानंदी बैरागी संप्रदाय से थे और उन्हीं के परिवार में बाबा लाल दास का जन्म हुआ था।
17 वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में बाबा लाल दास को सनातन धर्म का संपूर्ण संत माना जाता था। यहां तक कि शाहांजहां और उनके जेष्ठ पुत्र दारा शिकोह भी बाबा लाल दास के पास आते थे। बाबा लाल दास और दारा शिकोह के बीच हुई वार्ता पर आधारित दारा शिकोह की पुस्तक मुकालम-ए-बाबा लाल ओ दारा शिकोह विश्व प्रसिद्ध है। दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में इस विषय पर दो दर्जन से अधिक पीएचडी स्तर के शोध हो चुके हैं।
यह मंदिर वर्ष 1600 में बनकर तैयार हुआ। बाबा लाल दास बैरागी ने वर्ष 1604 में पंजाब में, अमृतसर से 50 किलोमीटर दूर गुरदासपुर जिले के ध्यानपुर नामक स्थान पर भी एक मठ का निर्माण किया और वे अपने अंतिम समय तक इसी मठ पर रहे। यहीं पर उनकी समाधि भी है। लेकिन बाबा लाल दास ने भारत, वर्तमान पाकिस्तान में आने वाले तत्कालीन भारत और अफगानिस्तान में अनेक स्थानों पर मठों और मंदिरों का निर्माण करवाया।
कहा जाता है कि बाबा लाल दास काफी समय तक चेन्नई में रहे। वे तिरुपति बालाजी के भक्त थे और तिरुपति में हाथीराम मठ के संस्थापक भगवा बालाजी के परम भक्त, बाबा हाथीराम बैरागी से भी उनका गहरा लगाव था। बाबा हाथीराम बैरागी और बाबा लाल दास बैरागी दोनों ही रामानंदी संप्रदाय के थे।
यद्यपि हाथी राम जी का जन्म राजस्थान में नागपुर नामक स्थान पर हुआ था लेकिन अपने जीवन के आरंभिक काल में वे लंबे समय तक पंजाब, हरियाणा के क्षेत्रों में रहे।बाबा लाल दास ने काफी समय तक चेन्नई में प्रवास किया। वे तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों के रहने और खाने का इंतजाम भी इसी मठ में करते थे।
मंदिर के तीन भाग हैं और इसमें स्थापित सफेद संगमरमर से बनी मूर्तियां उत्तर भारतीय शैली की हैं। मंदिर का द्वार पूर्व दिशा में है। सफेद संगमरमर से बनी बेहद खूबसूरत मूर्तियों में भगवान राम के दाहिने हाथ लक्ष्मण हैं जो सामान्य परंपराओं से हटकर है, क्योंकि सामान्यतया भगवान राम के दाहिने हाथ सीता जी होती हैं। राम परिवार विग्रह के अतिरिक्त भगवान विष्णु और उनकी तीन पत्नियों की काले संगमरमर से बनी हुई मूर्तियां हैं।
सामान्यत: विष्णु भगवान की मूर्तिओं में उनकी पत्नी श्रीदेवी और भूदेवी ही होती हैं लेकिन इस मंदिर में उनकी तीसरी पत्नी नीला देवी भी हैं। इस मूर्ति में विष्णु भगवान की दो भुजाएं हैं, जिनमें वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं। विष्णु भगवान खड़ी मुद्रा में है जबकि उनकी पत्नियों को बैठे हुए दिखाया गया है।
काले संगमरमर पत्थर से बनी हुई भगवान कृष्ण की मूर्ति भी मंदिर में है। कृष्ण भगवान की कांसे से बनी हुई मूर्तियां भी मंदिर में हैं। मठ की दीवारों पर हनुमान जी के लाल रंग से बने हुए चित्र भी हैं। मठ के प्रांगण में तुलसी का पौधा है जिसे चेन्नई का सबसे प्राचीनतम तुलसी का पौधा माना जाता है।
वास्तुकला का अद्भुत उपहार, यह मंदिर विष्णु भगवान को समर्पित है। मंदिर प्रांगण में ही सरोवर के निकट उत्तर भारतीय शैली का एक और मंदिर भी स्थित है। इसका अपना छोटा सा द्वार है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने स्वयं यहां आकर बाबा लाल दास बैरागी को दर्शन दिए थे। इसलिए इस पवित्र स्थान को स्थानीय लोग बैरागी वेंकेटेश पेरूमल कोईल के नाम से जानते हैं। मंदिर का प्रबंधन बैरागी संप्रदाय द्वारा ही किया जाता है और मंदिर की परंपराओं के अनुसार केवल उत्तर भारतीय वैष्णव ब्राह्मण ही मंदिर का महंत हो सकता है। दक्षिण में स्थित होने के बावजूद इस मंदिर में पंजाब की झलक नजर आती है।
